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एगेणं आदेसेणं-जहण्णेण अंतोमुहत्तं, उक्कोसेण नव पलिओवमाईं। एगेणं आदेसेणं-जहण्णेण अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेण सत्त पलिओवमाई। एगेणं आदेसेणं-जहण्णेण अंतोमुहुत्तं,
उक्कोसेण पन्नासं पलिओवमाई। -जीवा. पडि. २, सु.४६ प. पुरिसस्स णं भंते ! केवइयं कालं ठिई पण्णत्ता? उ. गोयमा !जहण्णेण अंतोमुहुत्तं।
उक्कोसेण तेत्तीसं सागरोवमाई। तिरिक्खजोणियपुरिसाणं मणुस्सपुरिसाणं जा चेव इत्थीण ठिई साचेव भाणियव्या।
देवपुरिसाण वि जाव सव्वट्ठसिद्धाणं ठिई जहा
पण्णवणाए तहा माणियव्वा। -जीवा. पडि.२, सु. ५३ प. णपुंसगस्सणं भंते ! केवइयं कालं ठिई पण्णत्ता? उ. गोयमा !जहण्णेण अंतोमुहुत्त।
उक्कोसेण तेत्तीसं सागरोवमाई। प. णेरइयणपुंसगस्स णं भंते ! केवइयं कालं ठिई पण्णत्ता?
उ. गोयमा !जहण्णेण दसवासहस्साई,
उक्कोसेण तेत्तीसं सागरोवमाइं। सव्वेसिं ठिई भाणियव्वा जाव अहेसत्तमपुढविनेरइया।
द्रव्यानुयोग-(१) एक आदेश से-जघन्य अन्तर्मुहूर्त, उत्कृष्ट नव पल्योपम। एक आदेश से-जघन्य अन्तर्मुहूर्त, उत्कृष्ट सात पल्योपम। एक आदेश से-जघन्य अन्तर्मुहूर्त,
उत्कृष्ट पचास पल्योपम। प्र. भन्ते ! पुरुष की कितने काल की स्थिति कही गई है? उ. गौतम ! जघन्य अन्तमुहूर्त,
उत्कृष्ट तेतीस सागरोपम। तिर्यञ्चयोनिक पुरुषों की और मनुष्य पुरुषों की स्थिति तिर्यञ्चयोनिक स्त्रियों और मनुष्य स्त्रियों के समान जानना चाहिए। सर्वार्थसिद्ध देवों पर्यन्त देवयोनिक पुरुषों की स्थिति वही
जाननी चाहिए जो प्रज्ञापना के स्थिति पद में कही गई है। प्र. भन्ते ! नपुंसक की कितने काल की स्थिति कही गई है? उ. गौतम ! जघन्य अन्तर्मुहूर्त,
उत्कृष्ट तेतीस सागरोपम। प्र. भन्ते ! नैरयिक नपुंसक की कितने काल की स्थिति कही
गई है? उ. गौतम ! जघन्य दस हजार वर्ष,
उत्कृष्ट तेतीस सागरोपम। अधःसप्तमपृथ्वी पर्यन्त सब नारक नपुंसकों की स्थिति कहनी
चाहिए। प्र. भन्ते ! तिर्यक्योनिक नपुंसक की कितने काल की स्थिति कही
गई है? उ. गौतम ! जघन्य अन्तर्मुहूर्त,
उत्कृष्ट पूर्वकोटि। प्र. भन्ते ! एकेन्द्रिय तिर्यक्योनिक नपुंसक की स्थिति कितने काल
की कही गई है? उ. गौतम ! जघन्य अन्तर्मुहूर्त,
उत्कृष्ट बावीस हजार वर्ष। प्र. भन्ते ! पृथ्वीकायिक एकेन्द्रिय तिर्यक्योनिक नपुंसक की
स्थिति कितने काल की कही गई है? उ. गौतम ! जघन्य अन्तर्मुहूर्त,
उत्कृष्ट बावीस हजार वर्ष। सब एकेन्द्रिय नपुंसकों की स्थिति कहनी चाहिए। द्वीन्द्रिय त्रीन्द्रिय चतुरिन्द्रिय नपुंसकों की स्थिति भी कहनी
चाहिए। प्र. भन्ते ! पंचेन्द्रिय तिर्यक्योनिक नपुंसक की स्थिति कितने काल
की कही गई है? उ. गौतम ! जघन्य अन्तर्मुहूर्त,
उत्कृष्ट पूर्वकोटि। इसी प्रकार जलचरतिर्यञ्च चतुष्पदस्थलचर, उरपरिसर्प, भुजपरिसर्प, खेचर तिर्यक्योनिक नपुंसक इन सबकी जघन्य अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट पूर्वकोटि की स्थिति कही गई है।
प. तिरिक्खजोणिय णपुंसगस्स णं भंते ! केवइयं कालं ठिई
पण्णत्ता? उ. गोयमा !जहण्णेण अंतोमुहत्तं,
उक्कोसेण पुव्वकोडी। प. एगिदिय तिरिक्खजोणिय णसगस्स णं भंते ! केवइयं
कालं ठिई पण्णत्ता? उ. गोयमा !जहण्णेण अंतोमुहुत्तं,
उक्कोसेण बावीसं वाससहस्साई। प. पुढविकाइय एगिंदिय तिरिक्खजोणिय णपुंसगस्स णं
भंते! केवइयं कालं ठिई पण्णत्ता? उ. गोयमा !जहण्णेण अंतोमुहत्तं,
उक्कोसेण बावीसं वाससहस्साई। सव्वेसिं एगिदिय नपुंसगाणं ठिई भाणियव्या। बेइंदिय तेइंदियचउरिदियणपुंसगाणं ठिई भाणियब्वा।
प. पंचिंदिय तिरिक्खजोणिय णपंसगस्स णं भंते ! केवइयं
कालं ठिई पण्णत्ता? उ. गोयमा !जहण्णेण अंतोमुहत्तं,
उक्कोसेण पुव्वकोडी। एवं जलयरतिरिक्खचउप्पद-थलयर-उरगपरिसप्पभुयगपरिसप्प-खहयरतिरिक्खजोणियणपुंसगाणं सव्वेसि जहन्नेणं अंतोमुहत्तं, उक्कोसेण पुचकोडी।