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जीव अध्ययन
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६९. मनुष्य जीवों की प्रज्ञापना के भेद
प्र. मनुष्य कितने प्रकार के हैं ? उ. मनुष्य दो प्रकार के कहे गए हैं, यथा
१. सम्मूर्छिम मनुष्य,
२. गर्भज मनुष्य। ७०. सम्मूर्छिम मनुष्यों की प्रज्ञापना
प्र. सम्मूर्छिम मनुष्य कितने प्रकार के हैं ? उ. सम्मूर्छिम मनुष्य एक प्रकार का कहा गया है।
प्र. भंते ! सम्मूर्छिम मनुष्य कैसे होते हैं ?
वे कहां उत्पन्न होते हैं ? उ. गौतम ! मनुष्य क्षेत्र के अन्दर, पैंतालीस लाख योजन विस्तृत
द्वीप-समुद्रों में, पन्द्रह कर्मभूमियों में, तीस अकर्मभूमियों में एवं छप्पन अन्तर्वीपों में गर्भज मनुष्यों के
६९. मणुस्सजीवपण्णवणा
प. से किं तं मणुस्सा? उ. मणुस्सा दुविहा पण्णत्ता, तं जहा
१. सम्मुच्छिममणुस्सा य,
२. गब्भवक्कंतियमणुस्सा' य। -पण्ण. प.१, सु. ९२ ७०. सम्मुच्छिम मणुस्साण पण्णवणा
प. से किंतं समुच्छिममणुस्सा? उ. संमुच्छिममणुस्सा एगागारापण्णत्ता।
-जीवा. पडि.३, सु.१०६ प. से किं तं संम्मुच्छिममणुस्सा?
कइणं भंते ! सम्मुच्छिममणुस्सा सम्मुच्छंति? उ. गोयमा ! अंतोमणुस्सखेत्ते पणयालीसाए जोयण
सयसहस्सेसु अड्ढाइज्जेसु दीवसमुद्देसु पन्नरससु कम्मभूमीसु, तीसाए अकम्मभूमीसु, छप्पण्णाए अंतरदीवएसु, गब्भक्कंतियमणुस्साणं चेव १. उच्चारेसुवा, २. पासवणेसुवा, ३. खेलेसुवा, ४. सिंघाणेसुवा, ५. वंतेसुवा, ६. पित्तेसुवा, ७. पूएसुवा, ८. सोणिएसुवा, ९. सुक्केसुवा, १०. सुक्कपोग्गलपरिसाडेसु वा, ११. विगयजीवकलेवरेसु वा, १२. थी-पुरिससंजोएसु वा, १३. गामणिद्धमणेसुवा, १४. णगरणिद्धमणेसु वा। सव्वेसु चेव असुइएसु ठाणेसु एत्थ णं सम्मुच्छिममणुस्सा सम्मुच्छंति। अंगुलस्स असंखेज्जइभागमेत्तीए ओगाहणाए असण्णी मिच्छद्दिट्ठिी सव्वाहिं पज्जतीहिं अपज्जत्तया अंतोमुहुत्ताउया चेव कालं करेइ।
१. उच्चारों में, २. पेशाबों में, ३. कफों में, ४. सिंघाण-नाक के मैलों में, ५. वमनों में, ६. पित्तों में, ७. मवादों में, ८. रक्तों में, ९. शुक्रों-वीर्यों में, १०. पहले सूखे हुए शुक्र के पुद्गलों को गीला करने में, ११. मरे हुए जीवों के कलेवरों में, १२. स्त्री-पुरुष के संयोगों में, १३. ग्राम की गटरों में या मोरियों में, १४. नगर की गटरों में या मोरियों में। इन सभी अशुचि स्थानों में सम्मूर्छिम मनुष्य (माता-पिता के संयोग के बिना स्वतः) उत्पन्न होते हैं। इन सम्मूर्छिम मनुष्यों की अवगाहना अंगुल के असंख्यातवें भाग मात्र की होती है। ये असंज्ञी मिथ्यादृष्टि एवं सभी पर्याप्तियों अर्थात् सभी प्रकार की पर्याप्त अवस्थाओं से अपर्याप्त होते हैं। ये अन्तर्मुहूर्त की आयु भोग कर मर
जाते हैं।
सेतं सम्मुच्छिम मणुस्सा। ७१. गब्भवक्कंतिय मणुस्साण पण्णवणा
प. से किं तं गब्भवक्कंतियमणुस्सा? उ. गब्भवक्कंतियमणुस्सा तिविहा पण्णत्ता,तं जहा
.१.कम्मभूमया, २.अकम्मभूमया, ३.अंतरदीवया।
यह सम्मूर्छिम मनुष्यों की प्ररूपणा हुई। ७१. गर्भज मनुष्यों की प्रज्ञापना
प्र. गर्भज मनुष्य कितने प्रकार के हैं ? उ. गर्भज मनुष्य तीन प्रकार के कहे गए हैं, यथा
१. कर्मभूमिज, २. अकर्मभूमिज, ३.अन्तरद्वीपज।
१. (क) जीवा. पडि. १, सु. ४१
(ख) जीवा. पडि.३, सु.१०५
(ग) उत्त. अ. ३६ गा. १९५ २.(क) जीवा. पडि.१, सु.४१
(ख) जीवा. पडि. ३, सु. १०६ (ग) ठाणं. अ. ६, सु. ४९०/२
३. (क) उत्त. अ.३६, गा. १९६-१९७
(ख) जीवा. पडि. १, सु. ४१ (ग) जीवा. पडि. २, सु. ५२ (घ) जीवा. पडि. ३, सु. १०७ (ङ) ठाणं अ. ६, सु. ४९०