________________
प्रथम- अप्रथम अध्ययन
एवं सिद्धे वि पुहत्तेण वि एवं चेव ।
१४. पज्जत्त दारं
प. पज्जती िभंते जीवे पज्जत्तभावेणं किं पढमे, अपढमे ?
उ. गोवमा नो पढमे, अपढमे,
दं. १-२४. एवं नेरइए जाव वेमाणिए ।
पुहत्तेण वि एवं चेव ।
णवरं जस्स जा अल्थि' ।
प. अपज्जतीहिं भंते ! जीवे अपजत्तभावेण किं पढमे, अपढमे ?
उ. गोयमा ! नो पढमे, अपढमे ।
द. १-२४. एवं नेरइए जाव वेमाणिए ।
पुहत्तेण जीवा नो पढमा, अपढमा ।
दं. १-२४. नेरइया जाव वेमाणिया वि एवं चेव ।
-विया स. १८, उ. १, सु. ३-६२
१. (क) देवताओं के १३ दण्डक, नारकों का १ दण्डक, विकलेन्द्रियों के ३ दण्डक इन १७ दण्डकों में ५ पर्याप्तियां हैं।
१४.
प्र.
उ.
२६९
सिद्ध का कथन भी इसी प्रकार है।
बहुवचन की अपेक्षा भी इसी प्रकार जानना चाहिए । पर्याप्त द्वार
भन्ते ! पर्याप्त जीव पर्याप्तभाव से प्रथम है या अप्रथम है ? गौतम ! वह प्रथम नहीं है, अप्रथम है।
दं. १-२४. इसी प्रकार नैरयिक से वैमानिक पर्यन्त जानना चाहिए।
बहुवचन की अपेक्षा भी इसी प्रकार है।
विशेष- जिसकी जितनी पर्याप्तियां हैं उतनी जाननी चाहिए।
प्र. भन्ते ! अपर्याप्त जीव अपर्याप्त भाव से प्रथम है या अप्रथम है ?
उ. गौतम ! प्रथम नहीं है, अप्रथम है।
दं. १-२४. इसी प्रकार नैरयिक से वैमानिक पर्यन्त जानना चाहिए।
बहुवचन की अपेक्षा जीव प्रथम नहीं हैं, अप्रथम हैं। द. १-२४. इसी प्रकार नैरयिकों से वैमानिकों पर्यन्त का कथन करना चाहिए।
(ख) स्थावरों के ५ दण्डकों में चार पर्याप्तियां हैं।
(ग) तिर्यञ्च पंचेन्द्रिय और मनुष्य के दो दण्डक में छः पर्याप्तियां हैं।