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१. अहवा कोहोवउत्ता य माणोवउत्ते य मायोवउत्ते य।
२. कोहोवउत्ता य माणोवउत्ते य मायोवउत्ता य।
३. कोहोवउत्ता य माणोवउत्ता यमायोवउत्ते य।
४. कोहोवउत्ता य माणोवउत्ता य मायोवउत्ता य।
५-८. एवं कोह-माण-लोभेण विचउ।
९-१२. एवं कोह-माया-लोभेण-विचउ १ = (१२)
पच्छा माणेण मायाए लोभेण य कोहो भइयव्यो, ते कोहं अमुंचता।
एवं सत्तावीसं भंगाणेयव्वा। प. इमीसे णं भंते ! रयणप्पभाए पुढवीए तीसाए
निरयावाससयसहस्सेसु एगमेगंसि निरयावासंसि समयाहियाए जहन्नट्ठिइए वट्टमाणा नेरइया किं
कोहोवउत्ता, माणोवउत्ता, मायोवउत्ता, लोभोवउत्ता? उ. गोयमा ! कोहोवउत्ते य, माणोवउत्ते य, मायोवउत्ते, य,
लोभोवउत्ते य, कोहोवउत्ता य, माणोवउत्ता य, मायोवउत्ता य, लोभोवउत्ताय। अहवा कोहोवउत्ते य माणोवउत्ते य, अहवा कोहोवउत्ते य माणोउत्ता य,
[ द्रव्यानुयोग-(१) ) १. अथवा बहुत से क्रोधोपयुक्त होते हैं एक मानोपयुक्त
और एक मायोपयुक्त होता है। २. अथवा बहुत से क्रोधोपयुक्त होते हैं एक मानोपयुक्त
होता है और बहुत से मायोपयुक्त होते हैं। ३. अथवा बहुत से क्रोधोपयुक्त और बहुत से मानोपयुक्त
होते हैं और एक मायोपयुक्त होता है। ४. अथवा बहुत से क्रोधोपयुक्त, बहुत से मानोपयुक्त और
बहुत से मायोपयुक्त होते हैं। ५-८. इसी प्रकार क्रोध, मान और लोभ के (त्रिकसंयोगी)
चार भंग कहने चाहिए। ९-१२. इसी प्रकार क्रोध, माया और लोभ के (त्रिकसंयोगी)
चार भंग कहने चाहिए। इस प्रकार कुल १२ भंग होते हैं। (ये त्रिक संयोगी भंग हैं) तत्पश्चात् मान, माया और लोभ के साथ क्रोध को नहीं छोड़ते हुए (एक वचन, बहुवचन के साथ चतुष्कसंयोगी) ८ भंग होते हैं। इस प्रकार कुल २७ भंग समझ लेने चाहिए। प्र. भंते ! रत्नप्रभा पृथ्वी के तीस लाख नारकावासों में से
एक-एक नारकावास में एक समय अधिक जघन्य स्थिति में प्रवर्तमान नारक क्या क्रोधोपयुक्त होते हैं, मानोपयुक्त होते
हैं, मायोपयुक्त होते हैं या लोभोपयुक्त होते हैं ? उ. गौतम ! उनमें से कोई क्रोधोपयुक्त, कोई मानोपयुक्त, कोई
मायोपयुक्त और कोई लोभोपयुक्त होता है। अथवा बहुत से क्रोधोपयुक्त, बहुत से मानोपयुक्त, बहुत से मायोपयुक्त और बहुत से लोभोपयुक्त होते हैं। अथवा कोई एक क्रोधोपयुक्त और मानोपयुक्त होता है। अथवा कोई एक क्रोधोपयुक्त होता है और बहुत से मानोपयुक्त होते हैं। इस प्रकार, (असंयोगी ८ भंग द्विसंयोगी २४ भंग, त्रिक संयोगी ३२ भंग, चतुष्क संयोगी १६ भंग के) कुल अस्सी भंग समझने चाहिए। इसी प्रकार दो समयाधिक जघन्य स्थिति से संख्यात समयाधिक जघन्य स्थिति पर्यन्त भी अस्सी भंग समझने चाहिए। असंख्यात समयाधिक जघन्य स्थिति वालों से लेकर उनके योग्य उत्कृष्ट स्थिति वाले नारकों पर्यन्त सत्ताईस भंग
कहने चाहिए। (२) अवगाहन स्थान द्वारप्र. भंते ! इस रत्नप्रभा पृथ्वी के तीस लाख नारकावासों में से
एक-एक नारकावास में रहने वाले नारकों के कितने
अवगाहना स्थान कहे गए हैं? उ. गौतम ! उनके अवगाहना स्थान असंख्यात कहे गए
हैं, यथा१. जघन्य अवगाहना (अंगुल के असंख्यातवें भाग) एक प्रदेशाधिक जघन्य अवगाहना,
एवं असीति भंगा नेयव्वा,
एवं जाव संखिज्ज समयाहिया ठिई।
असंखेज्जसमयाहियाए ठिईए तप्पाउग्गुक्कोसियाए ठिईए सत्तावीसं भंगा भाणियव्या।
(२) ओगाहणठाणा दारंप. इमीसे णं भंते ! रयणप्पभाए पुढवीए तीसाए निरयावाससयसहस्सेसु एगमेगंसि निरयावासंसि
नेरइयाणं केवइया ओगाहणठाणा पण्णत्ता? उ. गोयमा ! असंखेज्जा ओगाहणठाणा पण्णत्ता,तं जहा
जहणिया ओगाहणा, पएसाहिया जहन्निया ओगाहणा,