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[ जीव अध्ययन १२८. जीवाणं पढमापढमसमय विवक्खया अंतरकाल परूवणं-
१२८. प्रथमाप्रथम समय की विवक्षा से जीवों के अंतरकाल का
प्ररूपणप्र. भंते ! प्रथमसमयएकेन्द्रियों का कितने काल का अंतर होता है ? उ. गौतम ! जघन्य एक समय कम दो क्षुल्लकभवग्रहण और
उत्कृष्ट वनस्पतिकाल है। अप्रथमसमयएकेन्द्रिय का जघन्य अन्तर एक समय अधिक एक क्षुल्लकभव ग्रहण और उत्कृष्ट संख्यात वर्ष अधिक दो हजार सागरोपम है। शेष सब प्रथमसमयिकों का अन्तर जघन्य एक समय कम दो क्षुल्लकभवग्रहण और उत्कृष्ट वनस्पतिकाल है।
प. पढमसमय एगिदियाणं केवइयं कालं अंतर होइ? - उ. गोयमा ! जहण्णेणं दो खुड्डागभवग्गहणाई समयूणाई,
उक्कोसेणं वणस्सइकालो। अपढमसमय एगिंदियाणं अंतर जहण्णेणं खुड्डागभवग्गहणाई समयाहियं, उक्कोसेणं दो सागरोवमसहस्साई संखेज्जवासमब्महियाई। सेसाणं सब्वेसिं पढमसमयिकाणं अंतर जहण्णेणं दो खुड्डाई भवग्गहणाई समयूणाई, उक्कोसेणं वणस्सइकालो। अपढमसमयिकाणं सेसाणं जहण्णेणं खुड्डाग भवग्गहणं समयाहियं, उक्कोसेणं वणस्सइकालो।
-जीवा पडि.९,सु.२३० १२९. छज्जीवनिकायाणं अंतरकाल परूवणं
प. पुढविकाइयस्सणं भंते ! केवइयं कालं अंतर होइ? उ. गोयमा !जहण्णेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं
वणप्फइकालो। एवं आउरे-तेउ-वाउकाइयाणं वणस्सइकालो।
शेष अप्रथमसमयिकों का अन्तर जघन्य समयाधिक एक क्षुल्लकभव ग्रहण और उत्कृष्ट वनस्पतिकाल है।
१२९. षइजीवनिकायिकों के अंतरकाल का प्ररूपण
प्र. भंते ! पृथ्वीकाय का कितने काल का अंतर होता है ? उ. गौतम ! जघन्य अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट वनस्पतिकाल है।
तसकाइयाण वि वणस्सइकाइयस्स पुढवीकाइयकालो५।
एवं अपज्जत्तगाणंवि वणस्सइकालो, वणस्सईणं पुढविकालो। पज्जत्तगाणवि एवं चेव वणस्सइकालो, पज्जत्तवणस्सईणं पुढविकालो।
-जीवा. पडि. ५,सु.२१२ १३०. तस थावराणं अंतरकाल परूवणं
प. थावरस्सणं भंते ! केवइकालं अंतर होइ? उ. गोयमा ! जहण्णेणं अंतोमुहत्तं, उक्कोसेणं असंखेज्ज
कालं, असंखेज्जाओ उस्सप्पिणीओ अवसप्पिणीओ
कालओ,खेत्तओ असंखेज्जा लोगा। प. तसस्स णं भंते ! केवइकालं अंतर होइ? उ. गोयमा ! जहण्णेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं वणस्सइकालो।
-जीवा. पडि. १,सु.४३ १३१. सुहुमाणं अंतरकाल परूवणं
प. सुहमस्स णं भंते ! केवइयं कालं अंतर होइ? उ. गोयमा ! जहण्णेणं अंतोमहत्तं, उक्कोसेणं असंखेज्ज कालं, कालओ असंखेज्जाओ उस्सप्पिणी ओसप्पिणीओ,खेत्तओ अंगुलस्स असंखेज्जइभागो।
इसी प्रकार अकाय, तेजस्काय और वायुकाय का भी अन्तर वनस्पतिकाल है। त्रसकायिकों का अन्तर भी वनस्पतिकाल है। वनस्पतिकाय का अंतर पृथ्वीकायिक (कायस्थिति) कालप्रमाण है। इसी प्रकार अपर्याप्तकों का अन्तरकाल वनस्पतिकाल है। अपर्याप्त वनस्पति का अन्तर पृथ्वीकाल है। पर्याप्तकों का अन्तर वनस्पतिकाल है। पर्याप्त वनस्पति का अन्तर
पृथ्वीकाल है। १३०. त्रस और स्थावरों के अंतरकाल का प्ररूपण
प्र. भंते ! स्थावर का कितने काल का अन्तर होता है ? उ. गौतम ! जघन्य अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट असंख्यात काल
अर्थात् असंख्यात उत्सर्पिणी अवसर्पिणी काल, क्षेत्र से
असंख्यातलोक प्रमाण है। (तेउकाय वायुकाय की अपेक्षा) प्र. भंते ! बस का कितने काल का अन्तर होता है ? उ. गौतम ! जघन्य अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट वनस्पतिकाल है।
१३१. सूक्ष्मों के अंतरकाल का प्ररूपण
प्र. भंते ! सूक्ष्म का कितने काल का अंतर होता है ? उ. गौतम ! जघन्य अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट असंख्यात काल है।
अर्थात् असंख्यात उत्सर्पिणी अवसर्पिणी काल प्रमाण है तथा क्षेत्र की अपेक्षा अंगुल के असंख्यातवें भाग जितना आकाश प्रदेशों प्रमाण है।
१. उत्त. अ. ३६, गा. ८२ 3. उत्त. अ. ३६, गा. ९० ३. उत्त. अ.३६, गा. ११५ ४. उत्त. अ. ३६, गा. १२४
५. (क) अंतरं सव्येसिं अणंतकाल वणस्सइकाइयाणं असंखेज्जकाल
-जीवा. पडि.६सु.२२८ (ख) उत्त. अ.३६, गा. १०४