________________
जीव अध्ययन
-
२०७
forms
उ. गोयमा ! असंखेज्जा अज्झवसाणा पण्णत्ता।
उ. गौतम ! उनके असंख्यात अव्यवसाय कहे गए हैं। प. ते णं भंते ! किं पसत्था अप्पसत्था?
प्र. भंते ! वे अध्यवसाय प्रशस्त होते हैं या अप्रशस्त होते हैं? उ. गोयमा ! पसत्था वि अप्पसत्था वि।
उ. गौतम ! वे प्रशस्त भी होते हैं और अप्रशस्त भी होते हैं। दं.२-२४. एवं जाव वेमाणियाणं।
दं.२-२४. इसी प्रकार वैमानिकों पर्यन्त जानना चाहिए। -पण्ण. प.३४, सु. २०४७-२०४८, १०२. चउवीसदंडएसु सम्मत्ताभिगमाइ परूवणं
१०२. चौबीसदंडकों में सम्यक्त्वाभिगमादि का प्ररूपणप. दं. १. णेरइया णं भंते ! किं सम्मत्ताभिगमी प्र. दं. १. भंते ! नारक सम्यक्त्वाभिगमी होते हैं, मिथ्यात्वामिच्छत्ताभिगमी सम्मामिच्छत्ताभिगमी?
भिगमी होते हैं या सम्यग्मिथ्यात्वाभिगमी होते हैं? उ. गोयमा ! सम्मत्ताभिगमी वि, मिच्छत्ताभिगमी वि, उ. गौतम ! वे सम्यक्त्वाभिगमी, मिथ्यात्वाभिगमी और सम्मामिच्छत्ताभिगमी वि।
सम्यग्मिथ्यात्वाभिगमी होते हैं। दं.२-२४.एवं जाव वेमाणिया।
दं.२-२४ इसी प्रकार वैमानिकों पर्यन्त जानना चाहिए। णवर-एगिंदिय-विगलिंदिया णो सम्मत्ताभिगमी,
विशेष-एकेन्द्रिय और विकलेन्द्रिय केवल मिथ्यात्वाभिगमी मिच्छत्ताभिगमी, णो सम्मामिच्छत्ताभिगमी।
होते हैं, वे सम्यक्त्वाभिगमी और सम्यगमिथ्यात्वाभिगमी -पण्ण. प. ३४, सु. २०४९-२०५०
नहीं होते हैं। १०३. चउवीसदंडएसुसारंभ सपरिग्गहत्त परूवणं
१०३. चौबीस दंडकों में सारम्भ सपरिग्रहत्व का प्ररूपणप. दं.१. नेरइयाणं भंते ! किं सारंभा सपरिग्गहा? उदाहु प्र. दं. १. अंते ! क्या नैरयिक आरम्भ और परिग्रह से सहित अणारंभा अपरिग्गहा?
होते हैं अथवा आरम्भ और परिग्रह से रहित होते हैं? उ. गोयमा ! नेरइया सारंभा सपरिग्गहा, नो अणारंभा नो उ. गौतम ! नैरयिक आरम्भ और परिग्रह से सहित होते हैं अपरिग्गहा।
किन्तु आरम्भ और परिग्रह से रहित नहीं होते हैं। प. से केणठेणं भंते ! एवं वुच्चइ
प्र. भंते ! किस कारण से ऐसा कहा जाता है कि"नेरइया सारंभा सपरिग्गहा, नो अणारंभा
"नैरयिक आरंभ एवं परिग्रह से सहित होते हैं किन्तु अपरिग्गहा?"
आरम्भ एवं परिग्रह से रहित नहीं होते हैं ?" उ. गोयमा ! नेरइया णं पुढविकायं समारंभंति जाव उ. गौतम ! नैरयिक पथ्वीकाय का समारम्भ करते हैं यावत् तसकायं समारंभंति, सरीरा परिग्गहिया भवंति,
त्रसकाय का समारम्भ करते हैं। शरीर को परिगृहीत
(ग्रहण) किये हुए हैं। कम्मा परिग्गहिया भवंति,
कर्मों को परिगृहीत किये हुए हैं, सचित्त-अचित्त मीसयाई दव्वाइं परिग्गहियाइं भवंति।
सचित्त अचित्त एवं मिश्र द्रव्यों को परिगृहीत किये हुए हैं। से तेणठेणं गोयमा ! एवं वुच्चइ
इस कारण से गौतम ! ऐसा कहा जाता है कि"नेरइया सारंभा सपरिग्गहा, उदाहु नो अणारंभा नो
"नैरयिक आरंभ एवं परिग्रह से सहित होते हैं किन्तु आरंभ अपरिग्गहा।"
एवं परिग्रह से रहित नहीं होते हैं। प. दं.२. असुरकुमारा णं भंते ! किं सारंभा सपरिग्गहा? प्र. दं.२.भंते ! असुरकुमार क्या आरम्भ एवं परिग्रह से सहित उदाहु अणारंभा अपरिग्गहा?
होते हैं, अथवा आरंभ एवं परिग्रह से रहित होते हैं? उ. गोयमा ! असुरकुमारा सारंभा सपरिग्गहा, नो उ. गौतम ! असुरकुमार भी सारंभ एवं सपरिग्रही होते हैं, अणारंभा, नो अपरिग्गहा?
किन्तु अनारंभी एवं अपरिग्रही नहीं होते हैं। प. से केणठेणं भंते ! एवं वुच्चइ
प्र. भंते ! किस कारण से ऐसा कहा जाता है कि'असुरकुमारा सारंभा सपरिग्गहा ? नो अणारंभा नो
"असुरकुमार सारंभ एवं सपरिग्रही होते हैं, किन्तु अपरिग्गहा?'
अनारम्भी एवं अपरिग्रही नहीं होते हैं?" उ. गोयमा ! असुरकुमाराणं पुढविकाइयं समारंभंति जाव उ. गौतम ! असुरकुमार पृथ्वीकाय से त्रसकाय पर्यन्त का तसकायं समारंभंति,
समारंभ करते हैं सरीरा परिग्गहिया भवंति,
शरीर को परिगृहीत किये हुए हैं, कम्मा परिग्गहिया भवंति,
कर्मों को परिगृहीत किये हुए हैं, भवणा परिग्गहिया भवंति।
भवनों को परिगृहीत किये हुए हैं।