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द्रव्यानुयोग-(१) 'नेरइयाणं तत्थगयाणं नो एवं पण्णायइ,तं जहा
'नरकस्थित नैरयिकों को इस प्रकार से, यथासमया इ वा जाव उस्सप्पिणी इ वा।'
समय आवलिका यावत् उत्सर्पिणी काल, प्रज्ञान नहीं होता, दं.२-२० .एवं जाव पंचेंदियतिरिक्खजोणियाणं।
दं.२-२०. इसी प्रकार (भवनपति देवों, स्थावर जीवों, तीन विकलेन्द्रियों से पञ्चेन्द्रिय तिर्यञ्चयोनिकों पर्यन्त समयादि
का ज्ञान नहीं होता। प. दं. २१. अत्थि णं भंते ! मणुस्साणं इहगयाणं एवं प्र. दं.२१. भंते! क्या यहां (मनुष्यलोक में) रहे हुए मनुष्यों को पण्णायइ,तंजहा
इस प्रकार का प्रज्ञान होता है, यथा'समया इ वा जाव उस्सप्पिणी इवा?'
'यह समय यावत् उत्सर्पिणी काल है?' उ. हंता, गोयमा ! अत्थि।
उ. हां गौतम ! (मनुष्यों को प्रज्ञान) होता है। प. से केणट्टेणं भंते ! एवं वुच्चइ
प्र. भंते ! किस कारण से ऐसा कहा जाता है कि'मणुस्साणं इहगयाणं एवं पण्णायइ,तं जहा
'यहाँ रहे हुए मनुष्यों को इस प्रकार का प्रज्ञान होता
है, यथासमया इ वा जाव उस्सप्पिणी इ वा ?
यह समय यावत् उत्सर्पिणी काल है?' उ. गोयमा ! इहं तेसिं माणं, इह तेसिं पमाणं, इह चेव तेसिं उ. गौतम ! यहां (मनुष्यलोक में) उन समयादि का मान है, एवं पण्णायइ, तं जहा
यहां उनका प्रमाण है, इसी कारण यहां उनका प्रज्ञान
होता है, यथासमया इ वा जाव उस्सप्पिणी इ वा।
यह समय है यावत् यह उत्सर्पिणीकाल है। से तेणठेणं गोयमा ! एवं वुच्चइ
इस कारण से गौतम ! ऐसा कहा जाता है कि'मणुस्साणं इहगयाणं एवं पण्णायइ,तं जहा
'यहां रहे हुए मनुष्यों को इस प्रकार का प्रज्ञान होता
है, यथासमया इ वा जाव उस्सप्पिणी इ वा।
यह समय यावत् उत्सर्पिणी काल है।' दं. २२-२४. वाणमंतर-जोइस-वेमाणियाणं जहा
दं. २२-२४. जिस प्रकार नैरयिक जीवों (समयादि प्रज्ञान) नेरइयाणं। -विया.स.५, उ.९,सु. १०-१३ .
के लिए कहा उसी प्रकार वाणव्यन्तर, ज्योतिष्क और
वैमानिक देवों के विषय में भी कहना चाहिए। १०७. चउवीसदंडएसु गरुयत्त लहुयत्ताइ परूवणं
१०७. चौबीसदंडकों में गुरुत्व लघुत्वादि का प्ररूपणप. दं.१.नेरइया णं भंते ! किं गरुया, लहुया, गरुयलहुया, प्र. दं. १. भंते ! नारक जीव गुरु है, लघु है, गुरुलघु हैं या अगरुयलहुया?
___अगुरुलघु हैं ? उ. गोयमा ! नो गरुया, नो लहुया, गरुयलुहया वि, उ. गौतम ! नारक जीव गुरु नहीं है, लघु नहीं है, किन्तु गुरुलघु अगरुयलहुया वि।
भी हैं और अगुरुलघु भी है। प. सेकेणठेणं भंते ! एवं वुच्चइ
प्र. भंते ! किस कारण से ऐसा कहा जाता है कि'नेरइया नो गरुया, नो लहुया, गरुयलहुया वि,
'नैरयिक गुरु नहीं है, लघु नहीं है किन्तु गुरुलघु भी है और अगरुयलहुया वि।'
अगुरुलघु भी है?' उ. गोयमा ! वेउब्विय तेयाइं पडुच्च नो गरुया, नो लहुया, उ. गौतम ! वैक्रिय तैजस शरीर की अपेक्षा नारक जीव गुरु गरुयलहुया, नो अगरुयलहुया।
नहीं है, लघु नहीं है, गुरुलघु है, किन्तु अगुरुलघु नहीं है। जीवं च कम्मणं च पडुच्च नो गरुया, नो लहुया, नो
जीव और कार्मण शरीर की अपेक्षा गुरु नहीं है, लघु नहीं गरुयलहुया, अगरुयलहुया।
है, गुरुलघु नहीं है किन्तु अगुरुलघु हैं। से तेणठेणं गोयमा ! एवं वुच्चइ
इस कारण से गौतम! ऐसा कहा जाता है कि'नेरइया नो गरुया, नो लहुया, गरुयलहुया वि,
'नैरयिक गुरु नहीं है, लघु नहीं है, किन्तु गुरुलघु भी है और अगरुयलहुया वि।'
अगुरुलघु भी हैं। दं.२-२४. एवं जाव वेमाणिया।
दं.२-२४. इसी प्रकार वैमानिकों पर्यन्त जानना चाहिए। णवरं-णाणत्तंजाणियव्वं सरीरेहिं।
विशेष-शरीरों में भिन्नता कहनी चाहिए। -विया. स.१, उ.९,सु.६