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द्रव्यानुयोग-(१)
उ. गोयमा ! नेरइए ताव नियमा जीवइ, जीवइ पुण सिय
नेरइए सिय अनेरइए।
दं.२-२४ एवं दंडओ नेयव्यो जाव वेमाणियाणं।
-विया. स. ६, उ. १0, सु.६-८ ७५.जीव-चउवीसदंडएसुपच्चक्खाणी आइ परूवणंप. जीवाणं भंते ! किं पच्चक्खाणी, अपच्चक्खाणी
पच्चक्खाणापच्चक्खाणी? उ. गोयमा ! जीवा पच्चक्खाणी वि, अपच्चक्खाणी वि,
पच्चक्खाणापच्चक्खाणी वि एवं मणुस्साण वि। पंचेंदियतिरिक्खजोणिया आइल्लविरहिया।
सेसा सव्वे अपच्चक्खाणी जाव वेमाणिया। प. एएसि णं भंते ! जीवाणं पच्चक्खाणीणं अपच्चक्खाणीणं
पच्चक्खाणा-पच्चक्खाणीण य कयरे कयरेहिंतों अप्पा वा
जाव विसेसाहिया वा? उ. गोयमा ! १. सव्वत्थोवा जीवा पच्चक्खाणी,
२.पच्चक्खाणापच्चक्खाणी असंखेज्जगुणा, ३.अपच्चक्वाणी अणंतगुणा, ' पंचेंदियतिरिक्खजोणिया-सव्वत्थोवा पच्चक्खाणापच्चक्खाणी, अपच्चक्खाणी असंखेज्जगुणा। मणुस्सा-सव्वत्थोवा पच्चक्खाणी,पच्चक्खाणापच्चक्खाणी संखेज्जगुणा, अपच्चक्खाणी
असंखेज्जगुणा। -विया. स.७, उ.२ सु.२९-३५ ७६. जीव-चउवीसदंडएसुमूलोत्तरगुण पच्चक्खाणीआइ परूवणं-
उ. गौतम ! नैरयिक तो निश्चित रूप से प्राण धारण करता है किन्तु जो प्राण धारण करता है वह कदाचित् नैरयिक होता है
और कदाचित् नैरयिक नहीं भी होता है। द.२-२४. इसी प्रकार वैमानिकों पर्यन्त सभी दण्डक
(आलापक) कहने चाहिए। ७५. जीव-चौवीस दंडकों में प्रत्याख्यानी आदि का परूपणप. भंते ! क्या जीव प्रत्याख्यानी हैं, अप्रत्याख्यानी हैं या
प्रत्याख्यानाप्रत्याखानी हैं ? उ. गौतम ! जीव प्रत्याख्यानी भी हैं, अप्रत्याख्यानी भी हैं और
प्रत्याख्यानाप्रत्याख्यानी भी हैं। इसी प्रकार मनुष्य भी तीनों ही प्रकार के हैं। पंचेन्द्रिय तिर्यञ्चयोनिक जीव प्रारम्भ के विकल्प से रहित हैं, वे प्रत्याख्यानी नहीं होते हैं।
शेष सभी जीव वैमानिकों पर्यंत अप्रत्याख्यानी हैं। प. भंते ! इन प्रत्याख्यानी, अप्रत्याख्यानी और
प्रत्याख्यानाप्रत्याख्यानी जीवों में कौन किनसे अल्प यावत् विशेषाधिक हैं? उ. गौतम ! १. सबसे अल्प जीव प्रत्याख्यानी हैं।
२.(उनसे) प्रत्याख्यानाप्रत्याख्यानी असंख्यातगुणे हैं। ३. (उनसे) अप्रत्याख्यानी अनन्तगुणे हैं। पंचेन्द्रिय तिर्यञ्चयोनिक जीवों में प्रत्याख्यानाप्रत्याख्यानी जीव सबसे अल्प हैं और (उनसे) अप्रत्याख्यानी असंख्यातगुणे हैं। मनुष्यों में प्रत्याख्यानी मनुष्य सबसे अल्प हैं, (उनसे) प्रत्याख्यानाप्रत्याख्यानी संख्यातगुणे हैं और (उनसे भी)
अप्रत्याख्यानी असंख्यातगुणे हैं। ७६. जीव-जौवीसदंडकों में मूलोत्तरगुण प्रत्याख्यानी आदि का
प्ररूपणप. भंते ! क्या जीव मूलगुणप्रत्याख्यानी हैं, उत्तरगुणप्रत्याख्यानी
हैं या अप्रत्याख्यानी हैं ? उ. गौतम ! जीव (समुच्चयरूप में) मूलगुणप्रत्याख्यानी भी हैं,
उत्तरगुणप्रत्याख्यानी भी हैं और अप्रत्याख्यानी भी हैं। प. द.१. भंते ! क्या नैरयिक जीव मूलगुणप्रत्याख्यानी हैं, उत्तर
गुण प्रत्याख्यानी हैं या अप्रत्याख्यानी हैं ? उ. गौतम ! नैरयिक जीव मूलगुणप्रत्याख्यानी और
उत्तरगुणप्रत्याख्यानी नहीं हैं किन्तु अप्रत्याख्यानी हैं ? दं.२-१९. इसी प्रकार चतुरिन्द्रिय जीवों पर्यन्त कहना चाहिए। दं. २०-२१. पंचेन्द्रियतिर्यञ्चों और मनुष्यों के लिए (औधिक) जीवों के समान कहना चाहिए। दं.२२-२४. वाणव्यन्तर, ज्योतिष्क और वैमानिक देवों के लिए नैरयिक जीवों के समान कहना चाहिए।
प. जीवा णं भंते ! किं मूलगुणपच्चक्खाणी, उत्तरगुण
पच्चक्खाणी, अपच्चक्खाणी? उ. गोयमा ! जीवा मूलगुणपच्चक्खाणी वि, उत्तरगुण
पच्चक्खाणी वि, अपच्चक्खाणी वि। प. दं. १. नेरइया णं भंते ! किं मूलगुणपच्चक्खाणी,
उत्तरगुणपच्चक्खाणी, अपच्चक्खाणी? उ. गोयमा। नेरइया नो मूलगुणपच्चक्खाणी, नो उत्तरगुण
पच्चक्खाणी, अपच्चक्खाणी। दं.२-१९. एवं जाव चउरिंदिया। दं. २०-२१. पंचेंदियतिरिक्खजोणिया मणुस्सा य जहा जीवा। द. २२-२४. वाणमंतर-जोइसिय-वेमाणिया जहा नेरइया।
१. विया. स. ६ उ.४ सु.२१