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- १९९ ) २. उनमें से जो असंयत हैं वे चार क्रियाएं करते हैं, यथा
जीव अध्ययन २. तत्थ णं जे ते असंजया तेसि णं चत्तारि किरियाओ
कज्जंति,तं जहा१. आरंभिया, २. परिग्गहिया, ३. मायावत्तिया, ४. अपच्चक्वाणकिरिया। ३. तत्थ णं जे ते मिच्छादिट्ठी जे य सम्मामिच्छादिट्ठी
तेसिंणेयइयाओ पंच किरियाओ कज्जति,तं जहा१. आरंभिया जाव २. मिच्छादसणवत्तिया।
सेसंतं चेव। प. दं. २१. मणूसाणं भंते ! सव्वे समाहारा? सव्वे
समसरीरा? सव्वे समुस्सास णिस्सासा?
उ. गोयमा ! णो इणठे समठे। प. से केणट्टेणं भंते ! एवं वुच्चइ
'मणूसाणं णो सव्वे समाहारा, णो सव्वे समसरीरा, णो
सव्वे समुस्सास णिस्सासा? उ. गोयमा ! मणूसा दुविहा पण्णत्ता,तं जहा१. महासरीराय
२.अप्पसरीरा य। १. तत्थ णं जे ते महासरीरा ते णं बहुतराए पोग्गले
आहारेंति जाव बहुतराए पोग्गले णीससंति,
१. आरम्भिकी, २. पारिग्रहिकी, ३. मायाप्रत्यया, ४. अप्रत्याख्यानक्रिया। ३. उनमें से जो मिथ्यादृष्टि और सम्यग्मिथ्यादृष्टि हैं वे
निश्चित रूप से पांच क्रियाएं करते हैं, यथा१. आरम्भिकी यावत् ५. मिथ्यादर्शनप्रत्यया।
शेष-सब कथन पूर्ववत् जानना चाहिए। प्र. दं.२१. भंते ! क्या मनुष्य सभी समान आहार वाले हैं ? सभी
समान शरीर वाले हैं ? सभी समान उच्छ्वास-निःश्वास
वाले हैं ? उ. गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है। प्र. भंते ! किस कारण से ऐसा कहा जाता है कि
"सभी मनुष्य समान आहार वाले नहीं हैं ? सभी समान शरीर
वाले नहीं हैं ? सभी समान उच्छ्वास निःस्वास वाले नहीं है?" उ. गौतम ! मनुष्य दो प्रकार के कहे गए हैं, यथा
१. महाशरीर वाले २. अल्प शरीर वाले। १. उनमें से जो महाशरीर वाले हैं, वे बहुत से पुद्गलों का
आहार करते हैं यावत् बहुत से पुद्गलों का निःश्वास
छोड़ते हैं। कदाचित् आहार करते हैं यावत् कदाचित् नि-श्वास छोड़ते हैं।' २. उनमें से जो अल्पशरीर वाले हैं वे अल्पतर पुद्गलों का
आहार करते हैं यावत् अल्पतर पुदगलों का निःश्वास
छोड़ते हैं। बार-बार आहार लेते हैं यावत् बार-बार निःश्वास छोड़ते हैं, इस कारण से गौतम ! ऐसा कहा जता है कि"सभी मनुष्य समान आहार वाले नहीं हैं, सभी समान शरीर वाले नहीं हैं और सभी समान उच्छवास निःश्वास वाले
आहच्च आहारेंति जाव आहच्च णीससंति। २. तत्थ णं जे ते अप्पसरीरा ते णं अप्पतराए पोग्गले
आहारेंति जाव अप्पतराए पोग्गले णीससंति,
अभिक्खणं आहारेंति जाव अभिक्खणं णीससंति, से तेणढेणं गोयमा ! एवं वुच्चइ"मणूसा णो सव्वे समाहारा, णो सव्वे समसरीरा, णो सव्वे समुस्सासणिस्सासा।"
नहीं हैं।"
सेसं जहाणेरइयाणं। णवरं-किरियाहिं मणूसा तिविहा पण्णत्ता,तं जहा१. सम्मद्दिट्ठी, २. मिच्छादिट्ठी, ३. सम्मामिच्छादिट्ठी। १. तत्थ णं जे ते सम्मद्दिट्ठी ते तिविहा पण्णत्ता, तं
जहा१. संजया २. असंजया ३. संजयासंजया। १. तत्थ णं जे ते संजया ते दुविहा पण्णत्ता,तं जहा१. सरागसंजया य
२. वीयरागसंजया य। १. तत्थ णं जे ते वीयरागसंजया, ते णं अकिरिया।
शेष सब वर्णन (छः द्वार) नैरयिकों के समान कहने चाहिए। विशेष-क्रियाओं में मनुष्य तीन प्रकार के कहे गए हैं, यथा१. सम्यग्दृष्टि, २. मिथ्यादृष्टि ३. सम्यग्मिथ्यादृष्टि। १.. इनमें से जो सम्यग्दृष्टि हैं, वे तीन प्रकार के कहे गए
हैं,यथा१. संयत २. असंयत ३. संयतासंयत १. इनमें से जो संयत हैं, वे दो प्रकार के कहे गए हैं, यथा१. सरागसंयत २. वीतरागसंयत। १. इनमें से जो वीतरागसंयत हैं वे अक्रिय (क्रियारहित)
होते हैं,
१. विया. स. १, उ. २, सु. ९