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जीव अध्ययन
प. जीवे णं भंते ! ओरालियसरीरं निव्वत्तेमाणे किं अहिकरणी अहिकरण ?
उ. गोयमा ! अहिकरणी वि, अहिकरणं वि ।
प. से केणट्ठेणं भंते! एवं वुच्चइ
'ओरालिवसरीरं निव्यत्तेमाने अहिकरणी वि. अहिकरणं वि?'
उ. गोयमा ! अविरइं पडुच्चं ।
वि.
प. पुढविकाइए णं भन्ते ! ओरालियसरीरं निव्वत्तेमाणे किं अहिकरणी अहिकरणं ?
उ. गोयमा ! एवं चैव ।
से तेणट्ठेणं गोयमा ! एवं बुच्चद्द
ओरालिय सरीरं
अहिकरणं वि।
निव्वत्तेमाणे अहिकरणी
एवं जाव मस्से । एवं वेडब्बियसरीर वि वरं जस्स अत्थि ।
प. जीवे णं भन्ते ! आहारगसरीरं निव्वत्तेमाणं किं अहिकरणी अहिकरण ?
उ. गोयमा ! अहिकरणी वि अहिकरणं वि ।
प से केणट्ठेणं भंते ! एवं वच्चइ
"आहारगसरीरं निव्वतेमाणे अहिकरणी वि अहिकरणं वि?"
उ. गोयमा ! पमाई पडुच्च ।
से तेणट्ठेणं गोवमा ! एवं बुच्चद्द
'आहारण सरीरं निव्वत्तेमाणे अहिकरणी वि अहिकरणं वि ।'
एवं मस्से वि
तेयासरीरं जहा ओरालियं,
वरं - सव्वजीवाणं भाणियव्वं ।
- विया. स. १६, उ. १, सु. २१-२८
एवं कम्मगसरीर वि ८६. इंदिय निव्यत्तेमाणेसु जीयेसु अहिकरणी अहिकरण पलवर्ण
प. कति णं भंते! इंदिया पण्णत्ता ?
उ. गोयमा ! पंच इंदिया पण्णत्ता तं जहा
"
१. सोइंदिए जाव ५. फासिंदिए ।
-विया. स. १६, उ. १, सु. १९ प. जीवे णं सोइदियं निव्बत्तेमाणे किं अहिकरणी अहिकरणं ?
उ. गोयमा ! एवं जहेव ओरालियसरीरं तहेव सोइंदिय पि भाणियव्यं ।
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प्र. भंते! औदारिक शरीर को निष्पन्न करता (बांधता) हुआ जीव अधिकरणी है या अधिकरण है?
उ. गौतम ! वह अधिकरणी भी है और अधिकरण भी है। प्र. भंते! किस कारण से ऐसा कहा जाता है कि
'औदारिक शरीर को बांधता हुआ जीव अधिकरणी भी है। और अधिकरण भी है ?"
उ. गौतम ! अविरति की अपेक्षा ( जीव अधिकरणी भी है। अधिकरण भी है।)
इस कारण से गौतम ! ऐसा कहा जाता है कि
'औदारिक शरीर को बांधता हुआ जीव अधिकरणी भी है और अधिकरण भी है।'
प्र. भते । पृथ्वीकायिक जीव औदारिक शरीर को निष्पन्न करता हुआ अधिकरणी है या अधिकरण है?
उ. गौतम ! पूर्ववत् समझना चाहिए।
इसी प्रकार मनुष्य पर्यन्त जानना चाहिए।
इसी प्रकार वैक्रिय शरीर के विषय में भी जानना चाहिए। विशेष- जिस जीव के यह शरीर हो उसके लिए कहना चाहिए।
प्र. भंते ! आहारक शरीर को निष्पन्न करता हुआ जीव अधिकरणी है या अधिकरण है ?
उ. गौतम ! वह अधिकरणी भी है और अधिकरण भी है। प्र. भंते! किस कारण से ऐसा कहा जाता है कि
'जीव आहारक शरीर निष्पन्न करता हुआ अधिकरणी भी है। और अधिकरण भी है?
उ. गौतम ! प्रमाद की अपेक्षा ( वह अधिकरणी भी है और अधिकरण भी है।)
इस कारण से गौतम ! ऐसा कहा जाता है कि
'आहारक शरीर को निष्पन्न करता हुआ जीव अधिकरणी भी है और अधिकरण भी है । '
इसी प्रकार मनुष्य के विषय में भी जानना चाहिए। तैजस्शरीर का कथन औदारिक शरीर के समान जानना चाहिए।
विशेष-तैजसशरीर सम्बन्धी कथन सभी जीवों के लिए करना चाहिए।
इसी प्रकार कार्मण शरीर के लिए भी जानना चाहिए ।
८६. इन्द्रिय निष्पन्न करने वाले जीवों के अधिकरणी अधिकरण
का प्ररूपण
प्र. भंते! इन्द्रियां कितनी कही गई हैं ?
उ. गौतम ! इन्द्रियां पांच कही गई हैं, यथा
१. श्रोत्रेन्द्रिय यावत् ५ स्पर्शेन्द्रिय
प्र. भंते! श्रोत्रेन्द्रिय को निष्पन्न करता हुआ जीव अधिकरणी है। या अधिकरण है ?
उ. गौतम । औवारिक शरीर के समान श्रोत्रेन्द्रिय के लिए भी कहना चाहिए।