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जीव अध्ययन
- १८३ ) से तेणट्टेणं गोयमा ! एवं वुच्चइ
इस कारण से गौतम ! ऐसा कहा जाता है कि'सिय सासया, सिय असासया'।
'जीव कदाचित् शाश्वत है और कदाचित् अशाश्वत है।' प. दं.१.नेरइया णं भंते ! किं सासया असासया।
प्र. द.१. भन्ते ! क्या नैरयिक जीव शाश्वत हैं या अशाश्वत हैं ? उ. गोयमा ! एवं जहा जीवा तहा नेरइया वि।
उ. गौतम ! जिस प्रकार (औधिक) जीवों का कथन किया उसी
प्रकार नैरयिकों का भी कथन करना चाहिए। दं. २-२४. एवं जहा वेमाणिया सिय सासया सिय
द.२-२४. इसी प्रकार वैमानिकों पर्यन्त कहना चाहिए कि वे असासया। -विया. स.७, उ. २, सु.३६-३८
जीव कदाचित् शाश्वत हैं और कदाचित् अशाश्वत हैं। प. नेरइया भंते ! किं सासया असासया?
प्र. भन्ते ! क्या नैरयिक जीव शाश्वत हैं या अशाश्वत हैं ? उ. गोयमा ! सिय सासया, सिय असासया।
उ. गौतम ! नैरयिक जीव कदाचित् शाश्वत हैं और कदाचित्
अशाश्वत हैं। प. सेकेणठेणं भंते ! एवं वुच्चइ
प्र. भन्ते ! किस कारण से ऐसा कहा जाता है कि'नेरइया सिय सासया, सिया असासया?'
'नैरयिक जीव कदाचित् शाश्वत हैं और कदाचित्
अशाश्वत हैं ? उ. गोयमा ! अव्वोच्छित्तिणयट्ठयाए सासया,
उ. गौतम ! अव्युच्छित्ति (द्रव्यार्थिक) नय की अपेक्षा से नैरयिक वोच्छित्तिणयट्ठयाए असासया।
जीव शाश्वत हैं और व्युच्छित्ति (पर्यायार्थिक) नय की अपेक्षा
से नैरयिक जीव अशाश्वत हैं। से तेणठेणं गोयमा ! एवं वुच्चइ
इस कारण से गौतम ! ऐसा कहा जाता है कि'नेरइया सिय सासया, सिय असासया।'
'नैरयिक जीव कदाचित् शाश्वत हैं और कदाचित्
अशाश्वत हैं। दं. २-२४ एवं जाव वेमाणिया सिय सासया सिय
द.२-२४. इसी प्रकार वैमानिकों पर्यन्त कहना चाहिए कि वे असासया। -विया. स.७, उ.३, सु.२३-२४
कदाचित् शाश्वत हैं और कदाचित् अशाश्वत हैं। ९०. जीव-चउवीसदंडएसु सेय-निरेयत्त परूवणं
९०. जीव-चौबीस दंडकों में सकम्प निष्कम्पत्व का प्ररूपणप. जीवाणं भंते ! कि सेया, निरेया?
प्र. भन्ते ! जीव सैज (सकम्प) हैं या निरेज (निष्कम्प) हैं ? उ. गोयमा !जीवा सेया वि, निरेया वि।
उ. गौतम ! जीव सकम्प भी हैं और निष्कम्प भी हैं। प. से केणठेणं भंते ! एवं वुच्चइ
प्र. भन्ते ! किस कारण से ऐसा कहा जाता है कि"जीवा सेया वि, निरेया वि?'
___ 'जीव सकम्प भी हैं और निष्कम्प भी हैं ?' उ. गोयमा! जीवा दुविहा पन्नत्ता, तं जहा
उ. गौतम ! जीव दो प्रकार के कहे गए हैं, यथा१. संसारसमावन्नगाय २. असंसारसमावन्नगा य
१. संसार समापन्नक २. असंसारसमापन्नक। १.तत्थ णं जे ते असंसारसमावन्नगाते णं सिद्धा।
१. उनमें से जो असंसारसमापन्नक हैं, वे सिद्ध हैं। सिद्धाणं दुविहा पन्नत्ता,तंजहा
सिद्ध दो प्रकार के कहे गए हैं, यथा१. अणंतरसिद्धा य, २. परम्परसिद्धा य
१. अनन्तर सिद्ध २. परम्पर सिद्ध। १. तत्थ णं जे ते परम्परसिद्धा ते णं निरेया।
१. जो परम्पर सिद्ध हैं, वे निष्कम्प है, २. तत्थ णं जे ते अणंतरसिद्धा तेणं सेया।
२. जो अनन्तर सिद्ध हैं वे सकम्प हैं। प. ते णं भंते ! किं देसेया सव्वेया?
प्र. भन्ते ! वे (सकम्प अनन्तर सिद्ध) देशकम्पक हैं या सर्व
कम्पक हैं ? उ. गोयमा ! नो देसेया, सब्वेया।
उ. गौतम ! वे देशकम्पक नहीं हैं, सर्व कम्पक हैं। २. तत्थ णं जे ते संसारसमावन्नगा ते दुविहा पन्नत्ता, २. उनमें से जो संसारसमापन्नक जीव हैं, वे दो प्रकार के कहे तं जहा
गए हैं, यथा१. सेलेसिपडिवनगा य २. असेलेसिपडिवनगा य।
१. शैलेशी प्रतिपन्नक २. अशैलेशी प्रतिपन्नक १. तत्थ णं जे ते सेलेसिपडिवनगा ते णं निरेया।
१. जो शैलेशी प्रतिपन्नक हैं, वे निष्कम्प हैं, २. तत्थ णं जे ते असेलेसिपडिवनगा ते णं सेया।
२. जो अशैलेशी प्रतिपन्नक हैं, वे सकम्प हैं। प. तेणं भंते ! किं देसेया, सव्वेया?
प्र. भन्ते ! वे (अशैलेशी प्रतिपन्नक) देशकम्पक हैं या
सर्वकम्पक हैं ?