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णवर-जस्स अस्थि सोइंदिय।
एवं चक्खिदिय घाणिंदिय-जिमिंदिय फासिंदियाण वि।
णवरं-जाणियव्वं जस्स जं अत्थि।
-विया स. १६, उ.१,सु २९-३० ८७. जोग-निव्वत्तेमाणेसुजीवेसु अहिकरणी अहिकरण परूवणं-
द्रव्यानुयोग-(१) विशेष-जिन जीवों के श्रोत्रेन्द्रिय हो उनकी अपेक्षा ही यह कथन है। इसी प्रकार चक्षुरिन्द्रिय, घ्राणेन्द्रिय, जिह्वेन्द्रिय और स्पर्शेन्द्रिय के लिए भी जानना चाहिए। विशेष-जिन जीवों के जितनी इन्द्रियां हों, उनके विषय में
उसी प्रकार जानना चाहिए। ८७. योग-निष्पन्न करने वाले जीवों के अधिकरणी-अधिकरण का
प्ररूपणप्र. भन्ते ! योग कितने प्रकार के कहे गए हैं ? उ. गौतम ! तीन कहे गए हैं, यथा
१. मनोयोग २. वचनयोग ३. काययोग
प. कतिविहे णं भंते ! जोए पण्णत्ते?, उ. गोयमा ! तिविहे जोए पण्णत्ते,तं जहा१. मण जोए २. वइ जोए ३. कायजोए
-विया. स.१६, उ.१, सु.२० प. जीवे णं भंते ! मणजोगं निव्वत्तेमाणे किं अहिकरणी.
अहिकरणं? उ. गोयमा ! एवं जहेव सोइंदियं तहेव निरवसेस।
प्र. भन्ते ! मनोयोग को निष्पन्न करता हुआ जीव, अधिकरणी है
या अधिकरण है? उ. गौतम ! जैसे श्रोत्रेन्द्रिय के विषय में कहा, वही सब मनोयोग
के विषय में भी कहना चाहिए। वचनयोग के विषय में भी इसी प्रकार जानना चाहिए। विशेष-वचनयोग में एकेन्द्रियों का कथन नहीं करना चाहिए। इसी प्रकार काययोग के विषय में भी कहना चाहिए। विशेष-काययोग सभी जीवों के वैमानिकों पर्यन्त जानना
वइजोगो एवं चेव। णवरं-एगिदियवज्जाणं। एवं कायजोगो वि णवर-सव्वज्जीवाणं जाव वेमाणिए।
-विया. स. १६, उ.१,सु.३१-३३ ८८. जीव-चउवीसदंडएसु बालत्ताइ परूवणं
प. जीवाणं भंते ! किं बाला, पंडिया, बालपंडिया? उ. गोयमा !जीवा बाला वि,पंडिया वि, बालपंडिया वि।
प. दं.१.नेरइयाणं भंते ! किं बाला,पंडिया, बालपंडिया? उ. गोयमा ! नेरइया बाला, नो पंडिया, नो बालपंडिया।
दं.२-१९.एवं जाव चउरिंदियाणं। प. दं. २०. पंचिंदियतिरिक्खजोणियाणं भंते ! किं बाला,
पंडिया, बालपंडिया? उ. गोयमा! पंचिंदियतिरिक्खजोणिया बाला, नो पंडिया,
बालपंडिया वि। दं.२१. मणुस्सा जहा जीवा। दं.२२-२४.वाणमंतर-जोइसिय-वेमाणिया जहा नेरइया।
-विया.स.१७,उ.२,सु.११-१६ ८९. जीव-चउवीसदंडएसुसासयत्तासासयत्त परूवणं
प. जीवाणं भंते ! किं सासया, असासया? उ. गोयमा ! जीवा सिय सासया, सिय असासया। प. से केणठेणं भंते ! एवं वुच्चइ
'जीवा सिय सासया, सिय असासया?' उ. गोयमा ! दव्वट्ठयाए सासया, भावट्ठयाए असासया।
८८. जी चौबीस दंडकों में बालत्व आदि का प्ररूपण
प्र. भन्ते ! क्या जीव बाल है, पण्डित है या बालपण्डित है ? उ. गौतम ! जीव बाल भी है, पण्डित भी है और बालपंडित
भी है। प्र. दं.१.भन्ते ! नैरयिक बाल हैं, पण्डित हैं या बालपण्डित है ? उ. गौतम ! नैरयिक बाल हैं, किन्तु पण्डित और बालपण्डित
नहीं हैं।
दं.२-१९.इसी प्रकार चतुरिन्द्रिय जीवों पर्यन्त कहना चाहिए। प्र. दं.२०. भन्ते ! क्या पंचेन्द्रिय तिर्यञ्चयोनिक जीव बाल हैं,
पण्डित हैं या बालपण्डित हैं ? उ. गौतम ! पंचेन्द्रियतिर्यञ्चयोनिक जीव बाल हैं और
बालपण्डित हैं, किन्तु पण्डित नहीं हैं। दं.२१. मनुष्य का कथन (सामान्य) जीवों के समान है। दं.२२-२४. वाणव्यन्तर, ज्योतिष्क और वैमानिकों का कथन
नैरयिकों के समान है। ८९. जीव-चौबीस दंडकों में शाश्वतत्व अशाश्वतत्व का प्ररूपण
प्र. भन्ते ! क्या जीव शाश्वत हैं या अशाश्वत हैं ? उ. गौतम !जीव कदाचित् शाश्वत हैं और कदाचित् अशाश्वत हैं। प्र. भन्ते ! किस कारण से ऐसा कहा जाता है कि___'जीव कदाचित् शाश्वत हैं और कदाचित् अशाश्वत हैं ?' उ. गौतम ! द्रव्य की दृष्टि से जीव शाश्वत हैं और भाव (पर्याय)
की दृष्टि से जीव अशाश्वत हैं।