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________________ ( १८२ - णवर-जस्स अस्थि सोइंदिय। एवं चक्खिदिय घाणिंदिय-जिमिंदिय फासिंदियाण वि। णवरं-जाणियव्वं जस्स जं अत्थि। -विया स. १६, उ.१,सु २९-३० ८७. जोग-निव्वत्तेमाणेसुजीवेसु अहिकरणी अहिकरण परूवणं- द्रव्यानुयोग-(१) विशेष-जिन जीवों के श्रोत्रेन्द्रिय हो उनकी अपेक्षा ही यह कथन है। इसी प्रकार चक्षुरिन्द्रिय, घ्राणेन्द्रिय, जिह्वेन्द्रिय और स्पर्शेन्द्रिय के लिए भी जानना चाहिए। विशेष-जिन जीवों के जितनी इन्द्रियां हों, उनके विषय में उसी प्रकार जानना चाहिए। ८७. योग-निष्पन्न करने वाले जीवों के अधिकरणी-अधिकरण का प्ररूपणप्र. भन्ते ! योग कितने प्रकार के कहे गए हैं ? उ. गौतम ! तीन कहे गए हैं, यथा १. मनोयोग २. वचनयोग ३. काययोग प. कतिविहे णं भंते ! जोए पण्णत्ते?, उ. गोयमा ! तिविहे जोए पण्णत्ते,तं जहा१. मण जोए २. वइ जोए ३. कायजोए -विया. स.१६, उ.१, सु.२० प. जीवे णं भंते ! मणजोगं निव्वत्तेमाणे किं अहिकरणी. अहिकरणं? उ. गोयमा ! एवं जहेव सोइंदियं तहेव निरवसेस। प्र. भन्ते ! मनोयोग को निष्पन्न करता हुआ जीव, अधिकरणी है या अधिकरण है? उ. गौतम ! जैसे श्रोत्रेन्द्रिय के विषय में कहा, वही सब मनोयोग के विषय में भी कहना चाहिए। वचनयोग के विषय में भी इसी प्रकार जानना चाहिए। विशेष-वचनयोग में एकेन्द्रियों का कथन नहीं करना चाहिए। इसी प्रकार काययोग के विषय में भी कहना चाहिए। विशेष-काययोग सभी जीवों के वैमानिकों पर्यन्त जानना वइजोगो एवं चेव। णवरं-एगिदियवज्जाणं। एवं कायजोगो वि णवर-सव्वज्जीवाणं जाव वेमाणिए। -विया. स. १६, उ.१,सु.३१-३३ ८८. जीव-चउवीसदंडएसु बालत्ताइ परूवणं प. जीवाणं भंते ! किं बाला, पंडिया, बालपंडिया? उ. गोयमा !जीवा बाला वि,पंडिया वि, बालपंडिया वि। प. दं.१.नेरइयाणं भंते ! किं बाला,पंडिया, बालपंडिया? उ. गोयमा ! नेरइया बाला, नो पंडिया, नो बालपंडिया। दं.२-१९.एवं जाव चउरिंदियाणं। प. दं. २०. पंचिंदियतिरिक्खजोणियाणं भंते ! किं बाला, पंडिया, बालपंडिया? उ. गोयमा! पंचिंदियतिरिक्खजोणिया बाला, नो पंडिया, बालपंडिया वि। दं.२१. मणुस्सा जहा जीवा। दं.२२-२४.वाणमंतर-जोइसिय-वेमाणिया जहा नेरइया। -विया.स.१७,उ.२,सु.११-१६ ८९. जीव-चउवीसदंडएसुसासयत्तासासयत्त परूवणं प. जीवाणं भंते ! किं सासया, असासया? उ. गोयमा ! जीवा सिय सासया, सिय असासया। प. से केणठेणं भंते ! एवं वुच्चइ 'जीवा सिय सासया, सिय असासया?' उ. गोयमा ! दव्वट्ठयाए सासया, भावट्ठयाए असासया। ८८. जी चौबीस दंडकों में बालत्व आदि का प्ररूपण प्र. भन्ते ! क्या जीव बाल है, पण्डित है या बालपण्डित है ? उ. गौतम ! जीव बाल भी है, पण्डित भी है और बालपंडित भी है। प्र. दं.१.भन्ते ! नैरयिक बाल हैं, पण्डित हैं या बालपण्डित है ? उ. गौतम ! नैरयिक बाल हैं, किन्तु पण्डित और बालपण्डित नहीं हैं। दं.२-१९.इसी प्रकार चतुरिन्द्रिय जीवों पर्यन्त कहना चाहिए। प्र. दं.२०. भन्ते ! क्या पंचेन्द्रिय तिर्यञ्चयोनिक जीव बाल हैं, पण्डित हैं या बालपण्डित हैं ? उ. गौतम ! पंचेन्द्रियतिर्यञ्चयोनिक जीव बाल हैं और बालपण्डित हैं, किन्तु पण्डित नहीं हैं। दं.२१. मनुष्य का कथन (सामान्य) जीवों के समान है। दं.२२-२४. वाणव्यन्तर, ज्योतिष्क और वैमानिकों का कथन नैरयिकों के समान है। ८९. जीव-चौबीस दंडकों में शाश्वतत्व अशाश्वतत्व का प्ररूपण प्र. भन्ते ! क्या जीव शाश्वत हैं या अशाश्वत हैं ? उ. गौतम !जीव कदाचित् शाश्वत हैं और कदाचित् अशाश्वत हैं। प्र. भन्ते ! किस कारण से ऐसा कहा जाता है कि___'जीव कदाचित् शाश्वत हैं और कदाचित् अशाश्वत हैं ?' उ. गौतम ! द्रव्य की दृष्टि से जीव शाश्वत हैं और भाव (पर्याय) की दृष्टि से जीव अशाश्वत हैं।
SR No.090158
Book TitleDravyanuyoga Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1994
Total Pages910
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size32 MB
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