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जीव अध्ययन
घाणिंदिय जिभिंदिय फासिंदियाइं पडुच्च भोगी। से तेणठेणं गोयमा ! एवं वुच्चइ
'जीवा कामी वि, भोगी वि।' प. दं.१.नेरइया णं भंते ! किं कामी? भोगी? उ. गोयमा ! नेरइया कामी वि, भोगी वि।
दं.२-११. एवं जाव थणियकुमारा। प. दं.१२. पुढविकाइया णं भंते ! किं कामी ? भोगी? उ. गोयमा ! पुढविकाइया नो कामी, भोगी। प. से केणठेणं भंते ! एवं वुच्चइ
'पुढविकाइया नो कामी, भोगी?' उ. गोयमा ! फासिंदियं पडुच्च भोगी,
से तेणढेणं गोयमा ! एवं वुच्चइ'पुढविकाइया नो कामी, भोगी।' दं.१३-१६. एवं जाव वणस्सइकाइया।
दं. १७. बेइंदिया एवं चेव। णवरं-जिब्भिंदिय फासिंदियाइं पडुच्च भोगी।
दं.१८.तेइंदिया वि एवं चेव। णवरं-घाणिदिय-जिभिंदिय-फासिंदियाइं पडुच्च भोगी। प. दं.१९. चउरिंदियाणं भंते ! किं कामी ? भोगी? उ. गोयमा ! चउरिंदिया कामी वि, भोगी वि। प. से केणढेणं भंते! एवं वुच्चइ
'चउरिंदिया कामी विभोगी वि?' उ. गोयमा ! चक्विंदियं पडुच्च कामी,
घाणिंदिय-जिब्भिंदिय-फासिन्दियाइं पडुच्च भोगी। से तेणठेणं गोयमा! एवं वुच्चइ'चउरिंदिया कामी वि, भोगी वि'। दं.२०-२४.अवसेसा जहा जीवा जाव येमाणिया।
- १८९ ) घ्राणेन्द्रिय, जिह्वेन्द्रिय एवं स्पर्शेन्द्रिय की अपेक्षा जीव भोगी हैं। इस कारण से गौतम ! ऐसा कहा जाता है कि
'जीव कामी भी हैं और भोगी भी हैं।' प्र. दं.१. भंते ! नैरयिक जीव क्या कामी हैं या भोगी हैं ? उ. गौतम ! नैरयिक जीव कामी भी हैं और भोगी भी हैं।
दं.२-११. इसी प्रकार स्तनितकुमारों पर्यन्त कहना चाहिए। प्र. दं.१२. भंते ! पृथ्वीकायिक जीव क्या कामी हैं या भोगी हैं ? उ. गौतम ! पृथ्वीकायिक जीव कामी नहीं हैं किन्तु भोगी हैं। प्र. भन्ते ! किस कारण से ऐसा कहा जाता है कि
'पृथ्वीकायिक जीव कामी नहीं हैं किन्तु भोगी हैं ?' उ. गौतम ! स्पर्शेन्द्रिय की अपेक्षा भोगी हैं।
इस कारण से गौतम ! ऐसा कहा जाता है कि'पृथ्वीकायिक जीव कामी नहीं हैं किन्तु भोगी हैं।" दं.१३-१६. इसी प्रकार वनस्पतिकायिक जीवों पर्यन्त कहना चाहिए। दं. १७. इसी प्रकार द्वीन्द्रिय जीव भी भोगी हैं। विशेष-वे जिह्वेन्द्रिय और स्पर्शेन्द्रिय की अपेक्षा भोगी हैं।
दं. १८.त्रीन्द्रिय जीव भी इसी प्रकार भोगी हैं। विशेष-वे घ्राणिन्द्रिय, जिह्वेन्द्रिय और स्पर्शेन्द्रिय की अपेक्षा भोगी हैं।
प्र. दं.१९. भंते ! चतुरिन्द्रिय जीव कामी हैं या भोगी हैं? उ. गौतम ! चतुरिन्द्रिय जीव कामी भी हैं और भोगी भी हैं। प्र. भंते ! किस कारण से ऐसा कहा जाता है कि
'चतुरिन्द्रिय जीव कामी भी हैं और भोगी भी हैं?' उ. गौतम ! चक्षुइन्द्रिय की अपेक्षा कामी हैं,
घ्राणेन्द्रिय, जिह्वेन्द्रिय और स्पर्शेन्द्रिय की अपेक्षा भोगी हैं। इस कारण से गौतम ! ऐसा कहा जाता है कि'चतुरिन्द्रिय जीव कामी भी हैं और भोगी भी हैं।' दं. २०-२४. वैमानिकों पर्यन्त शेष सभी जीव औधिक जीवों
के समान (कामी भी हैं, भोगी भी हैं) कहना चाहिए। प्र. भंते ! कामभोगी, नोकामी नोभोगी और भोगी इन (तीन
प्रकार के) जीवों में से कौन किनसे अल्प यावत् विशेषाधिक हैं? उ. गौतम ! कामभोगी जीव सबसे अल्प हैं,
(उनसे) नोकामी नोभोगी जीव उनसे अनन्तगुणे हैं, (उनसे) भोगी जीव अनन्तगुणे हैं।
प. एएसि णं भंते ! जीवाणं काम भोगीणं, नोकामीणं
नोभोगीणं य कयरे कयरेहिंतो अप्पा वा भोगीणं जाव विसेसाहिया वा? उ. गोयमा ! सव्वत्थोवा जीवा कामभोगी,
नोकामी नोभोगी अणंतगुणा,
भोगी अणंतगुणा। -विया. स.७, उ.७, सु. १३-१९ ९५. जीव-चउवीसदंडएसु सिद्धेसु य पोग्गलि पोग्गलित्त परूवणं-
प. जीवेणं भंते ! किं पोग्गली पोग्गले? उ. गोयमा ! जीवे पोग्गली वि, पोग्गले वि। प. से केणठेणं भंते ! एवं वुच्चइ
'जीवे पोग्गली वि, पोग्गले वि?'
९५. जीव-चौवीसदंडक और सिद्धों में पुद्गली और पुद्गलत्व का
प्ररूपणप्र. भंते ! जीव पुद्गली हैं या पुद्गल हैं ? उ. गौतम ! जीव पुद्गली भी हैं और पुद्गल भी हैं। प्र. भंते ! किस कारण ऐसा कहा जाता है कि
'जीव पुद्गली भी हैं और पुद्गल भी हैं ?'