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जीव अध्ययन
उ. गोयमा ! दुविहा पन्नत्ता,तं जहा१. पज्जत्तगसव्वट्ठसिद्ध अणुत्तरोववाइय-कप्पाईय
वेमाणिय देवपंचेंदियजीवनिव्वत्तीय य, २. अपज्जत्तगसव्वट्ठसिद्धअणुत्तरोववाइय-कप्पाईयवेमाणिय देवपंचेंदियजीवनिव्वत्तीय।
-विया. स. १९, उ.८, सु.१-४ १९. संसारी सिद्ध जीवेसु सोवचयाइतं कालमान य परूवणं
- ११३ ।। उ. गौतम ! यह निवृत्ति दो प्रकार की कही गई है, यथा१. पर्याप्तसर्वार्थसिद्धअनुत्तरौपपातिक वैमानिक देव
पंचेन्द्रिय जीवनिर्वृत्ति, २. अपर्याप्तसर्वार्थसिद्ध अनुत्तरौपपातिक वैमानिक
देवपंचेन्द्रियजीव निवृत्ति।
प. जीवा णं भंते ! किं सोवचया, सावचया,
सोवचयसावचया, निरुवचयनिरवचया ?
उ. गोयमा ! जीवा णो सोवचया, नो सावचया, नो
सोवचयसावचया, निरुवचयनिरवचया। एगिंदिया तइपयदे, सेसा जीवा चउहिं वि पएहिं
भाणियव्वा। प. सिद्धा णं भंते ! किं सोवचया जाव निरुवचयनिरवचया? उ. गोयमा ! सिद्धा सोवचया, णो सावचया, णो
सोवचयसावचया, निरुवचयनिरवचया। प. जीवाणं भंते ! केवइयं कालं निरुवचयनिरवचया? उ. गोयमा ! सव्वद्ध। प. नेरइया णं भंते ! केवइयं कालं सोवचया? उ. गोयमा ! जहन्नेणं एक समयं, उक्कोसेणं आवलियाए
असंखेज्जइभागं। प. केवइयं कालं सावचया? उ. गोयमा ! एवं चेव। प. नेरइया णं भंते ! केवइयं कालं सोवचयसावचया? उ. गोयमा ! एवं चेव। प. नेरइया णं भंते ! केवइयं कालं निरुवचयनिरवचया? उ. गोयमा !जहन्नेणं एक्कं समयं, उक्कोसेणं बारस मुहुत्ता।
१९. संसारी और सिद्ध जीवों में सोपचयादित्व और कालमान का
प्ररूपणप्र. भंते ! क्या जीव सोपचय (उपचयसहित) हैं, सापचय
(अपचयसहित) हैं, सोपचय-सापचय (उपचय-अपचय सहित) हैं या निरुपचय निरपचय (उपचय अपचय
रहित) हैं? उ. गौतम ! जीव सोपचय, सापचय और सोपचय-सापचय नहीं
है किन्तु निरुपचयनिरुपचय हैं। एकेन्द्रिय जीवों में तीसरा विकल्प सोपचय-सापचय कहना
चाहिए। शेष सब जीवों में चारों विकल्प कहने चाहिए। प्र. भंते ! क्या सिद्ध सोपचय यावत् निरुपचय-निरपचय हैं ? उ. गौतम ! सिद्ध सोपचय हैं, निरुपचय-निरपचय हैं किन्तु
सापचय और सोपचय-सापचय नहीं हैं। प्र. भंते ! जीव कितने काल तक निरुपचय-निरपचय रहते हैं ? उ. गौतम ! जीव सर्वकाल तक (निरुपचय-निरपचय) रहते हैं। प्र. भंते ! नैरयिक कितने काल तक सोपचय रहते हैं ? उ. गौतम ! जघन्य एक समय और उत्कृष्ट आवलिका के
असंख्यात भाग तक नैरयिक सोपचय रहते हैं। प्र. भंते ! नैरयिक कितने काल तक सापचय रहते हैं ? उ. गौतम ! पूर्ववत् जानना चाहिए। प्र. भंते ! नैरयिक सोपचय-सापचय कितने काल तक रहते हैं ? उ. गौतम ! पूर्ववत् जानना चाहिए। प्र. भंते ! नैरयिक कितने काल तक निरुपचय-निरपचय रहते हैं ? उ. गौतम ! नैरयिक जीव जघन्य एक समय और उत्कृष्ट बारह
मुहूर्त तक निरुपचय-निरपचय रहते हैं। सभी एकेन्द्रिय जीव सर्वकाल सोपचय-सापचय रहते हैं। शेष सभी जीव सोपचय भी हैं, सापचय भी हैं, सोपचय सापचय भी है और निरुपचय निरपचय भी हैं। इन चारों का काल जघन्य एक समय और उत्कृष्ट आवलिका का असंख्यातवां भाग है।
अवस्थिति का काल व्युत्क्रांति पद के अनुसार जानना चाहिए। प्र. भंते ! सिद्ध कितने काल तक सोपचय रहते हैं ? उ. गौतम ! जघन्य एक समय और उत्कृष्ट आठ समय तक वे
सोपचय रहते हैं। प्र. भंते ! सिद्ध निरुपचय-निरपचय कितने काल तक रहते हैं ? उ. गौतम ! वे जघन्य एक समय और उत्कृष्ट छह मास तक
निरुपचय-निरपचय रहते हैं।
एगिंदिया सव्वे सोवचयसावचया सव्वद्ध। सेसा सव्वे सोवचया वि, सावचया वि, सोवचयसावचया वि, निरुवचयनिरवचया वि जहन्नेणं एक्कं समयं, उक्कोसेणं आवलियाए असंखेज्जइ भार्ग,
अवट्ठिएहिं वक्वंतिकालो भाणियव्यो।' प. सिद्धा णं भंते ! केवइयं कालं सोवचया? उ. गोयमा ! जहन्नेणं एक्कं समयं, उक्कोसेणं अट्ठ समया।
प. सिद्धाणं भंते ! केवइयं कालं निरुवचयनिरवचया ? उ. गोयमा !जहन्नेणं एक्कं समयं, उक्कोसेणं छम्मासा।
-विया. स. ५, उ.८,सु.२१-२८ १. वकंति अध्ययन देखें। -पण्ण, प.६