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जीव अध्ययन
- १३९)
(१) रुक्खप्पगाराप. से किं तं रूक्खा ? उ. रूक्खा दुविहा पण्णत्ता,तं जहा
१. एगट्ठिया य, २. बहुबीयगाय।
(क) एगट्ठियाप. से किं तं एगट्ठिया ?
उ. एगट्ठिया अणेगविहा पण्णत्ता,तं जहाणिबंब जंबु कोसंब साल अंकोल्ल पीलु सेलू य। सल्लइ मोयइ मालुय बउल पलासे करंजे य॥ पुत्तजीवय रिटे बिभेलए हरडए य भल्लाए। उंबेभरिया खीरिणि बोधव्वे धायइ पियाले॥ पूईकरंज सेण्हा (सहा) तह सीसवा य असणे य। पुण्णागणागरूक्खे सीवण्णि तहा असोगे य॥ जे यावऽण्णे तहप्पगारा।
एएसिणं मूला वि असंखेज्जजीविया, कंदा वि, खंधा वि, तया वि, साला वि, पवाला वि। पत्ता पत्तेयजीविया। पुप्फा अणेगजीविया।फला एगट्ठिया। सेतं एगट्ठियार
(ख) बहुबीयगा प. से किं तं बहुबीयगा। उ. बहुबीयगा अणेगविहा पण्णत्ता,तं जहा
अस्थिय तिंदु कविढे अंबाडग माउलिंग बिल्ले य। आमलग फणस दाडिम आसोत्थे उंबर वडे य॥ णग्गोह णंदिरूक्खे पिपरि सयरी पिलुक्खरूक्खे य। काउंबरि कुत्युंभरि बोधव्वा देवदाली य॥ तिलए लउए छत्तोह सिरीसे सत्तिवण्ण दहिवण्णे। लोद्ध धव चंदणऽज्जुण णीमे कुडए कयंबे य॥ जे यावऽण्णे तहप्पगारा।
(१) वृक्ष के प्रकारप्र. वे वृक्ष कितने प्रकार के हैं ? उ. वृक्ष दो प्रकार के कहे गए हैं, यथा
१. एकास्थिक, २. बहुबीजक। - (क) एकास्थिक-(एक गुठली वाले)प्र. एकास्थिक (प्रत्येक फल में एक बीज-गुठली वाले) वृक्ष कितने
.प्रकार के हैं ? उ. एकास्थिक वृक्ष अनेक प्रकार के कहे गए हैं, यथा
नीम, आम, जामुन, कोशम्ब, शाल, अंकोल्ल, पीलू, शेलु, सल्लकी, मोचकी, मालुक, बकुल, पलाश, करंज। पुत्रजीवक, अरिष्ट, बिभीतक, हरड, भल्लातक, उब्भेभरिया, खीरणि, धातकी और प्रियाल। पूतिक, करन्ज, श्लक्ष्ण तथा शीशपा, अशन और पुन्नाग, नागवृक्ष, श्रीपर्णी और अशोक; (ये एकास्थिक वृक्ष हैं।) इसी प्रकार के अन्य जितने भी वृक्ष हों, (जो विभिन्न देशों में उत्पन्न होते हैं तथा जिनके फल में एक ही गुठली हो; उन सबको एकास्थिक ही समझना चाहिए।) इन (एकास्थिक वृक्षों) के मूल असंख्यात जीवों वाले होते हैं, तथा कन्द भी, स्कन्ध भी,त्वचा भी, शाखा भी और प्रवाल भी असंख्यात जीव वाले हैं, किन्तु इनके पत्ते प्रत्येक जीव वाले होते हैं। फूल अनेक जीव वाले होते हैं। इनके फल एकास्थिक होते हैं। यह एकास्थिक वृक्ष का वर्णन हुआ। (ख) बहुत बीज वाले प्र. बहुबीजक वृक्ष कितने प्रकार के हैं ? उ. बहुबीजक वृक्ष अनेक प्रकार के कहे गए हैं, यथा
अस्थिक, तेन्दुक, कपित्थ, अम्बाडग, मातुलिंग, बिल्व, आमलक, फनस, दाडिम, अश्वत्थ, उदुम्बर, वट। न्यग्रोध नन्दिवृक्ष, पिप्पली, शतरी, प्लक्षवृक्ष, कादुम्बरी, कस्तुम्भरी और देवदाली जानना चाहिए। तिलक, लवक, छत्रोपक, शिरीष, सप्तपर्ण, दधिपर्ण, लोध्र, धव, चन्दन, अर्जुन, नीप, कुरज और कदम्ब। इसी प्रकार के और भी जितने वृक्ष हैं, (जिनके फल में बहुत बीज हों; वे सब बहुबीजक वृक्ष समझने चाहिए।) इनके मूल असंख्यात जीवों वाले होते हैं। इनके कन्द, स्कन्ध, त्वचा, शाखा और प्रवाल भी (असंख्यात जीवात्मक होते हैं।) इनके पत्ते प्रत्येक जीवात्मक होते हैं। पुष्प अनेक जीवरूप और फल बहुत बीजों वाले हैं। यह बहुबीजक वृक्षों की प्ररूपणा हुई, यह वृक्षों का वर्षन है।
एएसिंणं मूला वि असंखेज्जजीविया, कंदा वि, खंधा वि, तया वि,साला वि,पवाला वि। पत्ता पत्तेयजीविया, पुप्फा अणेगजीविया, फला बहुबीया।
सेतं बहुबीयगा।सेतं रुक्खा । -पण्ण. प.१, सु. ३९-४१
१. जीवा. पडि. १, सु. २० २. जीवा. पडि.१,सु.२०
३. जीवा. पडि. १, सु. २०