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जीव अध्ययन
प. से किंतं बायरतेउक्काइया ? उ. १.बायरतेउक्काइया अणेगविहा पण्णत्ता,तं जहा
इंगाले, जाला, मुम्मुरे, अच्ची, अलाए,' सुद्धागणी, उक्का, विज्जू, असणी, णिरग्घाए, संघरिससमुट्ठिए सूरकंतमणिणिस्सिए, जेयावऽण्णे तहप्पगारा।
२. ते समासओ दुविहा पण्णत्ता, तं जहा
१. पज्जत्तया य, २. अपज्जत्तया यार ३. तत्थ णं जे ते अपज्जत्तया तेणं असंपत्ता।
४. तत्थ णं जे ते पज्जत्तया एएसि णं वण्णादेसेणं गंधादेसेणं रसादेसेणं फासादेसेणं सहस्सगसो विहाणाई, संखेज्जाई जोणिप्पमुहसयसहस्साई पज्जत्तगणिस्साए अपज्जत्तया वक्कमंति-जत्थ एगो तत्थ णियमा असंखेज्जा।
सेतं बायरतेउक्काइया।सेतं तेउक्काइया।३
, -पण्ण. प. १, सु. २९-३१ ५४. वाउकायजीवपण्णवणा
प. से किं तं वाउक्काइया ? उ. वाउक्काइया दुविहा पण्णत्ता,तं जहा
१. सुहुमवाउक्काइया य, २. बायरवाउक्काइया या प. से किं तं सुहुमवाउक्काइया ? । उ. सुहुमवाउक्काइया दुविहा पण्णत्ता,तं जहा
१. पज्जत्तयसुहुमवाउक्काइयाय, २. अपज्जत्तयसुहुमवाउक्काइयाय।
सेतं सुहमवाउक्काइया। प. से किं तं बायरवाउक्काइया ? उ. १.बायरवाउक्काइया अणेगविहा पण्णत्ता,तं जहा
पाईणवाए, पडीणवाए, दाहिणवाए, उदीणवाए, उड्ढवाए, अहोवाए, तिरियवाए, विदिसीवाए,६ वाउब्भामे, वाउक्कलिया, वायमंडलिया, उक्कालियावाए, मंडलियावाए, गुंजावाए, झंझावाए, संवट्टगवाए, घणवाए, तणुवाए,सुद्धवाए, जे यावऽण्णे तहप्पगारे।
१३७ ) प्र. बादर तेजस्कायिक कितने प्रकार के हैं ? उ. १. बादर तेजस्कायिक अनेक प्रकार के कहे गए हैं, यथा
अंगार, ज्वाला, मुर्मुर, अर्चि, अलात, शुद्ध अग्नि, उल्का, विद्युत, अशनि, निघात, संघर्ष-समुत्थित और सूर्यकान्तमणिनिःसृत। इसी प्रकार की अन्य जो भी अग्नियां हैं उन्हें बादर
तेजस्कायिकों के रूप में समझना चाहिए। २. ये (उपर्युक्त बादर तेजस्कायिक) संक्षेप में दो प्रकार के कहे
गए हैं, यथा१. पर्याप्तक,
२. अपर्याप्तक। ३. उनमें से जो अपर्याप्तक हैं, वे (पूर्ववत्) असम्प्राप्त (अपने
योग्य पर्याप्तियों को पूर्णतया अप्राप्त) हैं। ४. उनमें से जो पर्याप्तक हैं, उनके वर्ण, गन्ध, रस और स्पर्श की
अपेक्षा से हजारों भेद होते हैं। उनके संख्यात लाख योनि-प्रमुख हैं। पर्याप्तक (तेजस्कायिकों) के आश्रय से अपर्याप्त (तेजस्कायिक) आकर उत्पन्न होते हैं। जहाँ एक पर्याप्तक होता है, वहां नियम से असंख्यात अपर्याप्तक उत्पन्न होते हैं। यह हुई बादर तेजस्कायिक जीवों की प्ररूपणा। (साथ ही)
तेजस्कायिक जीवों की भी प्ररूपणा हुई। ५४. वायुकायिक जीवों की प्रज्ञापना
प्र. वायुकायिक जीव कितने प्रकार के हैं ? उ. वायुकायिक जीव दो प्रकार के कहे गए हैं, यथा
१. सूक्ष्म वायुकायिक, २. बादर वायुकायिक। प्र. सूक्ष्म वायुकायिक कितने प्रकार के हैं ? उ. सूक्ष्म वायुकायिक जीव दो प्रकार के कहे गए हैं, यथा
१. पर्याप्तक सूक्ष्म वायुकायिक, २. अपर्याप्तक सूक्ष्म वायुकायिक।
यह (पूर्वोक्त) सूक्ष्म वायुकायिकों का वर्णन है। प्र. बादर वायुकायिक कितने प्रकार के हैं ? उ. १.बादर वायुकायिक अनेक प्रकार के कहे गए हैं, यथा
पूर्वी वायु, पश्चिमी वायु, दक्षिणी वायु, उत्तरी वायु, ऊर्ध्ववायु, अधोवायु, तिर्यग्वायु, विदिग्वायु, वातोभ्रम, वातोत्कलिका, वातमण्डलिका, उत्कलिकावात, मण्डलिकावात, गुंजावात, झंझावात, संवर्तकवात, घनवात, तनुवात और शुद्धवात। अन्य जितनी भी इस प्रकार की हवाएं हैं, उन्हें भी बादर वायुकायिक ही समझना चाहिए।
१. २.
(क) ठाणं अ. ५, उ. ३, सु. ४४४ (४) (क) ठाणं अ.२, उ.१, सु. ६३ (क) उत्त. अ. ३६, गा. १०८, १०९,११० (ख) जीवा. पडि. १, सु. २५ (क) उत्त. अ. ३६, गा.११७ (ख) जीवा. पडि. १, सु. २६
(ग) ठाणं अ. २, उ.१, सु. ६३ (क) उत्त. अ. ३६, गा. ११७ (ख) जीवा. पडि. १, सु. २६ (ग) ठाणं अ. ५, उ. ३ सु. ४४४ (क) ठाणं अ. २, उ.१, सु. ६३ (ख) ठाणं अ.७, सु. ५४७
४.
६.