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२. ते समासओ दुविहा पण्णत्ता,तंजहा
१. पज्जत्तया य, २. अपज्जत्तया या ३. तत्थ णं जे ते अपज्जत्तया ते णं असंपत्ता।
४. तत्थ णं जे ते पज्जत्तया एएसि णं वण्णादेसेणं गंधादेसेणं रसादेसेणं फासादेसेणं सहस्सग्गसो विहाणाई, संखेज्जाई जोणिप्पमुहसयसहस्साई। पज्जत्तगणिस्साए अपज्जत्तया वक्कमंति-जत्थ एगो तत्थ णियमा असंखेज्जा।
सेतं बायरवाउक्काइया।से तं वाउक्काइया।
-पण्ण.प.१,सु.३२-३४ ५५. वणस्सइकायजीवपण्णवणा
प. से किं तंवणस्सइकाइया ? उ. वणस्सइकाइया दुविहा पण्णत्ता, तंजहा
१. सुहुमवणस्सइकाइयाय,
२. बायरवणस्सइकाइया या प. से किं तं सुहुमवणस्सइकाइया ? उ. सुहुमवणस्सइकाइया दुविहा पणत्ता,तं जहा
१. पज्जत्तसुहमवणस्सइकाइया य, २. अपज्जत्तसुहुमवणस्सइकाइया य।
सेतं सुहुमवणस्सइकाइया। प. से किं तं बायरवणस्सइकाइया ? उ. बायरवणस्सइकाइया दुविहा पण्णत्ता,तं जहा
१. पत्तेयसरीरबायरवणस्सइकाइया य,
२. साहारणसरीरबायरवणस्सइकाइया या प. से किं तं पत्तेयसरीरबायरवणस्सइकाइया ?
द्रव्यानुयोग-(१) २. बादर वायुकायिक संक्षेप में दो प्रकार के कहे गए हैं, यथा
१. पर्याप्तक, २. अपर्याप्तक। ३. इनमें से जो अपर्याप्तक हैं, वे असम्प्राप्त (अपने योग्य
पर्याप्तियों को पूर्ण नहीं किए ) हैं। ४. इनमें से जो पर्याप्तक हैं, उनके वर्ण की अपेक्षा से, गन्ध की
अपेक्षा से, रस की अपेक्षा से और स्पर्श की अपेक्षा से हजारों प्रकार होते हैं। इनके संख्यात लाख योनिप्रमुख होते हैं। पर्याप्तक वायुकायिक के आश्रय से अपर्याप्तक उत्पन्न होते हैं। जहां एक (पर्याप्तक वायुकायिक) होता है वहां नियम से असंख्यात (अपर्याप्तक वायुकायिक) होते हैं। यह बादर वायुकायिक का वर्णन हुआ। (साथ ही),
वायुकायिक जीवों की (प्ररूपणा पूर्ण हुई।) ५५. वनस्पतिकायिकों की प्रज्ञापना
प्र. वे (पूर्वोक्त) वनस्पतिकायिक जीव कितने प्रकार के हैं ? उ. वनस्पतिकायिक दो प्रकार के कहे गए हैं, यथा
१. सूक्ष्म वनस्पतिकायिक,
२. बादर वनस्पतिकायिक। प्र. वे सूक्ष्म वनस्पतिकायिक जीव कितने प्रकार के हैं ? उ. सूक्ष्म वनस्पतिकायिक जीव दो प्रकार के कहे गए हैं, यथा
१. पर्याप्तक सूक्ष्म वनस्पतिकायिक, २. अपर्याप्तक सूक्ष्म वनस्पतिकायिक।
यह हुआ सूक्ष्म वनस्पतिकायिक (का निरूपण)। प्र. बादर बनस्पतिकायिक कितने प्रकार के हैं ? उ. बादर वनस्पतिकायिक दो प्रकार के कहे गए हैं, यथा
१. प्रत्येक शरीर बादर वनस्पतिकायिक,
२. साधारण शरीर बादर वनस्पतिकायिक। प्र. प्रत्येक शरीर-बादर वनस्पतिकायिक जीव कितने प्रकार
के हैं? उ. प्रत्येक शरीर-बादर वनस्पतिकायिक जीव बारह प्रकार के
कहे गए हैं, यथा-गाथार्थ१. वृक्ष, २. गुच्छ, ३. गुल्म, ४. लता, ५. वल्ली, ६, पर्वग,
८. वलय, ९. हरित, १०. औषधि, ११. जलरुह, १२. कुहण। ये बारह प्रकार के प्रत्येक शरीर-बादर वनस्पतिकायिक जीव समझने चाहिए।
उ. पत्तेयसरीरबायरवणस्सइकाइया दुवालसविहा पण्णत्ता,
तंजहा-गाहा१. रूक्खा , २. गुच्छा, ३, गुम्मा, ४. लया य, ५. वल्ली य, ६. पव्वगा चेव। ७. तण, ८. वलय, ९. हरिय, १०. ओसहि, ११. जलरुह, १२. कुहणा य,
बोधव्वा॥६ -पण्ण.प.१,सु.३५-३८
१.
२.
(क) जीवा. पडि.५, सु. २१० (ख) ठाणं अ. २, उ.१,सु. ६३ (क) उत्त. अ. ३६, गा. ११८,११९ (ख) जीवा. पडि. १, सु. २६ (ग) ठाणं अ. २, उ.१,सु. ६३ (क) उत्त. अ. ३६, गा. ९२ (ख) जीवा. पडि. १, सु. १८ (क) उत्त. अ. ३६, गा. ९२
५.
(ख) जीवा. पडि. १, सु. १९ (ग) जीवा. पडि.५, सु. २१० (घ) ठाणं अ.२, उ.१, सु. ६३ (क) उत्त. अ.३६,गा. ९३ (ख) जीवा. पडि.१,सु. १९ (क) उत्त. अ.३६, गा. ९४-९५ (ख) जीवा. पडि. १,सु. २०
३.
६.
४.