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जीव अध्ययन
६३. तेइंदियजीवपण्णवणा
प से किं तं तेइदियसंसारसमावण्णजीवपण्णवणा ?
उ. १. तेइंदियसंसारसमावण्णजीवपण्णवणा अणेगविहा पण्णत्ता तं जहा
ओवइया रोहिणिया कुंथू पिपीलिया उद्दंसगा उद्देहिया उक्कलिया उप्पाया उक्कडा उप्पडा तणाहारा कट्ठाहारा मालुया पत्ताहारा तणविटिया पत्तविटिया पुष्कविटिया फलविंटिया बीयविंटिया तेदुरणमज्जिया तउसमिंजिया कप्पाससिमिजिया हिल्लिया झिल्लिया झिंगिरा किंगिरिडा पाहुया सुभगा सोवच्छिया सुयविंटा इंदिकाइया इंदगोवया उरूलुंचगा कोत्थलवाहगा जूया हालाहला पिसुआ ततवाइया गोम्ही हत्थिसोंडा ।
जे यावऽण्णे तप्पगारा। सब्वे ते सम्मुच्छिमा नपुंसगा ।
२. ते समासओ दुविहा पण्णत्ता, तं जहा
१. पज्जत्तया य, २. अप्पज्जत्तया य ।
एएसि णं एवमाइयाणं तेइंदियाणं पञ्जत्ताऽपञ्जत्ताणं अट्ठ जाइकुलकोडिजोणिप्पमुहसयसहस्सा भवंती मदवायें।
सेतं तेइंदियसंसारसमावण्णजीवपण्णवणा।'
६४. चउरिंदियजीवपण्णवणा
प से किं तं चउरिंदियसंसारसमावण्णजीवपण्णवणा ?
- पण्ण. प. १, सु. ५७
उ. १. चउरिदियसंसारसमावण्णजीवपण्णवणा अणेगविहा पण्णत्ता, तं जहा
अधिय पेत्तिय मच्छिय मगमिगकीडे तहा पयंगे य ढिकुण कुकुड कुकु णंदावत्ते य सिंगिरिडे ।
किण्हपत्ता नीलपत्ता लोहियपत्ता हलिद्दपत्ता सुक्किलपत्ता चित्तपक्खा विचित्तपक्खा ओभंजलिया जलचारिया गंभीरा णीणिया तंतबा अच्छिरोडा अच्छिवेहा सारंगा णेउला दोला भमरा भरिली जरूला तोट्ठा विच्छुया पत्तविच्छुया छाणविच्छुया जलविच्छुया पियंगाला कणगा गोमय कीडगा ।
जे यावS तहप्पगारा । सव्वेते सम्मुच्छिमा, नपुंसगा ।
२. ते समासओ दुविहा पण्णत्ता, तं जहा
१. (क) उत्त. अ. ३६, गा. १३६-१३९
(ख) जीवा. पडि १, सु. २९
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६३. श्रीन्द्रिय जीवों की प्रज्ञापना
प्र. त्रीन्द्रिय संसारसमापन्नक जीव की प्रज्ञापना कितने प्रकार की है?
उ. १. त्रीन्द्रिय संसारसमापन्नक जीवों की प्रज्ञापना अनेक प्रकार की कही गई है, यथा
औपयिक, रोहिणीक, कुन्छु, पिपीलिका, उद्देशक, उद्देहिका, उत्कलिक, उत्पाद, उत्कट, उत्पट, तृणाहार, काष्ठाहार, मालुक, पत्राहार, तृणवृन्तिक, पत्रवृन्तिक, पुष्पवृन्तिक, फलवृन्तिक, बीजवृन्तिक, तेदुरणज्जिक, पुषमिजिक, कार्पासास्थिमिजिक, हिल्लिक, झिल्लिक, झिंगिरा, किगिरिट, बाहुक, लघुक, सुभग, सौवस्तिक, शुकवृन्त, इन्द्रिकायिक, इन्द्रगोपक, उरूलुंचक, कुस्थलवाहक, यूका, हालाहल, पिशुक, वतपादिका, गोम्ही और हस्तिशोण्ड |
इसी प्रकार के जितने भी अन्य जीव हो, उन्हें त्रीन्द्रिय संसार समापन्नक समझना चाहिए। ये सब सम्मूर्च्छिम और नपुंसक हैं। २. ये (पूर्वोक्त त्रीन्द्रिय जीव) संक्षेप में, दो प्रकार के कहे गए हैं,
यथा
१. पर्याप्तक, २. अपर्याप्तक।
इन पर्याप्तक और अपर्याप्तक त्रीन्द्रिय जीवों के आठ लाख जाति कुल-कोटि-योनि प्रमुख होते हैं, ऐसा कहा है।
यह प्रीन्द्रिय संसारसमापत्रक जीवों की प्रज्ञापना हुई।
६४. चतुरिन्द्रिय जीवों की प्रज्ञापना
प्र. चतुरिन्द्रिय संसारसमापन्नक जीवों की प्रज्ञापना कितने प्रकार की है?
उ. १. चतुरिन्द्रिय संसारसमापत्रक जीवों की प्रज्ञापना अनेक प्रकार की कही गई है, यथा
अधिक, नेत्रिक, मक्खी, मगमृगकीट तथा पतंगा, दिंकुण, कुक्कुड, कुक्कु, नन्द्यावर्त और गिरिट
कृष्णपत्र, नीलपत्र, लोहितपत्र हारिद्रपत्र, शुक्लपत्र, चित्रपक्ष, विचित्रपक्ष, अवभांजलिक, जलचारिक, गम्भीर, नीनिक, तन्तव, अक्षिरोट, अक्षिवेध, सारंग, नेवल, दोला, भ्रमर, भरिली, जरूल्ला, तोट, बिच्छू, पत्रवृश्चिक, छानवृश्चिक, जलवृश्चिक, प्रियंगाल, कनक और गोमयकीट ।
इसी प्रकार के जितने भी अन्य प्राणी हैं, उन्हें भी चतुरिन्द्रिय समझना चाहिए। ये (पूर्वोक्त) सभी चतुरिन्द्रिय सम्मूर्च्छिम और नपुसंक है।
२. वे संक्षेप में दो प्रकार के कहे गए हैं, यथा