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जीव अध्ययन
११७ ) (२) तीन प्रकार
उनमें से जो सर्व जीवों को तीन प्रकार का कहते हैं वे इस प्रकार कहते हैं, यथा१. सम्यग्दृष्टि, २. मिथ्यादृष्टि, ३. सम्यग् मिथ्यादृष्टि।
अथवा सभी जीव तीन प्रकार के कहे गए हैं, यथा१. परित्त, २. अपरित्त, ३. नो परित्त नो अपरित्त।
अथवा सभी जीव तीन प्रकार के कहे गए हैं, यथा१. पर्याप्तक, २. अपर्याप्तक, ३. नो पर्याप्तक नो अपर्याप्तक।
अथवा सभी जीव तीन प्रकार के कहे गए हैं, यथा१. सूक्ष्म, २. बादर, ३. नो सूक्ष्म नो बादर।
(२) तिविहत्तं
तत्थ णं जे ते एवमाहंसु-“तिविहा सव्वजीवा पण्णत्ता" ते एवमाहंसु,तं जहा१. सम्मद्दिट्ठी, २. मिच्छाद्दिट्ठी, ३. सम्मामिच्छादिट्ठी।
-जीवा पडि.९, सु. २३७ अहवा तिविहा सव्वजीवा पण्णत्ता,तं जहा१. परित्ता,
२. अपरित्ता, ३. नो परित्ता नो अपरित्ता।
-जीवा. पडि.९, सु. २३८ अहवा तिविहा सव्वजीवा पण्णत्ता,तं जहा१. पज्जत्तया,
२. अपज्जत्तया, ३. नो पज्जत्तया नो अपज्जत्तया।
__-जीवा. पडि.९, सु.२३९ अहवा तिविहा सव्वजीवा पण्णत्ता,तं जहा१. सुहुमा,
२. बायरा ३. नो सुहुमा नो बायरा।
-जीवा. पडि.९, सु. २४० अहवा तिविहा सव्वजीवा पण्णत्ता,तं जहा१. सण्णी,
२. असण्णी , ३. नो सण्णी नो असण्णी।
-जीवा. पडि.९, सु. २४१ अहवा तिविहा सव्वजीवा पण्णत्ता,तं जहा१. भवसिद्धिया २. अभवसिद्धिया, ३. नो भवसिद्धिया नो अभवसिद्धिया।'
-जीवा. पडि.९, सु. २४२ अहवा तिविहा सव्वजीवा पण्णत्ता,तं जहा१. तसा,
२. थावरा, ३. नो तसा नो थावरा।
-जीवां पडि.९, सु. २४३ (३) चउव्विहत्तं
तत्थ णं जे ते एवमाहंसु-"चउव्विहा सव्वजीवा पण्णत्ता", ते एव माहंसु,तं जहा१. मणजोगी,
२. वइजोगी, ३. कायजोगी, ४. अजोगी।
-जीवा पडि.९, सु.२४४ अहवा चउव्विहा सव्वजीवा पण्णत्ता,तंजहा१. इत्थिवेयगा, २. पुरिसवेयगा, ३. नपुंसगवेगया, ४. अवेयगा।
-जीवा. पडि.९, सु. २४५ अहवा चउव्विहा सव्वजीवा पण्णत्ता,तं जहा
अथवा सभी जीव तीन प्रकार के कहे गए हैं, यथा१. संज्ञी, २. असंज्ञी, ३. नो संज्ञी नो असंज्ञी।
अथवा सभी जीव तीन प्रकार के कहे गए हैं, यथा१. भवसिद्धिक, २. अभवसिद्धिक, ३. नो भवसिद्धिक नो अभवसिद्धिक।
अथवा सभी जीव तीन प्रकार के कहे गए हैं, यथा१. त्रस, २. स्थावर, ३. नो त्रस, नो स्थावर।
चार प्रकारउनमें से जो सर्व जीवों को चार प्रकार का कहते हैं वे इस प्रकार कहते हैं, यथा१. मनयोगी, २. वचनयोगी, ३. काययोगी, ४. अयोगी।
अथवा सभी जीव चार प्रकार के कहे गए हैं, यथा१. स्त्रीवेदक, २. पुरुषवेदक, ३. नपुंसकवेदक, ४. अवेदक।
अथवा सभी जीव चार प्रकार के कहे गए हैं, यथा
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ठाणं अ.३.उ.२,सु.१७०