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जीव अध्ययन
एगिंदिया वड्दति वि, हायंति वि,अवट्ठिया वि।
एएहिं तिहि वि जहन्नेणं एवं समयं, उक्कोसेणं आवलियाए असंखेज्जइ भाग। बेइंदिया वड्दति हायंति तहेव, अवट्ठिया जहन्नेणं एक्वं समयं, उक्कोसेणं दो अंतोमुहुत्ता। एवं जाव चउरिंदिया। अवसेसा सव्वे वड्दति, हायंति तहेव।
अवट्ठियाणं णाणत्तं इम,तं जहासम्मुच्छिम पंचिदियतिरिक्खजोणियाणं दो अंतोमुत्ता। गब्भवक्कंतियाणं चउव्वीसं मुहुत्ता। सम्मुच्छिममणुस्साणं अट्ठचत्तालीसं मुहुत्ता। गब्भवक्कंतियमणुस्साणं चउव्वीसं मुहूत्ता। वाणमंतर जोइस सोहम्मीसाणेसु अट्ठचत्तालीसं मुहुत्ता।
सणंकुमारे अट्ठारस राइंदियाइं चालीस य मुहुत्ता, माहिंदे चउवीसं राइंदियाइं वीस य मुहुत्ता, बंभलोएपंच चत्तालीसं राइंदियाई लंतए नउइं राइंदियाई। महासुक्के सट्ठ राइंदिय सयं। सहस्सारे दो राइंदियसयाइं। आणय-पाणयाणं संखेज्जा मासा। आरणऽच्चुयाणं संखेज्जाइ वासाई।
११५ एकेन्द्रिय जीव बढ़ते भी हैं, घटते भी हैं और अवस्थित भी रहते हैं। इन तीनों की वृद्धि, हानि अवस्थिति का काल जघन्य एक समय और उत्कृष्ट आवलिका का असंख्यातवां भाग है। द्वीन्द्रिय जीव भी इसी प्रकार बढ़ते-घटते हैं। इनका अवस्थिति-काल एक समय और उत्कृष्ट दो अन्तर्मुहूर्त है। इसी प्रकार चतुरिन्द्रिय जीवों पर्यन्त कहना चाहिए। शेष सब जीवों (पंचेन्द्रिय तिर्यञ्चों से वैमानिकों तक) के वृद्धि हानि का कथन पूर्व की तरह करना चाहिए। उनके अवस्थान काल में यह भिन्नता है, यथासम्मूर्छिम पंचेन्द्रिय तिर्यग्योनिक जीवों का दो अन्तर्मुहूर्त, गर्भजपंचेन्द्रिय तिर्यञ्चयोनिकों का चौबीस मुहूर्त, सम्मूर्छिम मनुष्यों का अड़चालीस (४८) मुहूर्त, गर्भज मनुष्यों का चौबीस मुहूर्त, वाणव्यन्तर ज्योतिष्क और सौधर्म, ईशान देवों का अड़चालीस (४८) मुहूर्त, सनत्कुमार देवों का अठारह रात दिन और चालीस मुहूर्त, माहेन्द्र देवलोक के देवों का चौबीस रातदिन और बीस मुहूर्त, ब्रह्मलोक के देवों का पैंतालीस रातदिन, लान्तक देवों का नब्बे रातदिन, महाशुक्र के देवों का एक सौ साठ दिन, सहस्रार कल्प के देवों का दो सौ रातदिन, आनत और प्राणत देवलोक के देवों का संख्यात मास, आरण और अच्युत देवलोक के देवों का संख्यात वर्षों का अवस्थान काल है। इसी प्रकार इतना ही नौ ग्रैवेयक देवों का भी अवस्थान काल जान लेना चाहिए। विजय वैजयन्त जयन्त और अपराजित विमानवासी देवों का अवस्थान काल असंख्यात हजार वर्षों का है। सर्वार्थसिद्ध विमानवासी देवों का अवस्थानकाल पल्योपम का संख्यातवाँ भाग है। ये सब जघन्य एक समय और उत्कृष्ट आवलिका के असंख्यातवें भाग तक बढ़ते घटते हैं, इस प्रकार कहना चाहिए
और इनका अवस्थानकाल जो ऊपर कहा गया है वही है। प्र. भंते ! सिद्ध कितने काल तक बढ़ते हैं? उ. गौतम ! सिद्ध जघन्य एक समय और उत्कृष्ट आठ समय तक
बढ़ते हैं। प्र. भंते ! सिद्ध कितने काल तक अवस्थित रहते हैं ? उ. गौतम ! सिद्ध जघन्य एक समय और उत्कृष्ट छह मास तक
___ अवस्थित रहते हैं। २१. विविध विवक्षा से सभी जीवों के भेद
(१) दो प्रकार१. उनमें से जो सभी जीवों को दो प्रकार का कहते हैं,
यथा-वे इस प्रकार कहते हैं।
एवं गेवेज्जगदेवाणं।
विजय-वेजयंत-जयंत-अपराजियाणं असंखेज्जाई वाससहस्साई। सव्वट्ठसिद्ध य पलिओवमस्स संखेज्जेइभागो।
एवं भाणियब्वं-वड्दति हायंति जहन्नेणं एक्कं समयं, उक्कोसेणं आवलियाए असंखेज्जइ भागं, अवट्ठियाणं जं
भणियं। प. सिद्धाणं भंते ! केवइयं कालं वड्दति? उ. गोयमा! जहण्णेणं एक्कं समयं, उक्कोसेणं अट्ठ समया।
प. केवइयं कालं अवट्ठिया? उ. गोयमा ! जहन्नेणं एवं समयं, उक्कोसेणं छम्मासा।
-विया. स.५, उ.८, सु.१०-२० २१. विहिह-विवक्खया सव्व जीवाणं भेया(१) दुविहत्तं
तत्थ णं जे ते एवामाहंसु-दुविहा सव्वजीवा पण्णत्ता, तं जहा-ते एवमाहंसु,