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पर्याय अध्ययन
से तेणटेणं गोयमा ! एवं वुच्चइ"बेइंदियाणं अणंता पज्जवा पण्णत्ता।" एवं तेइंदिया वि। एवं चउरिंदिया वि।
णवरं-दो दंसणा-१.चक्खुदंसणं, २.अचक्खुदंसणं च।
पहा
दं.२०. पंचेंदिय-तिरिक्खजोणियाणं पज्जवपमाणंपंचेंदिय-तिरिक्खजोणियाणं पज्जवाजहा नेरइयाणं तहा भाणियव्वा।
दं.२१. मणुस्साणं पज्जवपमाणंप. मणुस्साणं भंते ! केवइया पज्जवा पण्णता? उ. गोयमा ! अणंता पज्जवा पण्णत्ता। प. से केणटेणं भंते ! एवं वुच्चइ
"मणुस्साणं अणंता पज्जवा पण्णत्ता?" उ. गोयमा ! मणुस्से मणुसस्स
(१) दव्वट्ठयाए तुल्ले, (२) पदेसठ्ठयाए तुल्ले, (३) ओगाहणट्ठयाए चउट्ठाणवडिए, (४) ठिईए चउठाणवडिए, (५) वण्ण, (६) गंध, (७) रस, (८) फास, (९) आभिणिबोहियणाण-सुयणाण-ओहिणाण-मणपज्जवणाणपज्जवेहि य छट्ठाणवडिए।
इस कारण से गौतम ! ऐसा कहा जाता है कि"द्वीन्द्रिय जीवों के अनन्त पर्याय हैं।" इसी प्रकार त्रीन्द्रिय जीवों के पर्यायों के लिए जानना चाहिए। इसी प्रकार चतुरिन्द्रिय जीवों के पर्यायों के लिए जानना चाहिए। विशेष-उनमें १. चक्षुदर्शन और २. अचक्षुदर्शन ये दो दर्शन भी होते हैं। दं.२०. पंचेन्द्रिय तिर्यञ्चयोनिकों के पर्यायों का परिमाणपंचेन्द्रिय तिर्यञ्चयोनिक जीवों के पर्यायों का कथन नैरयिकों के समान कहना चाहिए।
दं.२१. मनुष्यों के पर्यायों का परिमाणप्र. भंते ! मनुष्यों के कितने पर्याय कहे गए हैं ? उ. गौतम ! अनन्तपर्याय कहे गये हैं। प्र. भंते ! किस कारण से ऐसा कहा जाता है कि
"मनुष्यों के अनन्त पर्याय हैं? उ. गौतम ! एक मनुष्य दूसरे मनुष्य से
(१) द्रव्य की अपेक्षा तुल्य है, (२) प्रदेशों की अपेक्षा भी तुल्य है, (३) अवगाहना की अपेक्षा चतुःस्थानपतित है, (४) स्थिति की अपेक्षा भी चतुःस्थानपतित है, (५) वर्ण, (६) गन्ध, (७) रस, (८) स्पर्श, (९) आभिनिबोधिक ज्ञान, श्रुतज्ञान, अवधिज्ञान एवं मनःपर्यवज्ञान के पर्यायों की अपेक्षा षट्स्थानपतित (हीनाधिक) है। केवलज्ञान के पर्यायों की अपेक्षा तुल्य है, (१०) तीन अज्ञान तथा (११) तीन दर्शन (के पर्यायों) की अपेक्षा षट्स्थानपतित है, केवलदर्शन के पर्यायों की अपेक्षा तुल्य है। इस कारण से गौतम ! ऐसा कहा जाता है कि"मनुष्यों के अनन्त पर्याय हैं।" दं.२२-२४. वाणव्यन्तर-ज्योतिष्क और वैमानिक देवों के पर्यायों का परिमाणवाणव्यन्तर देव (३) अवगाहना और (४) स्थिति की अपेक्षा चतुःस्थानपतित हैं। (५-११) वर्णादि के पर्यायों की अपेक्षा षट् स्थानपतित हैं। ज्योतिष्क और वैमानिक देवों (के पर्यायों) की (हीनाधिकता) भी इसी प्रकार कहनी चाहिए। विशेष-स्थिति की अपेक्षा त्रिस्थानपतित (हीनाधिक) समझना चाहिए।
केवलणाणपज्जवेहिं तुल्ले, (१०) तिहिं अण्णाणपज्जवेहिं, (११) तिहिं दंसणपज्जवेहिं छट्ठाणवडिए, केवलदसणपज्जवेहिं तुल्ले। से तेणटेणं गोयमा ! एवं वुच्चइ"मणुस्साणं अणंता पज्जवा पण्णत्ता।" दं.२२-२४.वाणमंतर-जोइसिय-वेमाणियाणं पज्जवपमाणं
वाणमंतरा (३) ओगाहणट्ठयाए (४) ठिईए य चउट्ठाणवडिए ५.-११.वण्णादीहिं छट्ठाणवडिए। जोइसिया-वेमाणिया वि एवं चेव।
णवरं-ठिईए-तिट्ठाणवडिया। -पण्ण. प.५,सु.४४०-४५४