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पर्याय अध्ययन
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१. संखेज्जगुणहीणे वा, २. असंखेज्जगुणहीणे वा, ३. अणंतगुणहीणे वा। अह अब्भहिए१. अणंतभाग अब्भहिए वा, २. असंखेज्जइभाग अब्भहिए वा, ३. संखेज्जइभाग अब्भहिए वा। १. संखेज्जगुण अब्भहिए वा, २. असंखेज्जगुण अब्भहिए वा, ३. अणंतगुण अब्भहिए वा। एवं अवसेस (५) वण्ण, (६) गंध, (७) रस, (८) फासपज्जवेहि यछट्ठाणवडिए। फासा णं सीय-उसिण-निद्धलुक्खेहिं छट्ठाणवडिए।
१. संख्यातगुण हीन है, २. असंख्यातगुण हीन है ३. अनन्तगुण हीन है। यदि अधिक है तो१. अनन्तवां भाग अधिक है, २. असंख्यातवां भाग अधिक है, ३. संख्यातवां भाग अधिक है। १. संख्यातगुण अधिक है, २. असंख्यातगुण अधिक है, ३. अनन्तगुण अधिक है। इसी प्रकार शेष (५) वर्ण, (६) गन्ध, (७) रस और (८) स्पर्श के पर्यायों की अपेक्षा षट्स्थानपतित है। स्पर्शों में शीत, उष्ण, स्निग्ध और रूक्ष स्पर्शों की अपेक्षा षट्स्थानपतित है। इस कारण से गौतम ! ऐसा कहा जाता है कि"परमाणु-पुद्गलों के अनन्त पर्याय हैं।"
से तेणटेणं गोयमा ! एवं वुच्चइ"परमाणुपोग्गलाणं अणंता पज्जवा पण्णत्ता।"
-पण्ण.प.५ सु.५०४ ९. खंधाणं पज्जवपमाणं
प. दुपदेसियाणं खंधाणं भंते ! केवइया पज्जवा पण्णता? उ. गोयमा ! अणंता पज्जवा पण्णत्ता। प. से केणतुणं भंते ! एवं वुच्चइ
“दुपदेसियाणं खंधाणं अणंता पज्जवा पण्णत्ता?" उ. गोयमा ! दुपदेसिए खंधे दुपदेसियस्स खंधस्स
(१) दव्वट्ठयाए तुल्ले, (२) पदेसट्ठयाए तुल्ले, (३) ओगाहणट्ठयाए-१. सिय हीणे, २. सिय तुल्ले,
३.सिय अब्भहिए। जइ हीणे-पदेसहीणे, अह अब्भहिए-पदेसमब्महिए, (४) ठिईए चउट्ठाणवडिए। (५) वण्णाइहिं उवरिल्लेहिं चउहिं फासेहि य
छट्ठाणवडिए। से तेणटेणं गोयमा ! एवं वुच्चइ"दुपदेसियाणं खंधाणं अणंता पज्जवा पण्णत्ता।" एवं तिपदेसिए वि,
९. स्कन्धों के पर्यायों का परिमाण
प्र. भंते ! द्विप्रदेशिक स्कन्धों के कितने पर्याय कहे गए हैं? उ. गौतम ! अनन्त पर्याय कहे गए हैं। प्र. भंते ! किस कारण से ऐसा कहा जाता है कि
"द्विप्रदेशी स्कन्धों के अनन्त पर्याय हैं ?" उ. गौतम ! एक द्विप्रदेशिक स्कन्ध, दूसरे द्विप्रदेशिक स्कन्ध से
(१) द्रव्य की अपेक्षा तुल्य है, (२) प्रदेशों की अपेक्षा तुल्य है, (३) अवगाहना की अपेक्षा-१. कदाचित् हीन है,
२. कदाचित् तुल्य है, ३. कदाचित् अधिक है। यदि हीन है तो-एक प्रदेश हीन है, यदि अधिक है तो-एक प्रदेश अधिक है, (४) स्थिति की अपेक्षा चतुःस्थानपतित है, (५) वर्ण आदि की अपेक्षा और उपर्युक्त चार (शीत, उष्ण,
स्निग्ध और रूक्ष) स्पर्शों की अपेक्षा षट्स्थानपतित है। इस कारण से गौतम ! ऐसा कहा जाता है कि"द्विप्रदेशी स्कन्धों की अनन्त पर्याय हैं।" इसी प्रकार त्रिप्रदेशिक स्कन्धों के पर्यायों का कथन करना चाहिए। विशेष-अवगाहना की अपेक्षा-१. कदाचित् हीन है, २. कदाचित् तुल्य है, ३. कदाचित् अधिक है। यदि हीन है तो-एक प्रदेश से हीन है या दो प्रदेश से हीन है। यदि अधिक है तो-एक प्रदेश से अधिक है या दो प्रदेश से अधिक है।
णवर-ओगाहणट्ठयाए-१. सिय हीणे, २. सिय तुल्ले, ३.सिय अब्भहिए। जइ हीणे-पदेसहीणे वा, दुपदेसहीणे वा। अह अब्महिए-पदेसमब्महिए वा, दुपदेसमब्महिए वा।