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७. (क) णाणपरिणामेणं-आभिणिबोहियणाणी वि,
सुयणाणी वि,ओहिणाणी वि, ७. (ख) अण्णाणपरिणामेणं--मइ अण्णाणी वि, सुय
अण्णाणी वि, विभंगणाणी वि, ८. दंसणपरिणामेणं-सम्मट्ठिी वि, मिच्छद्दिट्ठी वि,
सम्मामिच्छद्दिट्ठी वि, ९. चरित्तपरिणामेणं - नो चरित्ती, नो चरित्ताचरित्ती,
अचरिती, १०. वेदपरिणामेणं-नो इत्थिवेयगा, नो पुरिसवेयगा,
णपुंसगवेयगा। दं.२-११ असुरकुमारा वि एवं चेव,
१. णवरं-गइपरिणामेणं-देवगइया,
४. लेस्सा परिणामेणं-कण्हलेस्सा विजाव तेउलेस्सा वि, १०. वेद परिणामेणं - इत्थि वेयगा वि, पुरिस वेयगा वि, नो
नपुंसगवेयगा, सेसं तं चेव एवं जाव थणियकुमारा।
दं.१२-१६. पुढविकाइया १. गइपरिणामेणं-तिरियगइया, २. इंदियपरिणामेणं-एगिंदिया, ३. कसायपरिणामेणं-जहा नेरइयाणं, ४. लेस्सा परिणामेणं कण्हलेस्सा विजाव तेउलेस्सा वि, ५. जोगपरिणामेणं-कायजोगी, ६. उवओग परिणामेणं-जहा नेरइयाणं, ७. (क) नाण परिणामो नत्थि, (ख) अण्णाणपरिणामेणं-मइ अण्णाणी वि, सुय
अण्णाणी वि, ८. दंसणपरिणामेणं-मिच्छट्ठिी , ९. चरित्तपरिणामेणं-अचरित्ती, १०. वेदपरिणामेणं-नपुंसगवेयगा,
एवं आउ-वणस्सइकाइया वि,
द्रव्यानुयोग-(१) ७. (क) ज्ञानपरिणाम से आभिनिबोधिक (मति) ज्ञानी,
श्रुतज्ञानी और अवधिज्ञानी हैं, (ख) अज्ञानपरिणाम से मति-अज्ञानी, श्रुत-अज्ञानी और
विभंगज्ञानी हैं, ८. दर्शन-परिणाम से सम्यग्दृष्टि, मिथ्यादृष्टि और
सम्यग्मिथ्यादृष्टि है, चारित्रपरिणाम से चारित्री और चारित्राचारित्री नहीं हैं, किन्तु
अचारित्री हैं, १०. वेद-परिणाम से (नारकजीव) स्त्रीवेदी, पुरुषवेदी नहीं हैं किन्तु
नपुंसकवेदी हैं। दं. २-११ असुरकुमारों का कथन (२, ३, ४, ५, ६, ७, ८,
९) भी इसी प्रकार है १. विशेष-वे गतिपरिणाम से देवगति वाले हैं, ४. लेश्यापरिणाम से कृष्णलेश्यी यावत् तेजोलेश्यी हैं, १०. वेदपरिणाम से स्त्रीवेदी और पुरूषवेदी हैं, किन्तु नपुंसकवेदी
नहीं हैं। शेष (परिणामों का कथन) पूर्ववत् (नैरयिकों के समान) है। इसी प्रकार स्तनितकुमारों पर्यन्त कहना चाहिए।
द.१२.१६. पृथ्वीकायिकजीव १. गतिपरिणाम से तिर्यञ्चगति वाले हैं, २. इन्द्रियपरिणाम से एकेन्द्रिय हैं, ३. कषायमय परिणाम से नैरयिकों के समान हैं। ४. लेश्यापरिणाम से कृष्णलेश्यी यावत् तेजोलेश्यी हैं। ५. योगपरिणाम से काययोगी हैं। ६. उपयोग परिणाम से नैरयिकों के समान हैं। ७. (क) ज्ञानपरिणाम नहीं होता है (ख) अज्ञानपरिणाम से मति-अज्ञानी और श्रुत अज्ञानी हैं
(किन्तु विभंगज्ञानी नहीं होते) ८. दर्शनपरिणाम से मिथ्यादृष्टि होते हैं, ९. चारित्र परिणाम से ये अचरित्री (पांच चारित्र रहित) होते हैं। १०. वेद परिणाम से नपुंसकवेदी हैं।
इसी प्रकार अप्कायिकों और वनस्पतिकायिकों के परिणामों का कथन करना चाहिए। तेजस्कायिकों एवं वायुकायिकों का कथन भी इसी प्रकार है। विशेष-लेश्यापरिणाम से नैरयिकों के समान (तीन लेश्याएं) हैं।
दं.१७.१९ द्वीन्द्रियजीव १. गतिपरिणाम से तिर्यञ्चगति वाले हैं, २. इन्द्रियपरिणाम से दो इन्द्रियों वाले हैं, ३. कषाय परिणाम से नैरयिकों के समान हैं, ४. लेश्या परिणाम से नैरयिकों के समान हैं, . ५. योगपरिणाम से वचनयोगी और काययोगी हैं, ६. उपयोग परिणाम से नैरयिकों के समान हैं,
तेऊ-वाऊ एवं चेव णवरं-लेस्सा परिणामेणं,जहा नेरइया
दं.१७-१९ बेइंदिया १. गइ परिणामेणं तिरियगइया, २. इंदिय परिणामेणं-बेइंदिया, ३. कसाय-परिणामेणं जहा नेरइयाणं, ४. लेस्सा-परिणामेणं जहा नेरइयाणं, ५. जोगपरिणामेणं-वइजोगी वि,कायजोगी वि, ६. उवओगपरिणामेणं-जहा नेरइयाणं,