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पर्याय अध्ययन
(५) वण्ण, (६) गंध, (७) रस, (८) फासपज्जवेहि य
__ छट्ठाणवडिए, (९) केवलणाणपज्जवेहिं, (१०) केवलदसणपज्जवेहि य तुल्ले। से तेणटेणं गोयमा ! एवं वुच्चइ"केवलणाणीणं मणुस्साणं अणंता पज्जवा पण्णत्ता।" एवं केवलदंसणी विमणूसे भाणियब्वे। दं.२२-२४. वाणमंतर-जोइसिय-वेमाणियाणं ओगाहणाइ विवक्खया पज्जवपमाणंवाणमंतरा जहा असुरकुमारा।
(५) वर्ण, (६) गन्ध, (७) रस, (८) स्पर्श के पर्यायों की
अपेक्षा षट्स्थानपतित है, (९) केवलज्ञान के पर्यायों (१०) केवलदर्शन के पर्यायों की अपेक्षा तुल्य है। इस कारण से गौतम ! ऐसा कहा जाता है कि"केवलज्ञानी मनुष्यों के अनन्त पर्याय हैं।" इसी प्रकार केवलदर्शनी मनुष्यों के लिए भी कहना चाहिए। दं. २२-२४. अवगाहनादि की अपेक्षा से वाणव्यंतर, ज्योतिष्क और वैमानिक के पर्यायों का परिमाणवाणव्यन्तर देवों के पर्यायों का कथन असुरकुमारों के समान है। ज्योतिष्कों और वैमानिक देवों के पर्यायों का कथन इसी प्रकार है। विशेष-स्वस्थान में स्थिति की अपेक्षा त्रिस्थानपतित कहना चाहिए। यह जीव के पर्यायों की प्ररूपणा हुई।
एवं जोइसिया माणिया।
णवरं-सट्ठाणे ठिईए तिट्ठाणवडिए भाणियव्वे। .
सेत्तं जीवपज्जवा।
-पण्ण.प.५, सु.४५५-४९९ ७. अजीवपज्जवाणं भेयप्पभेया पमाणं य
प. अजीवपज्जवा णं भंते !कइविहा पण्णत्ता ? उ. गोयमा ! दुविहा पण्णत्ता, तं जहा
१.रूविअजीवपज्जवा य,२.अरूविअजीवपज्जवा य। प. अरूविअजीवपज्जवा णं भंते ! कइविहा पण्णत्ता ? उ. गोयमा ! दसविहा पण्णत्ता,तं जहा
(१) धम्मत्थिकाए, (२) धम्मत्थिकायस्स देसे, (३) धम्मत्थिकायस्स पदेसा, (४) अधम्मत्थिकाए, (५) अधम्मत्थिकायस्स देसे, (६) अधम्मत्थिकायस्स पदेसा, (७) आमासस्थिकाए, (८) आगासत्थिकायस्स देसे, (९) आगासत्थिकायस्स पदेसा (१०) अद्धासमए। प. रूविअजीवपज्जवाणं भंते ! कइविहा पण्णत्ता? उ. गोयमा ! चउव्विहा पण्णत्ता,तं जहा१. खंधा,
२. खंधदेसा, ३. खंधपदेसा, ४. परमाणुपोग्गले। प. रूवीअजीवपज्जवा णं भंते ! किं संखेज्जा, असंखेज्जा,
अणंता? उ. गोयमा !नो संखेज्जा, नो असंखेज्जा, अणंता। प. सेकेणट्ठणं भंते ! एव वुच्चइ
७. अजीव पर्यायों के भेद-प्रभेद और उनका परिमाण
प्र. भंते ! अजीव पर्याय कितने प्रकार के कहे गए हैं? उ. गौतम ! दो प्रकार के कहे गए हैं, यथा
१. रूपी अजीव पर्याय, २. अरूपी अजीव पर्याय। प्र. भंते ! अरूपी अजीव कितने प्रकार के कहे गए हैं ? उ. गौतम ! वे दस प्रकार के कहे गए हैं। यथा
(१) धर्मास्तिकाय, (२) धर्मास्तिकाय के देश, (३) धर्मास्तिकाय के प्रदेश, (४) अधर्मास्तिकाय, (५) अधर्मास्तिकाय के देश, (६) अधर्मास्तिकाय के प्रदेश, (७) आकाशास्तिकाय, (८) आकाशास्तिकाय के देश, (९) आकाशास्तिकाय के प्रदेश, (१०) अद्धासमय। प्र. भंते ! रूपी अजीव के पर्याय कितने प्रकार के कहे गए हैं ? उ. गौतम ! वे चार प्रकार के कहे गए हैं, यथा१. स्कन्ध,
२. स्कन्ध के देश, ३. स्कन्ध के प्रदेश, ४. परमाणु पुद्गल। प्र. भंते ! रूपी अजीव पर्याय संख्यात हैं, असंख्यात हैं या
अनन्त हैं? उ. गौतम ! वे संख्यात और असंख्यात नहीं है किन्तु अनन्त हैं। प्र. भंते ! किस कारण से ऐसा कहा जाता है कि