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पर्याय अध्ययन
जइहीणे-पदेसहीणे,
अह अब्भहिए-पदेस अब्भहिए ।
(४) ठिईए चउट्ठाणवडिए,
(५-८) वण्ण-गंध-रसपज्जवेहिं छट्टाणवडिए,
सीयफासपज्जवेहिं तुल्ले, उसिणनिद्धलुक्खफासपज्जवेहिं छट्टाणवडिए ।
णणं गोयमा ! एवं वुच्चइ
"जहण्णगुणसीयाणं दुपदेसियाणं खंधाणं अणंता पज्जवा पण्णत्ता ।"
एवं उक्कोसगुणसीए वि
अजहण्णमणुक्कोसगुणसीए वि एवं चेव,
वरं - सट्टाछट्ठाणवडिए ।
एवं जाव दसपदेसिए,
णवरं - ओगाहणट्टयाए पदेसपरिवुड्ढी कायव्वा जाव दसपदेसियस्स नव पदेसा वुड्ढिज्जति ।
प. जहण्णगुणसीयाणं भंते! संखेज्जपदेसियाणं खंधाणं केवइया पज्जवा पण्णत्ता ?
उ. गोयमा ! अणंता पज्जवा पण्णत्ता ।
प से केणट्टेणं भंते! एवं वुच्चइ
" जहण्णगुणसीयाणं संखेज्जपदेसियाणं खंधाणं अनंता पज्जवा पण्णत्ता ?"
उ. गोयमा !
जहण्णगुणसीए संखेज्जपदेसिए खंधे जहणगुणसीयस्स संखेज्जपदेसियस्स खंधस्स(१) दव्वट्टयाए तुल्ले,
(२) पदेसट्टयाए दुट्ठाणवडिए,
(३) ओगाहणट्टयाए दुट्ठाणवडिए,
(४) ठिईए चउट्ठाणवडिए,
(५-८) वण्णाईहिं छट्टाणवडिए, सीयफासपज्जवेहिं तुल्ले, उसिणनिद्धलुक्खेहिं छट्टाणवडिए
से तेणट्टेणं गोयमा ! एवं वुच्चइ
" जहण्णगुण सीयाणं संखेज्जपदेसियाणं खंधाणं अणंता पज्जवा पण्णत्ता।"
एवं उक्कोसगुणसी वि
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यदि हीन है तो एक प्रदेश हीन है,
यदि अधिक है तो एक प्रदेश अधिक है,
(४) स्थिति की अपेक्षा चतुःस्थानपतित है,
( ५-८ ) वर्ण, गन्ध और रस के पर्यायों की अपेक्षा षट्स्थानपतित है,
शीत स्पर्श पर्यायों की अपेक्षा तुल्य है।
उष्ण, स्निग्ध तथा रुक्ष स्पर्श के पर्यायों की अपेक्षा षट्स्थानपतित है।
इस कारण से गौतम ! ऐसा कहा जाता है कि
" जघन्य गुण शीत द्विप्रदेशी स्कन्धों के अनन्त पर्याय कहे गए हैं।"
इसी प्रकार उत्कृष्ट गुण शीत द्विप्रदेशी स्कन्धों के पर्याय जानने चाहिए।
अजघन्य अनुत्कृष्ट (मध्यम) द्विप्रदेशी स्कन्धों के पर्यायों का कथन भी इसी प्रकार है।
विशेष- स्वस्थान में षट्स्थानपतित है।
इसी प्रकार दशप्रदेशी स्कन्ध पर्यन्त पर्याय कहने चाहिए। विशेष - अवगाहना की अपेक्षा उत्तरोत्तर प्रदेश की वृद्धि करनी चाहिए यावत् दशप्रदेश पर्यन्त यह वृद्धि नौ प्रदेशों की होती है।
प्र. भंते ! जघन्यगुणशीत संख्यातप्रदेशी स्कन्धों के कितने पर्याय कहे गए हैं ?
उ. गौतम ! अनन्त पर्याय कहे गए हैं।
प्र.
भंते! किस कारण से ऐसा कहा जाता है कि
" जघन्यगुणशीत संख्यातप्रदेशी • स्कन्धों के अनन्त पर्याय कहे गए हैं ?"
उ. गौतम ! एक जघन्यगुणशीत संख्यात प्रदेशी स्कन्ध, दूसरे जघन्यगुणशीत संख्यातप्रदेशी स्कन्ध से(१) द्रव्य की अपेक्षा तुल्य है।
(२) प्रदेशों की अपेक्षा द्विस्थानपतित है, (३) अवगाहना की अपेक्षा द्विस्थानपतित है, (४) स्थिति की अपेक्षा चतुःस्थानपतित है,
(५-८) वर्णादि की अपेक्षा षट्स्थानपतित है,
शीतस्पर्श के पर्यायों की अपेक्षा तुल्य है,
उष्ण, स्निग्ध एवं रुक्ष स्पर्श की पर्यायों की अपेक्षा षट्स्थानपतित है।
इस कारण से गौतम! ऐसा कहा जाता है कि
" जघन्यगुण शीत संख्यातप्रदेशों के अनन्त पर्याय कहे गए हैं।"
इसी प्रकार उत्कृष्ट गुण शीत संख्यातप्रदेशी स्कन्धों के पर्याय कहने चाहिए।