________________
६०
(१०) चक्खुदंसणपज्जवेहिं अचक्खुदंसणपज्जवेहि
ओहिदसण पज्जवेहि य छट्ठाणवडिए। से तेणद्वेणं गोयमा ! एवं वुच्चइ"जहण्णोहिणाणीणं पंचेंदिय-तिरिक्खजोणियाणं अणंता पज्जवा पण्णत्ता।" एवं उक्कोसोहिणाणी वि।
अजहण्णुक्कोसोहिणाणी विएवं चेव।
णवरं-सट्टाणे छट्ठाणवडिए। जहा आभिणिबोहियणाणी तहा मइअण्णाणी
सुयअण्णाणी य। जहा ओहिणाणी तहा विभंगणाणी वि।
द्रव्यानुयोग-(१) (१०) चक्षुदर्शन-पर्यायों, अचक्षुदर्शन-पर्यायों और अवधि
दर्शन पर्यायों की अपेक्षा षट्स्थानपतित है। इस कारण से गौतम ! ऐसा कहा जाता है कि"जघन्य अवधिज्ञानी पंचेन्द्रिय तिर्यञ्चयोनिकों के अनन्त पर्याय हैं।" इसी प्रकार उत्कृष्ट अवधिज्ञानी पंचेन्द्रिय तिर्यञ्चयोनिकों की पर्यायों के लिए भी कहना चाहिए। अजघन्य-अनुत्कृष्ट (मध्यम) पंचेन्द्रियतिर्यञ्चयोनिकों के पर्यायों के लिए भी उसी प्रकार कहना चाहिए। विशेष-स्वस्थान में षट्स्थानपतित है। जिस प्रकार आभिनिबोधिकज्ञानी के पर्याय के लिए कहा उसी प्रकार मति-अज्ञानी और श्रुत-अज्ञानी के लिए कहना चाहिए। जैसा अवधिज्ञानी के लिए कहा वैसा ही विभंगज्ञानी के लिए कहना चाहिए। चक्षुदर्शनी और अचक्षुदर्शनी के पर्यायों का कथन आभिनिबोधिकज्ञानी के समान है। अवधिदर्शनी का कथन अवधिज्ञानी की तरह है। जहाँ ज्ञान है, वहां अज्ञान नहीं है, जहाँ अज्ञान है, वहाँ ज्ञान नहीं है। जहाँ दर्शन है, वहाँ ज्ञान और अज्ञान दोनों हो सकते हैं, ऐसा कहना चाहिए। दं. २१. अवगाहनादि की अपेक्षा मनुष्यों के पर्यायों का
परिमाणप्र. भंते ! जघन्य अवगाहना वाले मनुष्यों के कितने पर्याय कहे
गये हैं ? उ. गौतम ! अनन्त पर्याय कहे गए हैं। प्र. भंते ! किस कारण से ऐसा कहा जाता है कि
"जघन्य अवगाहना वाले मनुष्यों के अनन्त पर्याय हैं ?"
चक्खुदंसणी अचक्खुदंसणी य . जहा आभिणिबोहियणाणी। ओहिदंसणी जहा ओहिणाणी। जत्थ णाणा तत्थ अण्णाणा णत्थि। जत्थ अण्णाणा तत्थ णाणा णत्थि। जत्थ दंसणा तत्थ णाणा वि अण्णाणा वि अस्थि त्ति भाणियव्यं। दं. २१. मणुस्साणं ओगाहणाइ विवक्खया
पज्जवपमाणंप. जहण्णोगाहणगाणं भंते ! मणुस्साणं केवइया पज्जवा
पण्णत्ता? उ. गोयमा ! अणंता पज्जवा पण्णत्ता। प. से केणतुणं भंते ! एवं वुच्चइ
"जहण्णोगाहणगाणं मणुस्साणं अणंता पज्जवा
पण्णत्ता?" उ. गोयमा ! जहण्णोगाहणए मणूसे जहण्णोगाहणगस्स
मणुसस्स(१) दव्वट्ठयाए तुल्ले, (२) पदेसठ्ठयाए तुल्ले, (३) ओगाहणट्ठयाए तुल्ले। (४) ठिईए तिट्ठाणवडिए। (५) वण्ण, (६) गंध, (७) रस, (८) फासपज्जवेहि,
उ. गौतम ! एक जघन्य अवगाहना वाला मनुष्य दूसरे जघन्य
अवगाहना वाले मनुष्य से(१) द्रव्य की अपेक्षा तुल्य है, (२) प्रदेशों की अपेक्षा तुल्य है, (३) अवगाहना की अपेक्षा तुल्य है, (४) स्थिति की अपेक्षा त्रिस्थानपतित है, (५) वर्ण, (६) गन्ध, (७) रस और (८) स्पर्श के पर्यायों
की अपेक्षा, (९) तीन ज्ञान पर्यायों, (१०) दो अज्ञान पर्यायों, (११) तीन दर्शन पर्यायों की अपेक्षा षट्स्थानपतित है। इस कारण से गौतम ! ऐसा कहा जाता है कि
(९) तिहिं णाणपज्जवेहि, (१०) दोहिं अण्णाणपज्जवेहिं, (११) तिहिं दंसणपज्जवेहि य छट्ठाणवडिए। से तेणतुणं गोयमा ! एवं वुच्चइ