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पर्याय अध्ययन
"जहण्णोगाहणगाणं मणुस्साणं अनंता पज्जवा पण्णत्ता।"
कोसोगाहणए वि एवं चेव ।
णवरं - ठिईए - १. सिय हीणे, २. सिय तुल्ले, ३. सिय अब्भहिए,
ज हीणे- एकट्ठाणवडिएअसंखेज्जइभागहीणे,
अह अब्भहिए- एगट्ठाणवडिए । असंखेज्जइभागअब्भहिए, दो णाणा, दो अण्णाणा, दो दंसणा । अजहण्णमणुक्कोसोगाहणए वि एवं चेव ।
णवरं - १. ओगाहणट्टयाए चउट्ठाणवडिए, २. ठिईए चउट्ठाणवडिए । आइल्लेहिं चउहिं नाणपञ्जवेहिं छट्टाणवडिए, केवलणाणपज्जवेहिं तुल्ले, तिहिं अण्णाणपज्जवेहि, छाडिए केवलदंसणपज्ञ्जदेहिं तुल्ले ।
प. जहण्णठिईयाणं भते । मणुस्साणं केवइया पज्जवा पण्णत्ता ?
उ. गोयमा ! अणंता पज्जवा पण्णत्ता।
प. से केणट्टेणं भंते! एवं वुच्चइ
तिहिं दंसणपज्जवेडिं
“जहण्णठिईयाणं मणुस्साणं अणंता पज्जवा पण्णत्ता ?”
उ. गोयमा ! जहण्णठिईए मणुस्से जहण्णठिईयस्म मणुसस्स
(१) दव्वट्टयाए तुल्ले,
(२) पदेसट्टयाए तुल्ले,
(३) ओगाहणट्टयाए चउट्ठाणवडिए,
(४) ठिईए तुल्ले,
(५) वण्ण, (६) गंध, (७) रस, (८) फासपज्जवेहिं,
(९) दोहिं अण्णाणपज्जवेहिं,
(१०) दोहिं दंसणपज्जवेहि य छड्डाणवडिए ।
से
गोयमा ! एवं वुच्चइ"जहण्णठिईयाणं मणुस्साणं अणंता पज्जवा पण्णत्ता।” एवं उक्कोसठिईए वि
वरं - दो णाणा, दो अण्णाणा, दो दंसणा ।
१. जघन्य स्थिति वाले मनुष्यों में ९ वाँ ज्ञान स्थान नहीं है, इसलिए इनमें दस स्थान हैं।
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" जघन्य अवगाहना वाले मनुष्यों के अनन्त पर्याय हैं।"
उत्कृष्ट अवगाहना वाले मनुष्यों के पर्यायों के लिए भी इसी प्रकार कहना चाहिए।
उ.
प्र.
विशेष स्थिति की अपेक्षा १ कदाचित् हीन, २. कदाचित्
तुल्य, ३. कदाचित अधिक होता है।
यदि हीन हो तो एक स्थानपतित है। असंख्यातवें भाग हीन है,
यदि अधिक है तो एक स्थानपतित है, असंख्यातवें भाग अधिक है,
उनमें दो ज्ञान, दो अज्ञान और दो दर्शन होते हैं।
अजघन्य - अनुत्कृष्ट (मध्यम) अवगाहना वाले मनुष्यों के पर्याय भी इसी प्रकार कहने चाहिए।
विशेष - १. अवगाहना की अपेक्षा चतुःस्थानपतित है, २. स्थिति की अपेक्षा चतुःस्थानपतित है, आदि के चार ज्ञानों की अपेक्षा षट्स्थानपतित है, केवलज्ञान के पर्यायों की अपेक्षा तुल्य है,
तीन अज्ञान और तीन दर्शनों की अपेक्षा षट्स्थानपतित है,
केवलदर्शन के पर्यायों की अपेक्षा तुल्य है।
प्र. भंते! जघन्य स्थिति वाले मनुष्यों के कितने पर्याय कहे गए हैं?
गौतम! अनन्त पर्याय कहे गए हैं।
भंते! किस कारण से ऐसा कहा जाता है कि
" जघन्य स्थिति वाले मनुष्यों के अनन्त पर्याय हैं ?
उ. गौतम ! एक जघन्य स्थिति वाला मनुष्य दूसरे जघन्य स्थिति वाले मनुष्य से
(१) द्रव्य की अपेक्षा तुल्य है,
(२) प्रदेशों की अपेक्षा तुल्य है,
(३) अवगाहना की अपेक्षा चतुःस्थानपतित है,
(४) स्थिति की अपेक्षा तुल्य है,
(५) वर्ण, (६) गन्ध (७) रस, (८) स्पर्श के पर्यायों की
अपेक्षा,
(९) दो अज्ञान पर्यायों और
(१०) दो दर्शन पर्यायों की अपेक्षा षट्स्थानपतित है। इस कारण से गौतम ! ऐसा कहा जाता है कि
" जघन्य स्थिति वाले मनुष्यों के अनन्त पर्याय हैं।" उत्कृष्ट स्थिति वाले मनुष्यों के पर्याय भी इसी प्रकार कहने चाहिए।
विशेष - ( उनमें दो ज्ञान, दो अज्ञान और दो दर्शन होते हैं।