________________
૪૪
"बाउकाइयाण अनंता पज्जवा पण्णत्ता।"
दं. १६. वणरसइकाइयाणं पञ्जवपमाणं
प. वणस्सइकाइयाणं भंते ! केघइया पज्जवा पण्णत्ता ?
उ. गोयमा ! अणंता पज्जवा पण्णत्ता।
प से केणणं भंते! एवं दुच्चद्द
"वणस्सइकाइयाणं अनंता पज्जवा पण्णत्ता ?"
उ. गोयमा ! वणस्सइकाइए वणस्सइकाइयस्स(१) दव्वट्टयाए तुल्ले,
(२) पदेसट्टयाए तुल्ले,
(३) ओगाहणट्टयाए चउट्ठाणवडिए, (४) ठिईए तिट्ठाणवडिए,
(५) वण्ण, (६) गंध, (७) रस, (८) फास, (९) मइअण्णाण (१०) सुयअण्णाण (११) अचक्तुदंसणपज्जवेहि य छट्ठाणवडिए ।
से तेणणं गोवमा ! एवं युच्चइ"वणस्सइकाइयाणं अणंता पज्जवा पण्णत्ता ।" दं. १७-१९. विगलिंदियाईणं पज्जवपमाणंप. बेइबियाणं भंते! केवइया पज्जवा पण्णत्ता ?
उ. गोयमा ! अणंता पज्जवा पण्णत्ता।
प. से केणद्वेणं भंते ! एवं वुच्चइ
"बेइंदियाणं अनंता पज्जवा पण्णत्ता ?" उ. गोयमा ! बेइंदिए बेइंदियस्स(१) दव्वट्टयाए तुल्ले, (२) पदेसट्टयाए तुल्ले,
(३) ओगाहणट्टयाए - १. सिय हीणे, २. सिय तुल्ले, ३. सिय अन्महिए
जइ हीणे
१. असंखेज्जइभागहीणे वा, २. संखेज्जइभागहीणे वा, ३. संखेज्जगुणहीणे वा, ४ . असंखेज्जगुणहीणे वा । अह अब्भहिए
१. असंखेज्जभागमब्भहिए वा,
२. संखेज्जभागमव्यहिए वा,
२. संखेज्जगुणमव्यहिए था,
४. असंखेज्जगुणमब्भहिए वा ।
(४) टिईए लिङ्गाणयडिए ।
(५) वण्ण, (६) गंध, (७) रस, (८) फास, (९) आभिणिबोहियणाण, (१०) सुयणाण ( ११ ) मइअण्णाण, (१२) सुयअण्णाण, (१३) अचक्खुदंसणपज्जवेहि य छट्टाणवडिए ।
प्र.
उ.
प्र.
द्रव्यानुयोग - (१)
"वायुकायिक जीवों के अनन्त पर्याय हैं।"
पं. १६. वनस्पतिकायिकों के पर्यायों का परिमाण
भंते! वनस्पतिकाधिक जीवों के कितने पर्याय कहे गए हैं?
गौतम ! अनन्त पर्याय कहे गए हैं।
भंते! किस कारण से ऐसा कहा जाता है कि
'वनस्पतिकायिक जीवों के अनन्त पर्याय हैं ?'
उ. गौतम । एक वनस्पतिकायिक दूसरे वनस्पतिकायिक से,
प्र.
उ.
प्र.
(१) द्रव्य की अपेक्षा तुल्य है,
(२) प्रदेशों की अपेक्षा (भी) तुल्य है,
(३) अवगाहना की अपेक्षा चतुःस्थानपतित है,
(४) स्थिति की अपेक्षा त्रिस्थानपतित है।
(५) वर्ग, (६) गन्ध, (७) रस, (८) स्पर्श, (९) मति-अज्ञान (१०) श्रुत-अज्ञान और (११) अचक्षुदर्शन के पर्यायों की अपेक्षा से छः छः स्थान- पतित (हीनाधिक) है।
इस कारण से गौतम ! ऐसा कहा जाता है कि'वनस्पतिकायिक जीवों के अनन्त पर्याय हैं।'
दं. १७-१९. बेन्द्रिय आदि के पर्यायों का परिमाणभंते द्वीन्द्रिय जीवों के कितने पर्याय कहे गए हैं?
गौतम ! अनन्त पर्याय कहे गए हैं।
भंते! किस कारण ऐसा कहा जाता है कि"द्वीन्द्रिय जीवों के अनन्त पर्याय हैं ?”
उ. गौतम! एक दीन्द्रिय जीव दूसरे द्वीन्द्रिय जीव से
(१) द्रव्य की अपेक्षा तुल्य है,
(२) प्रदेशों की अपेक्षा तुल्य है,
(३) अवगाहना की अपेक्षा -१. कदाचित हीन है, २. कदाचित् तुल्य है, ३. कदाचित् अधिक है।
यदि हीन है तो
१. असंख्यातवें भाग हीन है, २
३. संख्यातगुण हीन है,
४.
यदि अधिक है तो
१. असंख्यातवें भाग अधिक है,
२. संख्यातवें भांग अधिक है,
संख्यातवें भाग हीन है, असंख्यातगुण हीन है।
३. संख्यातगुण अधिक है,
४. असंख्यातगुण अधिक है।
(४) स्थिति की अपेक्षा त्रिस्थान पतित (हीनाधिक) है,
(५) वर्ग, (६) गन्ध, (७) रस, (८) स्पर्श, (९) आभिनिबधिक ज्ञान, (१०) श्रुत-ज्ञान, (११) मति-अज्ञान, (१२) श्रुत अज्ञान और (१३) अचक्षुदर्शन के पर्यायों की अपेक्षा छ: छः स्थानपतित (हीनाधिक) है।