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द्रव्यानुयोग-(१) ३. पर्याय-अध्ययन
३. पज्जवऽज्झयणं
सूत्र
सूत्र
१. पज्जवनामा
प. से किं तं पज्जवनामे? . उ. पज्जवनामे अणेगविहे पण्णत्ते,तं जहा- .
एगगुणकालए दुगुणकालए जाव अणंतगुणकालए। एगगुणनीलए दुगुणनीलए जाव अणंतगुणनीलए। एवं लोहिय-हालिद्द-सुकिला विभाणियव्वा।
एगगुणसुरभिगंधे दुगुणसुरभिंगधे जाव अणंतगुणसुरभिगंधे। एवंदुरभिगन्धो वि भाणियव्यो।। एगगुणतिते दुगुणतित्तेजाव अणंतगुणतित्ते। एवं कडुय-कसाय-अंबिल-महुरा विभाणियव्वा।
१. पर्याय नाम
प्र. पर्यायनाम का क्या स्वरूप है? उ. पर्यायनाम (अवस्था) अनेक प्रकार के कहे गये हैं यथाः
एकगुण (अंश) काला, द्विगुणकाला यावत् अनन्तगुणकाला, एकगुण नीला, द्विगुण नीला यावत् अनन्तगुण नीला। इसी प्रकार लाल, पीले और शुक्लवर्ण की पर्यायों के नाम भी समझना चाहिए। एकगुण सुरभिगन्ध, द्विगुण सुरभिगन्ध यावत् अनन्तगुण सुरभिगन्ध। इसी प्रकार दुरभिगन्ध के विषय में भी कहना चाहिए। एकगुण तिक्त द्विगुण तिक्त यावत् अनन्तगुण तिक्त, इसी प्रकार कषाय, अम्ल एवं मधुर रस की पर्यायों के लिए भी कहना चाहिए। एकगुण कर्कश, द्विगुण कर्कश यावत् अनन्तगुण कर्कश। । इसी प्रकार कोमल, हल्का, भारी, शीत, उष्ण, स्निग्ध, रुक्ष स्पर्श की पर्यायों के लिए भी कहना चाहिए।
यह पर्यायनाम का स्वरूप है।
२. पर्यायों के लक्षण
एकत्व, पृथक्त्व, संख्या, संस्थान, संयोग और वियोग-ये पर्यायों के लक्षण हैं।
एगगुणकक्खडे दुगुणकक्खडे जाव अणंतगुणकक्खडे। एवं मउय-गरुय-लहुय-सीत-उसिण-णिद्ध-लुक्खा वि भाणियव्या।
से तं पज्जवणामे।
-अणु.सु.२२५, २. पज्जव लक्खणाई
एगत्तं च पुहत्तं च, संखासंठाणमेव य। संजोगा य विभागा य, पज्जवाणं तु लक्खणं ॥१॥
-उत्त.अ.२८,गा.१३ ३. दुविहा पज्जवभेया
प. कइविहाणं भंते ! पज्जवा पण्णत्ता? उ. गोयमा ! दुविहा पज्जवा पण्णत्ता,तं जहा- । १.जीवपज्जवा य,२.अजीवपज्जवा या
-पण्ण.प.५.सु.४३८ ४. जीवपज्जवाणं पमाणं
प. जीवपज्जवाणं भंते ! किं संखेज्जा,असंखेज्जा,अणता?
३. पर्याय के दो प्रकार
प्र. भंते ! पर्याय कितने प्रकार के कहे गये हैं ? उ. गौतम ! (पर्याय) दो प्रकार के कहे गये हैं, यथा
१.जीवपर्याय, २. अजीवपर्याय।
उ. गोयमा !नो संखेज्जा,नो असंखेज्जा,अणंता। प. से केणटेणं भंते ! एवं वुच्चइ
"जीवपज्जवा नो संखेज्जा, नो असंखेज्जा,अणंता?" उ. गोयमा ! दं.१. असंखेज्जा नेरइया,
दं. २.११. असंखेज्जा असुरकुमारा जाव असंखेज्जा थणियकुमारा,
४. जीव पर्यायों का परिमाणप्र. भंते ! जीव-पर्याय क्या संख्यात है, असंख्यात है या
अनन्त हैं? उ. गौतम ! वे संख्यात और असंख्यात नहीं हैं, किन्तु अनन्त है। प्र. भंते ! किस कारण से ऐसा कहा जाता है कि
. 'जीवपर्याय संख्यात और असंख्यात नहीं है किन्तु अनन्त है ?' उ. गौतम ! दं.१. असंख्यात नैरयिक हैं,
दं. २-११. असंख्यात असुरकुमार हैं यावत् असंख्यात स्तनितकुमार हैं,
१. विया.स.२५,उ.५, सु.१