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१६ उ. सत्तरसहि पएसेहिं पुट्ठा,
सेसं जहा धम्मऽत्थिकायस्स, एवं एएणं गमेणं भाणियव्वा जाव दस। णवर-जहण्णपए (सव्वत्थ) दोण्णि पक्खियव्वा,
उक्कोसपए (सव्वत्थ) पंच पक्खियव्वा, प. चत्तारि भंते! पोग्गलऽस्थिकाय-पएसा केवइएहिं ____धम्मऽस्थिकाय-पएसेहिं पुट्ठा? उ. गोयमा!जहण्णपए दसहिं,
उक्कोसपए बावीस-पएसेहिं पुट्ठा, प. पंच भंते! पोग्गलऽस्थिकाय-पएसा केवइएहिं
धम्मऽस्थिकाय-पएसेहिं पुट्ठा? उ. गोयमा!जहण्णपए बारसहिं,
उक्कोसपए सत्तावीसए-पएसेहिं पुट्ठा, प. छ भंते! पोग्गलऽस्थिकाय-पएसा केवइएहिं
धम्मऽत्थिकाय-पएसेहिं पुट्ठा? उ. गोयमा!जहण्णपए चोद्दस-पएसेहिं,
उक्कोसपए बत्तीस-पएसेहिं पुट्ठा, प. सत्तभंते! पोग्गलऽस्थिकायपएसा केवइएहिं
धम्मऽस्थिकाय-पएसेहिं पुट्ठा? उ. गोयमा! जहण्णपए सोलसहिं,
उक्कोसपए सत्तत्तीस-पएसेहिं पुट्ठा, प. अट्ठ भंते! पोग्गलऽस्थिकाय-पएसा केवइएहिं
धम्मऽस्थिकाय-पएसेहिं पुट्ठा? . उ. गोयमा! जहण्णपए अट्ठारसपएसेहिं,
उक्कोसपए बायालीस-पएसेहिं पुट्ठा, प. नव भंते! पोग्गलऽस्थिकायप्पएसा केवइएहिं
धम्मऽस्थिकाय-पएसेहिं पुट्ठा? उ. गोयमा!जहण्णपए वीस-पएसेहिं,
उक्कोसपए सीयालीस-पएसेहिं पुट्ठा, प. दस भंते! पोग्गलऽस्थिकायप्पएसा केवइएहिं
धम्मऽत्थिकाय-पएसेहिं पुट्ठा? उ. गोयमा!जहण्णपए बावीस-पएसेहिं,
उक्कोसपए बावण्ण-पएसेहिं पुट्ठा, एवं अधम्मऽत्थिकाय-पएसेहिं वि,
आगासऽत्थिपएसा उक्कोसगं भाणियव्वं, प. संखेज्जा भंते! पोग्गलऽस्थिकायप्पएसा केवइएहिं
धम्मऽत्थिकाय-पएसेहिं पुट्ठा? उ. गोयमा! जहण्णपए तेणेव संखेज्जए णं दुगुणे णं
दुरूवाहिएणं, उक्कोसपए तेणेव संखेज्जएणं पंचगुणे णं दुरूवाहिएणं,
। द्रव्यानुयोग-(१)] उ. वे सत्तरह प्रदेशों से स्पृष्ट होते हैं।
शेष सभी वर्णन धर्मास्तिकाय के समान जानना चाहिए। इसी आलापक से दस प्रदेशों पर्यन्त इसी प्रकार कहना चाहिए। विशेष-(सर्वत्र जघन्य पद में दो का प्रक्षेप उत्कृष्ट पद में पांच
का प्रक्षेप करना (बढ़ाना) चाहिए। प्र. भंते ! पुद्गलास्तिकाय के चार प्रदेश धर्मास्तिकाय के कितने
प्रदेशों से स्पृष्ट होते हैं? उ. गौतम ! वे जघन्य दस प्रदेशों से,
उत्कृष्ट बाईस प्रदेशों से स्पृष्ट होते हैं। प्र. भंते ! पुद्गलास्तिकाय के पांच प्रदेश धर्मास्तिकाय के कितने
प्रदेशों से स्पृष्ट होते हैं? उ. गौतम ! वे जघन्य बारह प्रदेशों से,
उत्कृष्ट सत्ताईस प्रदेशों से स्पृष्ट होते हैं। प्र. भंते ! पुद्गलास्तिकाय के छह प्रदेश धर्मास्तिकाय के कितने
प्रदेशों से स्पृष्ट होते हैं ? उ. गौतम ! वे जघन्य चौदह प्रदेशों से,
उत्कृष्ट बत्तीस प्रदेशों से स्पृष्ट होते हैं। प्र. भंते ! पुद्गलास्तिकाय के सात प्रदेश धर्मास्तिकाय के कितने
प्रदेशों से स्पृष्ट होते हैं ? उ. गौतम ! वे जघन्य सोलह प्रदेशों से,
उत्कृष्ट सेंतीस प्रदेशों से स्पृष्ट होते हैं। प्र. भंते ! पुद्गलास्तिकाय के आठ प्रदेश धर्मास्तिकाय के कितने
प्रदेशों से स्पृष्ट होते हैं ? उ. गौतम ! वे जघन्य अठारह प्रदेशों से,
उत्कृष्ट बयालीस प्रदेशों से स्पृष्ट होते हैं। प्र. भंते ! पुदगलास्तिाकय के नौ प्रदेश धर्मास्तिकाय के कितने
प्रदेशों से स्पृष्ट होते हैं? उ. गौतम ! वे जघन्य बीस प्रदेशों से,
उत्कृष्ट सेंतालीस प्रदेशों से स्पृष्ट होते हैं। प्र. भंते ! पुद्गलास्तिकाय के दस प्रदेश धर्मास्तिकाय के कितने
प्रदेशों से स्पृष्ट होते हैं? उ. गौतम ! वे जघन्य बाईस प्रदेशों से,
उत्कृष्ट बावन प्रदेशों से स्पृष्ट होते हैं ? इसी प्रकार अधर्मास्तिकाय के प्रदेशों से स्पृष्ट होते हैं।
आकाशास्तिकाय के प्रदेश उत्कृष्ट कहना चाहिए। प्र. भंते ! पुद्गलास्तिकाय के संख्यात प्रदेश धर्मास्तिकाय के
कितने प्रदेशों से स्पृष्ट होते हैं? उ. गौतम ! जघन्य पद में उन्हीं संख्यात प्रदेशों को दुगुने करके
उनमें दो संख्या और जोड़े उतने प्रदेशों से वे स्पृष्ट होते हैं। उत्कृष्ट पद में उन्हीं संख्यात प्रदेशों को पांच गुने करके उनमें
दो और जोड़ें उतने प्रदेशों से वे स्पृष्ट होते हैं। प्र. (पुद्गलास्तिकाय के संख्यात प्रदेश) अधर्मास्तिकाय के कितने
प्रदेशों से स्पृष्ट होते हैं ? उ. पूर्ववत् (धर्मास्तिकाय के समान) जानना चाहिए।
प. केवइएहिं अधम्मऽस्थिकाय-पएसेहिं पुट्ठा?
उ. एवं चेव,