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( १८ -
प. धम्मत्थिकाएणं भंते ! केवइएहिं धम्मऽस्थिकाय-पएसेहि
उ. गोयमा ! नत्थि एक्केण वि। प. केवइएहिं अधम्मऽस्थिकाय-पएसेहिं पुढे ?
उ. असंखेज्जेहिं पएसेहिं पुढे, प. केवइएहिं आगासऽस्थिकाय-पएसेहिं पुढे ?
उ. असंखेज्जेहिं पएसेहिं पुढे, प. केवइएहिं जीवऽस्थिकाय-पएसेहिं पुढे ?
उ. अणंतपएसेहिं पुढे, प. केवइएहिं पोग्गलऽस्थिकाय-पएसेहिं पुढे ?
उ. अणंतपएसेहिं पुढे, प. केवइएहिं अद्धासमएहिं पुढे ?
उ. सिय पुढे,सिय नो पुढे ___जइ पुढे नियमा अणंतेहिं,
प. अधम्मऽस्थिकाएणं भंते ! केवइएहिं धम्मऽथिकाय
पएसेहिं पुढे ? उ. गोयमा ! असंखेजेहिं पएसेहिं पुढे, प. केवइएहिं अधम्मऽत्थिकाय-पएसेहिं पुढे ?
द्रव्यानुयोग-(१) प्र. मंते! धर्मास्तिकाय द्रव्य धर्मास्तिकाय के कितने प्रदेशों से
स्पृष्ट होता है? उ. गौतम! वह एक भी प्रदेश से स्पष्ट नहीं होता है। प्र. (धर्मास्तिकाय द्रव्य) अधर्मास्तिकाय के कितने प्रदेशों से स्पृष्ट
होता है? उ. असंख्य प्रदेशों से स्पृष्ट होता है। प्र. (धर्मास्तिकाय द्रव्य) आकाशास्तिकाय के कितने प्रदेशों से
स्पृष्ट होता है? उ. असंख्य प्रदेशों से स्पृष्ट होता है। प्र. (धर्मास्तिकाय द्रव्य) जीवास्तिकाय के कितने प्रदेशों से ग्पृष्ट
होता है? उ. अनन्त प्रदेशों से स्पृष्ट होता है। प्र. (धर्मास्तिकाय द्रव्य) पुद्गलास्तिकाय के कितने प्रदेशों से
स्पृष्ट होता है? उ. अनन्त प्रदेशों से स्पृष्ट होता है। प्र. (धर्मास्तिकाय द्रव्य) अद्धाकाल के कितने समयों से स्पृष्ट
होता है? उ. कदाचित् स्पृष्ट होता है और कदाचित् नहीं होता है।
यदि स्पृष्ट होता है तो नियमतः अनन्त समयों से स्पृष्ट
होता है। प्र. भंते! अधर्मास्तिकाय द्रव्य धर्मास्तिकाय के कितने प्रदेशों से
स्पृष्ट होता है? उ. गौतम! असंख्यात प्रदेशों से स्पृष्ट होता है। . प्र. (अधर्मास्तिकाय द्रव्य) अधर्मास्तिकाय के कितने प्रदेशों से
स्पृष्ट होता है? उ. वह एक भी प्रदेश से स्पृष्ट नहीं होता।
शेष सभी (द्रव्यों के प्रदेशों) से स्पर्श के विषय में धर्मास्तिकाय के समान जानना चाहिए। इसी प्रकार इसी आलापक द्वारा सभी द्रव्य स्वस्थान में एक भी प्रदेश से स्पृष्ट नहीं होते, परस्थान में आदि के (धर्मास्तिकाय, अधर्मास्तिकाय और आकाशास्तिकाय) तीन असंख्यात प्रदेशों से स्पृष्ट होते हैं, पीछे के (जीवास्तिकाय, पुद्गलास्तिकाय और अद्धासमय) ये
तीन अद्धासमय पर्यन्त अनन्त प्रदेशों से स्पृष्ट होते हैं यावत्प्र. अद्धासमय कितने अद्धासमयों से स्पृष्ट होते हैं ?
उ. एक भी समय से स्पृष्ट नहीं होता है। १६. पंचास्तिकाय प्रदेशों का और अद्धासमयों का परस्पर
प्रदेशावगाढ़ प्ररूपणप्र. भंते! जहां धर्मास्तिकाय का एक प्रदेश अवगाढ़
(व्याप्त-स्थित) होता है वहाँ धर्मास्तिकाय के दूसरे कितने
प्रदेश अवगाढ़ होते हैं? उ. गौतम! वहां एक भी प्रदेश अवगाढ़ नहीं होता है। प्र. (जहां धर्मास्तिकाय का एक प्रदेश अवगाढ़ होता है) वहां
अधर्मास्तिकाय के कितने प्रदेश अवगाढ़ होते हैं ? उ. वहाँ एक प्रदेश अवगाढ़ होता है।
उ. नत्थि एक्केण वि,
सेसं जहा धम्मऽस्थिकायस्स,
एवं एएणं गमेणं सव्वे वि, सट्ठाणए नत्थि एक्केण वि पुट्ठा
परट्ठाणए आइल्लएहिं तीहि असंखेज्जेहिं भाणियव्वं,
पच्छिल्लएहिं तिसु अणंता भाणियव्वा जाव अद्धासमयो त्तिजाव प. केवइएहिं अद्धासमएहिं पुढे ?
उ. नत्थि एक्केण वि पुढे, -विया. स. १३, उ.४, सु. २९-५१ १६. पंचत्थिकाय पएस-अद्धासमयाणं परोप्परं पएसोवगाढ-
परूवणंप. जत्थ णं भंते ! एगे धम्मऽथिकायपएसे ओगाढे,
तत्थ केवइया धम्मऽस्थिकायपएसा ओगाढा ?
उ. गोयमा ! नत्थि एक्कोऽवि, प. केवइया अधम्मऽत्थिकायपएसा ओगाढा ?
उ. एक्को ओगाढे।