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अस्तिकाय अध्ययन
२. खेत्तओ लोगप्पमाणमेत्ते। ३. कालओ न कयायि नासि, न कयाइ नत्थि,
न कयाइ न भविस्सइ, भुविं च, भवइ अ, भविस्सइ अ, . . धुवे, नियए, सासए, अक्खए, अवट्ठिए, निच्चे।
४. भावओ अवण्णे, अगंधे, अरसे, अफासे।
५. गुणओ गमणगुणे। अधम्मत्थिकाए वि एवं चेव,
णवरं-गुणओ ठाणगुणे, प. आगासत्थिकाए णं भंते! कइ वण्णे जाव कइ फासे
पण्णत्ते? उ. गोयमा! अवण्णे जाव अवट्ठिए लोग दव्वे।
ते समासओ पंचविहे पण्णत्ते, तं जहा१.-४. दव्वओ जाव ५. गुणओ, १. दव्वओ आगासस्थिकाए एगे दव्वे। २. खेत्तओ लोयालोयप्पमाणमेत्ते अणंते। ३. कालओ न कयाइ नासि जाव निच्चे।
। ३१ । २. क्षेत्र की अपेक्षा लोकप्रमाण मात्र है। ३. काल की अपेक्षा कभी नहीं था, कभी नहीं है,
और कभी नहीं रहेगा, ऐसा भी नहीं है किन्तु वह था, है और रहेगा, वह ध्रुव, नियत, शाश्वत, अक्षय, अव्यय, अवस्थित
और नित्य है। ४. भाव की अपेक्षा वर्णरहित, गन्धरहित, रसरहित __ और स्पर्शरहित है। ५. गुण की अपेक्षा गमन (सहयोगी) गुण वाला है। अधर्मास्तिकाय का कथन भी इसी प्रकार है। विशेष-गुण की अपेक्षा स्थित (सहयोगी) गुण वाला है। प्र. भंते ! आकाशास्तिकाय में कितने वर्ण यावत् कितने स्पर्श
कहे गए हैं? उ. गौतम ! अवर्ण यावत् अवस्थित लोकद्रव्य है।
संक्षेप में वह पाँच प्रकार का कहा गया है, यथा१. -४ द्रव्यतः यावत् ५. गुणतः। १. द्रव्य की अपेक्षा आकाशास्तिकाय एक द्रव्य रूप है। २. क्षेत्र की अपेक्षा लोकालोक प्रमाण और अनन्त है। ३. काल की अपेक्षा कभी नहीं था ऐसा नहीं है यावत्
नित्य है। ४. भाव की अपेक्षा अवर्ण यावत् अस्पर्श रूप है। ..
५. गुण की अपेक्षा अवगाहना गुण वाला है। प्र. भंते ! जीवास्तिकाय में कितने वर्ण यावत् कितने स्पर्श
कहे गये हैं? गौतम ! अवर्ण यावत् अवस्थित लोक द्रव्य है। संक्षेप में वह पाँच प्रकार का कहा गया है, यथा१-४ द्रव्यतः यावत् ५. गुणतः। १. द्रव्य की अपेक्षा जीवास्तिकाय अनन्त जीव
द्रव्यरूप है। २. क्षेत्र की अपेक्षा लोक प्रमाण मात्र है। ३. काल की अपेक्षा कभी नहीं था ऐसा नहीं है यावत्
नित्य है। ४. भाव की अपेक्षा अवर्ण यावत् अस्पर्श रूप है।
५. गुण की अपेक्षा उपयोग गुण वाला है। प्र. भंते ! पुद्गलास्तिकाय में कितने वर्ण यावत् कितने स्पर्श
कहे गए हैं ? उ. गौतम ! पांच वर्ण, दो गन्ध, पांच रस, आठ स्पर्श वाला,
रूपी, अजीव, शाश्वत, अवस्थित और लोकद्रव्य है, संक्षेप में वह पांच प्रकार का कहा गया है, यथा१-४ द्रव्यतः यावत् ५. गुणतेः।
४. भावओ अवण्णे जाव अफासे।
५. गुणओ अवगाहणा गुणे। प. जीवत्थिकाए णं भंते! कइ वण्णे जाव कइ फासे
पण्णते? उ. गोयमा! अवण्णे जाव अवट्ठिए लोगदव्वे,
से समासओ पंचविहे पण्णत्ते, तं जहा१.-४. दव्वओ जाव ५. गुणओ, १. दव्वओ णं जीवत्थिकाए अणंताई जीवदव्वाई,
२. खेत्तओ णं लोगप्पमाणमेत्ते, ३. कालओ णं न कयाइ नासि जाव निच्चे,
४. भावओ णं अवण्णे जाव अफासे,
५. गुणओ णं उवओगगुणे, प. पोग्गलत्थिकाए णं भंते! कइ वण्णे जाव कइ फासे ___ पण्णत्ते? उ. गोयमा! पंचवण्णे, दुगंधे, पंचरसे, अट्ठफासे१
रूवी, अजीवे, सासए, अवट्ठिए लोगदव्वे, से समासओ पंचविहे पण्णत्ते, तं जहा१-४. दव्वओ जाव गुणओ,
१. विया. स. १२, उ. ५, सु. २६