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- सेसं जहा धम्मऽथिकायस्स, प. जत्थ णं भंते ! एगे पोग्गलऽस्थिकायपएसे ओगाढे,
तत्थ केवइया धम्मऽस्थिकायपएसा ओगाढा ? उ. गोयमा ! एवं जहा जीवऽथिकायपएसे तहेव निरवसेस
भाणियव्वं। प. जत्थ णं भंते ! दो पोग्गलऽस्थिकायपएसा ओगाढा,
तत्थ केवइया धम्मऽस्थिकायपएसा ओगाढा ? उ. सिय एक्को, सिय दोण्णि।
एवं अधम्मऽथिकायस्स वि,
एवं आगासऽस्थिकायस्स वि,
सेसं जहा धम्मऽस्थिकायस्स। प. जत्थ णं भंते ! तिण्णि पोग्गलऽत्थिकायपएसा ओगाढा,
तत्थ केवइया धम्मऽस्थिकायपएसा ओगाढा ? उ. गोयमा ! सिय एक्को, सिय दोण्णि, सिय तिण्णि।
एवं अधम्मऽत्थिकायस्स वि, एवं आगासऽथिकायस्स वि, सेसं जहेव दोण्हं।
द्रव्यानुयोग-(१) शेष सभी कथन धर्मास्तिकाय के समान समझना चाहिए। प्र. भंते! जहाँ पुद्गलास्तिकाय का एक प्रदेश अवगाढ़ होता है,
वहाँ धर्मास्तिकाय के कितने प्रदेश अवगाढ़ होते हैं ? उ. गौतम ! जिस प्रकार जीवास्तिकाय के प्रदेश के विषय में कहा
उसी प्रकार समस्त कथन करना चाहिए। प्र. भंते! जहाँ पुद्गलास्तिकाय के दो प्रदेश अवगाढ़ होते हैं, वहां
धर्मास्तिकाय के कितने प्रदेश अवगाढ़ होते हैं ? उ. वहाँ कदाचित् एक या दो प्रदेश अवगाढ़ होते हैं।
इसी प्रकार अधर्मास्तिकाय के प्रदेश के विषय में कहना चाहिए। इसी प्रकार आकाशास्तिकाय के प्रदेश के विषय में जानना चाहिए।
शेष सभी कथन धर्मास्तिकाय के समान समझना चाहिए। प्र. भंते! जहाँ पुद्गलास्तिकाय के तीन प्रदेश अवगाढ़ होते हैं,
वहां धर्मास्तिकाय के कितने प्रदेश अवगाढ़ होते हैं ? उ. गौतम! वहाँ (धर्मास्तिकाय के) कदाचित् एक, दो या तीन
प्रदेश अवगाढ़ होते हैं। इसी प्रकार अधर्मास्तिकाय के विषय में भी कहना चाहिए। इसी प्रकार आकाशास्तिकाय के विषय में भी कहना चाहिए। शेष (जीवास्तिकाय, पुद्गलास्तिकाय और अद्धासमय (तीनों) के लिए जैसे दो पुद्गलप्रदेशों के विषय में कहा उसी प्रकार से तीन के विषय में भी कहना चाहिए। इसी प्रकार आदि के तीन अस्तिकायों के साथ एक-एक प्रदेश बढ़ाना चाहिए। शेष के लिए जिस प्रकार दो पुद्गल प्रदेशों के विषय में कहा उसी प्रकार दस प्रदेशों पर्यन्त कहना चाहिए। जहाँ पुद्गलास्तिकाय के संख्यात प्रदेश अवगाढ़ होते हैं, वहाँ धर्मास्तिकाय के कदाचित् एक प्रदेश यावत् कदाचित् दस प्रदेश और कदाचित् संख्यात प्रदेश अवगाढ़ होते हैं। जहाँ पुद्गलास्तिकाय के असंख्यात प्रदेश अवगाढ़ होते हैं, वहाँ धर्मास्तिकाय के कदाचित् एक प्रदेश यावत् कदाचित् संख्यात प्रदेश और असंख्यात प्रदेश अवगाढ़ होते हैं। जिस प्रकार असंख्यात के विषय में कहा उसी प्रकार अनन्त
प्रदेशों के विषय में भी कहना चाहिए। प्र. भंते! जहाँ एक अद्धासमय अवगाढ़ होता है, वहाँ
धर्मास्तिकाय के कितने प्रदेश अवगाढ़ होते हैं? उ. गौतम! वहाँ (धर्मास्तिकाय का) एक प्रदेश अवगाढ़ होता है ? प्र. (जहाँ एक अद्धासमय अवगाढ़ होता है) वहाँ अधर्मास्तिकाय
के कितने प्रदेश अवगाढ़ होते हैं ? उ. वहाँ एक प्रदेश अवगाढ़ होता है। प्र. (जहाँ एक अद्धासमय अवगाढ़ होता है) वहाँ
आकाशास्तिकाय के कितने प्रदेश अवगाढ़ होते हैं ? उ. वहाँ (आकाशास्तिकाय का) एक प्रदेश अवगाढ़ होता है। प्र. (जहाँ एक अद्धासमय अवगाढ़ होता है) वहाँ जीवास्तिकाय
के कितने प्रदेश अवगाढ़ होते हैं? उ. वहाँ (जीवास्तिकाय के) अनन्त प्रदेश अवगाढ़ होते हैं।
इसी प्रकार अद्धासमय पर्यन्त कहना चाहिए।
एवं एक्केक्को वढियव्यो पएसो, आदिल्लएहिं तिहि अत्थिकाएहिं। सेसं जहेव दोण्हं जाव दसण्हं सिय एक्को जाव सिय दस, संखेज्जाणं - सिय एक्को जाव सिय दस, सिय संखेज्जा।
असंखेज्जाणं - सिय एक्को जाव सिय संखेज्जा सियअसंखेज्जा,
जहा असंखेज्जा तहा अणंता वि.।
प. जत्थ णं भंते ! एगे अद्धासमये ओगाढे,
तत्थ केवइया धम्मऽस्थिकाय-पएसा ओगाढा ? उ. गोयमा ! एक्को ओगाढे। प. केवइया अधम्मऽस्थिकायपएसा ओगाढा ?
उ. एक्को ओगाढे। प. केवइया आगासऽस्थिकायपएसा ओगाढा ?
उ. एक्को ओगाढे। प. केवइया जीवऽस्थिकायपएसा ओगाढा ?
उ. अणंता ओगाढा।
एवं जाव अद्धासमया,