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आदर्श जीवन ।
पार्श्वनाथकी यात्रा कर आपने अपने हृदयको पवित्र किया । वहाँसे अहमदाबादके लिए रवाना हुए। मार्गमें जब मांडल पहुँचे तब खीमचंदभाई सपरिवार वहाँ आपके दर्शनार्थ आपहुँचे । जीवनका कैसा विचित्र परिवर्तन हो जाता है ? पूज्य पूजक, सेव्य सेवक भावनामें कैसे फरक आ जाता है ? दोनों सांसारिक भाइयोंकी भेट इसका बहुत ही बढ़िया उदाहरण है । कुछ ही महीनों पहले जिनकी पदरज आप मस्तक पर चढ़ाते थे वे ही आज आपकी पदधृलि लेकर अपनेको धन्य मानने लगे। कुछ महीनों पहले जो आपको उपदेश देते थे उन्हींको आज आप उपदेश देते थे। __ आपके सांसारिक कुटुंबने सबसे पहले यहीं अपने कुलरत्नके दर्शन किये । समस्त कुटुंब वंदना कर सामने बैठ गया और बाल साधुके दर्शन करने लगा। आपकी बहिन, भोजाई और आपके भाई आदिकी आँखोंमें प्रेमाश्रु थे। जिस सिरको वे बालोंसे सुशोभित बढ़िया टोपीसे ढका देखते थे, वही सिर आज केश--रिक्त घोट मोट है । जिस शरीरको वे सुंदर वस्त्राभूषणोंसे सुसज्जित कर प्रसन्न होते थे वही शरीर आज एक कपड़ेसे ढका हुआ शीतल वायुका क्रीडाक्षेत्र हो रहा है । जो पैर जुराबों और बूटोंसे सदा सुरक्षित रहते थे वे ही आज सर्दी के मारे फट गये हैं । आह ! ऐसा दुःख मय जीवन यह सुकुमार कैसे बितायगा ? मगर इस बातका उन्हें संतोष भी था कि, उनके कुलमें एक ऐसा सुपूत भी
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