Book Title: Jain Dharma Darshan Ek Samikshatmak Parichay
Author(s): Mohanlal Mehta
Publisher: Mutha Chhaganlal Memorial Foundation Bangalore
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जैन धर्म-दर्शन का साहित्य
५५ है। इसे बृहदातुरप्रत्याख्यान भी कहते हैं। इसमें ७० गाथाएँ हैं । दसवीं गाथा के बाद का कुछ भाग गद्य में है। इस प्रकीर्णक में प्रधानतया बालमरण एवं पण्डितमरण का विवेचन है । महाप्रत्याख्यान (महापच्चक्खाण) प्रकीर्णक में १४२ गाथाएँ हैं। इसमें प्रत्याख्यान अर्थात् त्याग का विस्तृत व्याख्यान है। भक्तपरिज्ञा (भत्तपरिण्णा) में १७२ गाथाएं हैं। इस प्रकीर्णक में 'भक्तपरिज्ञा' नामक मरण का विवेचन है । तन्दुलवैचारिक (तंदुलवेयालिय) प्रकीर्णक में १३६ गाथाएं हैं । बीचबीच में कुछ सूत्र भी हैं। इसमें विस्तार से गर्भ का वर्णन किया गया है। ग्रन्थ के अन्तिम भाग में नारी-जाति के सम्बन्ध में एकपक्षीय विचार प्रकट किये गये हैं। सौ वर्ष की आयुवाला पुरुष कितना तन्दुल अर्थात् चावल खाता है, इसका संख्यापूर्वक विशेष विचार करने के कारण उपलक्षण से यह सूत्र तन्दुलवैचारिक कहा जाता है। संस्तारक (संथारग) प्रकीर्णक में १२३ गथाएँ हैं । इसमें मृत्यु के समय अपनाने योग्य संस्तारक अर्थात् तृण आदि की शय्या का महत्त्व वर्णित है। संस्तारक पर आसीन होकर पण्डितमरण प्राप्त करनेवाला मुनि मुक्ति का वरण करता है । इस प्रकार के अनेक मुनियों के दृष्टान्त प्रस्तुत प्रकीर्णक में दिये गये हैं। गच्छाचार (गच्छायार) प्रकीर्णक में १३७ गाथाएं हैं। इसमें गच्छ अर्थात् समूह में रहनेवाले साधुसाध्वियों के आचार का वर्णन है। यह प्रकीर्णक महानिशीथ, कल्प (बृहत्कल्प ) तथा व्यवहार के आधार पर बनाया गया है। गणिविद्या (गणिविज्जा) में ८२ गाथाएं हैं। यह गणितविद्या अर्थात् ज्योतिर्विद्या का ग्रन्थ है। इसमें इन नौ विषयों ( नवबल ) का विवेचन है : १. दिवस, २. तिथि, ३. नक्षत्र, ४. करण, ५. ग्रहदिवस, ६. मुहूर्त, ७. शकुन, ८.
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