________________
ज्ञानमीमांसा
३१७
भूमि पर घट नहीं है' यह अभाव का उदाहरण है । यहाँ अभाव प्रमाण घटाभाव का ग्रहण करता है । यह घटाभाव क्या है ? यदि हम इसका विचार करें तो मालूम होगा कि यह घटाभाव शुद्ध भूतल के अतिरिक्त कुछ नहीं है । जिस भूतल पर पहले हमने घट देखा था उसी भूतल को अब हम शुद्ध भूतल के रूप में देख रहे हैं । यह शुद्ध भूतल ही घटाभाव है और इसका दर्शन प्रत्यक्षपूर्वक है । इस विश्लेषण से यही फलित होता है कि अभाव प्रत्यक्ष से भिन्न नहीं है । एक का अभाव दूसरे का भाव है ।
प्रत्यक्ष :
प्रत्यक्ष का लक्षण वैशद्य या स्पष्टता है ।" सन्निकर्ष या कल्पनापोढत्व प्रत्यक्ष का लक्षण नहीं माना गया है । वैशद्य किसे कहते हैं ? जिसके प्रतिभास के लिए किसी प्रमाणान्तर की आवश्यकता न हो अथवा जो 'यह' इदन्तया प्रतिभासित होता हो उसे वैशद्य कहते हैं। प्रमाणान्तर का निषेध इसलिए किया गया है कि प्रत्यक्ष अपने विषय के प्रतिभास के लिए स्वयं समर्थ है । उसे किसी दूसरे प्रमाण से सहायता की अपेक्षा नहीं । अनुमान, आगमादि प्रमाण अपने आप में पूर्ण नहीं हैं । उनका आधार प्रत्यक्ष है । प्रत्यक्ष अपने में पूर्ण है । उसे किसी अन्य
I
१. विशद: प्रत्यक्षम् ।
प्रमाणमीमांसा, १.१.१३.
स्पष्टं प्रत्यक्षम् |--प्रमाणनयतत्त्वालोक, २.२. विशदं प्रत्यक्षमिति । -- परीक्षामुख, २.३.
२. प्रमाणान्तरानपेक्षे दन्तया प्रतिभासो वा वैशद्यम् ।
- प्रमाणमीमांसा, १.१.१४.
प्रतीत्यन्तराव्यवधानेन विशेषवत्तया वा प्रतिभासनं वैशद्यम् ।
- परीक्षामुख, २.४.
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org