Book Title: Jain Dharma Darshan Ek Samikshatmak Parichay
Author(s): Mohanlal Mehta
Publisher: Mutha Chhaganlal Memorial Foundation Bangalore

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Page 642
________________ 'प्रमण-संघ ६२७ अंगादान को नली में डालना, पुष्यादि झूधना, पात्र आदि दूसरों से साफ करवाना, सदोए आहार का उपयोग करना आदि क्रियाएँ गुरुमासिक प्रायश्चित्त के योग्य - दारुदण्ड का पादपोंछन बनाना, पानी निकलने के लिए नाली बनाना, दानादि लेने के पूर्व अथवा पश्चात् दाता की प्रशंसा करना, निष्कारण परिचित घरों में प्रवेश करना, अन्यतीर्थिक अथवा गृहस्थ की संगति करना, शय्यातर अर्थात् अपने ठहरने के मकान के मालिक के यहाँ का आहार-पानी ग्रहण करना आदि क्रियाएँ लघुमासिक प्रायश्चित्त के योग्य हैं। - स्त्री अथवा पुरुष से मैथुनसेवन के लिए प्रार्थना करना, मैथुनेच्छा से हस्तकर्म करना नग्न होना, निर्लज्ज वचन बोलना, प्रेमपत्र लिखना; गुदा अथवा योनि में लिंग डालना, स्तन आदि हाथ में पकड़ कर हिलाना अथवा मसलना, पशु-पक्षी को स्त्रीरूप अथवा पुरुषरूप मानकर उनका आलिंगन करना, मैथुनेच्छा से किसी को आहारादि देना, आचार्य की अवज्ञा करना, लाभालाभ का निमित्त बताना, किसी श्रमण-श्रमणी को बहकाना, किसी दीक्षार्थी को भड़काना, अयोग्य को दीक्षा देना, अचल होकर सचेल के साथ रहना अथवा सचेल होकर अचेल के माथ रहना अथवा अचेल होकर अचेल के साथ रहना आदि क्रियाएँ गुरुचातुर्मासिक प्रायश्चित्त के योग्य है। प्रत्याख्यान का बार-बार भंग करना, गृहस्थ के वस्त्र, पात्र, शय्या आदि का उपयोग करना, प्रथम प्रहर में ग्रहण किया हुआ आहार चतर्थ प्रहर तक रखना. अर्धयोजन अर्थात दो कोस से आगे जाकर आहार लाना, विरेचन लेना अथवा औषधि का सेवन करना, शिथिलाचारी को नमस्कार करना, वाटिका आदि सार्वजनिक स्थानों में टट्टी-पेशाब डालकर गंदगी करना. गृहस्थ आदि को आहार-पानी देना, दम्पति के शयनागार में प्रवेश करना, समान आचारवाले निर्ग्रन्थ-निर्ग्रन्थी को स्थान आदि की सुविधा न देना, गीत गाना, वाद्ययन्त्र बजाना, नृत्य करना, अस्वाध्याय के काल में स्वाध्याय करना अथवा स्वाध्याय के काल में स्वाध्याय न करना, अयोग्य को शास्त्र पढ़ाना अथवा योग्य को शास्त्र न पढ़ाना, अन्यतीर्थिक अथवा गृहस्थ को पढ़ाना अथवा उससे पढ़ना आदि Jain Education International For Private & Personal Use Only ___www.jainelibrary.org

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