Book Title: Jain Dharma Darshan Ek Samikshatmak Parichay
Author(s): Mohanlal Mehta
Publisher: Mutha Chhaganlal Memorial Foundation Bangalore

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Page 652
________________ हेयचन्द्राचार्य की साहित्य-साधना जैन इतिहास की दृष्टि से विशेष महत्त्वपूर्ण है । कोश - आचार्य हेमचन्द्र ने चार कोशग्रन्थों की रचना की है - १. अभिधानचिन्तामणि, २. अनेकार्थसंग्रह, ३. निघण्टुशेष, ४. देशीनाममाला । अभिधानचिन्तामणि में अमरकोश के समान एक अर्थ अर्थात् वस्तु के लिए अनेक शब्दों का उल्लेख है । इस पर स्वोपज्ञ टीका भी है। अनेकार्थसंग्रह में एक शब्द के अनेक अर्थ दिये गये हैं । अभिधानचिन्तामणि एकार्थककोश है जब कि अनेकार्थसंग्रह नानार्थककोश है । निघण्टुशेष में वनस्पतियों के नामों का संग्रह है । यह कोश आयुर्वेदशास्त्र के लिए विशेष उपयोगी है । इसे अभिधानचिन्तामणि का पूरक कहा जा सकता है । देशीनाममाला में ३५०० देशी शब्दों का संकलन है । ये शब्द संस्कृत अथवा प्राकृत व्याकरण से सिद्ध नहीं होते । देशी शब्दों का ऐसा अन्य कोश उपलब्ध नहीं है । इस पर स्वोपज्ञ टीका भी है। प्रमाणमीमांसा - न्यायशास्त्र के इस ग्रन्थ में पहले सूत्र हैं और फिर उन पर स्वोपज्ञ व्याख्या है । इस ग्रन्थ की विशेषता यह है कि यह सूत्र और व्याख्या दोनों को मिलाकर भी मध्यमकाय है । यह न तो परीक्षामुख और प्रमाणनयतत्त्वालोक जितना संक्षिप्त ही है और न प्रमेयकमलमार्तण्ड और स्याद्वादरलाकर जितना विस्तृत ही । इसमें प्रमाणशास्त्र के महत्त्वपूर्ण प्रश्नों का मध्यम प्रतिपादन है । दुर्भाग्य से यह ग्रन्थ पूर्ण उपलब्ध नहीं है । योगशाब- इसमें जैन योग की प्रक्रिया का पद्यबद्ध प्रतिपादन है । यह श्रमण-धर्म एवं श्रावक-धर्म के सिद्धान्तों की विवेचना करता हुआ ध्यानमार्ग के द्वारा मुक्तिप्राप्ति का निरूपण करता है । इस पर स्वोपज्ञ टीका भी है। बार्जिशिकाएँ-स्तोत्र-साहित्य की दृष्टि से हेमचन्द्रकृत अयोगव्यवच्छेदिका और अन्ययोगव्यवच्छेदिका नामक द्वात्रिंशिकाएँ उत्तम रचनाएँ हैं । इनमें बत्तीसबत्तीस श्लोक होने के कारण इन्हें 'द्वात्रिंशिका' नाम दिया गया है । अयोगव्यवच्छेदिका में जैन सिद्धान्तों का सरल प्रतिपादन है । अन्ययोगव्यवच्छेदिका में जैनेतर सिद्धान्तों का निराकरण है तथा इस पर मल्लिषेण ने स्याद्वादमंजरी नामक टीका लिखी है जो जैन दर्शन का एक महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ है । आईनीति - यह जैन नीतिशास्त्र की एक उत्तम कृति है । इसमें राजा, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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