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महावीर ब्राह्मण थे, क्षत्रिय नहीं
अधिक प्राचीन है, यह तथ्य इन तीनों आगम-ग्रन्थों के आन्तरिक परीक्षण से स्पष्ट प्रकट होता है। आचारांग का द्वितीय श्रुतस्कंध कल्पसूत्र से अवश्य प्राचीन है किन्तु भगवतीसूत्र से तो वह अर्वाचीन ही है, अतः भगवतीसूत्र का कथन इन दोनों की अपेक्षा अधिक प्रामाणिक मानना चाहिए।
२ - आचारांग में गर्भपरिवर्तन का जीत-आचार अर्थात परम्परागत व्यवहार के अतिरिक्त कोई अन्य कारण नहीं बताया गया है, और न इस क्रिया के कर्ता किसी विशेष देव का ही नाम दिया गया है, जबकि कल्पसूत्रकार ने जातिवाद के संस्कार के कारण मनगढन्त कारण देते हुए इस क्रिया के लिए हरिनैगमेषी का नाम भी साथ में जोड़ दिया ।
३-कल्पसूत्र में ब्राह्मणकुल को निम्नकोटि का बताया है जो ग्रन्थकार की अपनी सूझ है । इससे पूर्व किसी भी आगम-ग्रन्थ में ब्राह्मणकुल को हीन नहीं बताया गया है । इतना ही नहीं, आचारांग के प्रथम श्रुतस्कंध में तो भगवान् महावीर को ही अनेक बार ब्राह्मण कहा गया है। आचारांग का यह अंश आगमसाहित्य में प्राचीनतम है । हां, पीछे के चूर्णि आदि व्याख्या-साहित्य में कल्पसूत्र का अनुसरण करते हुए ब्राह्मणों को घिग्जातीय अवश्य कहा गया है ।
४-कल्पसूत्र में वर्णित गर्भपरिवर्तन का कारण काल्पनिक एवं अयथार्थ है । उसका कोई प्राचीन आधार नहीं है । वैसे भी गर्भपरिवर्तन की प्रक्रिया अस्वाभाविक,अनावश्यक एवं अशक्य प्रतीत होती है। खींच-तानकर उसे शक्य सिद्ध करना दूसरी बात है।
५ - भगवतीसूत्र में सिद्धार्थ तथा त्रिशला का कहीं नाम तक नहीं है। पन्द्रहवें शतक में एक स्थान पर महावीर की प्रव्रज्या के पूर्व उनके मातापिता का निधन होने का उल्लेख हुआ है, जो नवें शतक में उल्लिखित देवानन्दा एवं ऋषभदत्त के प्रसंग से विरुद्ध है । इस विरुद्धता का कारण यह है कि भगवतीसत्र का गोशालविषयक पन्द्रहवां शतक प्राचीनता एवं प्रामाणिकता की दृष्टि से सन्देहास्पद है । इसे प्रक्षिप्त, कृत्रिम एवं अप्रामाणिक सिद्ध कर इस ४ - आचारांग, १.७.१.९९७, १.७.८.३६, १.९.१.६४, १.९.२.७४ ५ - उत्तराध्ययन-चूर्णि, पृ. ८९; आवश्यक-चूर्णि, भा. १. पृ. ४९५, भा. २.
पृ. २१,२०६ ६ - देखें - जैन धर्म-दर्शन, पृ. ३१ की पादटिप्पणी
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