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जैन धर्म-दर्शन
उपलब्ध होती हैं।
काव्यानुशासन - यह अलंकारशास्त्र है । इसमें काव्य के प्रयोजन, हेतु, गुण-दोष, ध्वनि इत्यादि सिद्धान्तों पर गहन एवं विस्तृत विवेचन किया गया है। इस पर स्वोपज्ञ अलंकार-चूडामणि नामक वृत्ति एवं विवेक नामक व्याख्या
छन्दोनुशासन- हेमचन्द्र ने शब्दानुशासन और काव्यानुशासन की रचना करने के बाद छन्दोनुशासन लिखा है । इसमें संस्कृत, प्राकृत एवं अपभ्रंश के छन्दों का सर्वांगीण परिचय है । इस पर छन्दश्चूडामणि नामक स्वोपज्ञ वृत्ति भी
बचाश्रयमहाकाव्य - इस काव्य की रचना आचार्य ने अपने व्याकरण ग्रन्थ शब्दानुशासन के नियमों को भाषागत प्रयोग में समझाने के लिए की है । जिस प्रकार शब्दानुशासन संस्कृत और प्राकृत भाषाओं में विभक्त है उसी प्रकार यह महाकाव्य भी संस्कृत और प्राकृत दोनों भाषाओं में है । इसके २८ सर्गों में से प्रारम्भ के २० सर्ग संस्कृत में हैं जो संस्कृत व्याकरण के नियमों को उदाहृत करते हैं तथा अन्तिम ८ सर्ग (कुमारपालचरित) प्राकृत में है जो प्राकृत व्याकरण के नियम उदाहृत करते हैं । इस व्याश्रय काव्य के दो प्रयोजन हैं : एक तो व्याकरण के नियमों को समझाना और दूसरा गुजरात के चौलुक्यवंश
का इतिहास प्रस्तुत करना । इस ऐतिहासिक काव्य में चौलुक्यवंश का और विशेषतः उस वंश के नृप सिद्धराज जयसिंह और कुमारपाल का गुणवर्णन किया गया है।
विषष्टिशलाकापुरुषचरित - इस चरित्र-ग्रन्थ में जैन परम्परा के ६३ शलाकापुरुषों अर्थात् महापुरुषों का काव्यात्मक जीवनवृत्त है। ये शलाकापुरुष इस प्रकार हैं - २४ तीर्थकर, १२ चक्रवर्ती, ९ वासुदेव, ९ बलदेव और ९ प्रतिवासुदेव । इस विशाल ग्रन्थ की रचना हेमचन्द्राचार्य ने अपने जीवन की उत्तरावस्था में की थी । इसमें जैन पुराण, इतिहास, सिद्धान्त एवं तत्त्वज्ञान के संग्रह के साथ ही साथ समकालीन सामाजिक, धार्मिक और दार्शनिक प्रणालियों का प्रतिबिम्ब भी दृष्टिगोचर होता है। इसका परिशिष्टपर्व अर्थात् स्थविरावलिचरित
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