Book Title: Jain Dharma Darshan Ek Samikshatmak Parichay
Author(s): Mohanlal Mehta
Publisher: Mutha Chhaganlal Memorial Foundation Bangalore

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Page 651
________________ ६३६ जैन धर्म-दर्शन उपलब्ध होती हैं। काव्यानुशासन - यह अलंकारशास्त्र है । इसमें काव्य के प्रयोजन, हेतु, गुण-दोष, ध्वनि इत्यादि सिद्धान्तों पर गहन एवं विस्तृत विवेचन किया गया है। इस पर स्वोपज्ञ अलंकार-चूडामणि नामक वृत्ति एवं विवेक नामक व्याख्या छन्दोनुशासन- हेमचन्द्र ने शब्दानुशासन और काव्यानुशासन की रचना करने के बाद छन्दोनुशासन लिखा है । इसमें संस्कृत, प्राकृत एवं अपभ्रंश के छन्दों का सर्वांगीण परिचय है । इस पर छन्दश्चूडामणि नामक स्वोपज्ञ वृत्ति भी बचाश्रयमहाकाव्य - इस काव्य की रचना आचार्य ने अपने व्याकरण ग्रन्थ शब्दानुशासन के नियमों को भाषागत प्रयोग में समझाने के लिए की है । जिस प्रकार शब्दानुशासन संस्कृत और प्राकृत भाषाओं में विभक्त है उसी प्रकार यह महाकाव्य भी संस्कृत और प्राकृत दोनों भाषाओं में है । इसके २८ सर्गों में से प्रारम्भ के २० सर्ग संस्कृत में हैं जो संस्कृत व्याकरण के नियमों को उदाहृत करते हैं तथा अन्तिम ८ सर्ग (कुमारपालचरित) प्राकृत में है जो प्राकृत व्याकरण के नियम उदाहृत करते हैं । इस व्याश्रय काव्य के दो प्रयोजन हैं : एक तो व्याकरण के नियमों को समझाना और दूसरा गुजरात के चौलुक्यवंश का इतिहास प्रस्तुत करना । इस ऐतिहासिक काव्य में चौलुक्यवंश का और विशेषतः उस वंश के नृप सिद्धराज जयसिंह और कुमारपाल का गुणवर्णन किया गया है। विषष्टिशलाकापुरुषचरित - इस चरित्र-ग्रन्थ में जैन परम्परा के ६३ शलाकापुरुषों अर्थात् महापुरुषों का काव्यात्मक जीवनवृत्त है। ये शलाकापुरुष इस प्रकार हैं - २४ तीर्थकर, १२ चक्रवर्ती, ९ वासुदेव, ९ बलदेव और ९ प्रतिवासुदेव । इस विशाल ग्रन्थ की रचना हेमचन्द्राचार्य ने अपने जीवन की उत्तरावस्था में की थी । इसमें जैन पुराण, इतिहास, सिद्धान्त एवं तत्त्वज्ञान के संग्रह के साथ ही साथ समकालीन सामाजिक, धार्मिक और दार्शनिक प्रणालियों का प्रतिबिम्ब भी दृष्टिगोचर होता है। इसका परिशिष्टपर्व अर्थात् स्थविरावलिचरित Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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