________________
हेमचन्द्राचार्य की साहित्य-साधना
आचार्य हेमचन्द्र का जैन साहित्यकारों में ही नहीं, समस्त संस्कृत साहित्यकारों में प्रमुख स्थान है । इन्होंने साहित्य के प्रत्येक अंग पर कुछ न कुछ लिखा है । कोई ऐसा महत्त्वपूर्ण विषय नहीं जिस पर हेमचन्द्र ने अपनी लेखनी न चलाई हो । इन्होंने व्याकरण, कोश, छन्द, अलंकार, काव्य, चरित्र, न्याय, दर्शन, योग, स्तोत्र, नीति आदि अनेक विषयों पर विद्वत्तापूर्ण ग्रन्थ लिखें हैं । इन सब ग्रन्थों का परिमाण लगभग दो लाख श्लोक-प्रमाण है । समग्र भारतीय साहित्य में इतने विशाल वाङ्मय का निर्माण करनेवाला अन्य आचार्य दुर्लभ है । हेमचन्द्र की इसी प्रतिभा एवं ज्ञान-साधना से प्रभावित होकर विद्वानों ने उन्हें 'कलिकालसर्वज्ञ' की उपाधि से विभूषित किया ।
___ हेमचन्द्रसूरि का जन्म विक्रम संवत् ११४५ की कार्तिकी पूर्णिमा को गुजरात के धुंधुका ग्राम में हुआ था । इनका बाल्यावस्था का नाम चांगदेव था । ११५४ में ये देवचन्द्रसूरि के शिष्य बने एवं इनका नाम सोमचन्द्र रखा गया । देवचन्द्रसूरि अपने शिष्य के गुणों पर बहुत प्रसन्न थे एवं सोमचन्द्र की विद्वत्ता से अति प्रभावित थे, अतः उन्होंने अपने सुयोग्य शिष्य को ११६६ की वैशाख शुक्ला तृतीया को आचार्यपद प्रदान कर दिया । सोमचन्द्र के शरीर की प्रभा एवं कान्ति स्वर्ण के समान थी, अतः उनका नाम हेमचन्द्र रखा गया । संवत् १२२९ में हेमचन्द्र का निधन हुआ ।
हेमचन्द्रविरचित विविधविषयक ग्रन्थों का संक्षिप्त परिचय इस प्रकार
शब्दानुशासन - यह व्याकरणशास्त्र है । इस पर स्वोपज्ञ लघुवृत्ति, बृहद्वृत्ति, बृहन्यास, प्राकृतवृत्ति, लिंगानुशासन सटीक, उणादिगणविवरण, धातुपारायण-विवरण आदि हैं । ग्रन्थकार ने अपने पूर्ववर्ती व्याकरणों में रही हुई त्रुटियों से रहित सरल व्याकरण की रचना की है। इसमें सात अध्याय संस्कृत के लिए है तथा एक अध्याय प्राकृत (एवं अपभ्रंश) के लिए हैं । इस व्याकरण की रचना इतनी आकर्षक है कि इस पर लगभग ६० टीकाएँ एवं स्वतन्त्र रचनाएं
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org