Book Title: Jain Dharma Darshan Ek Samikshatmak Parichay
Author(s): Mohanlal Mehta
Publisher: Mutha Chhaganlal Memorial Foundation Bangalore
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सापेक्षवाद
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वर्ण, गन्ध, रस और स्पर्श होते हैं ? महावीर उत्तर देते हैंगौतम ! इस प्रश्न का उत्तर दो नयों से दिया जा सकता है । व्यावहारिक नय की दृष्टि से वह मधुर है और नैश्चयिक नय की अपेक्षा से वह पाँच वर्ण, दो गन्ध, पाँच रस और आठ स्पर्श वाला है । इसी प्रकार गन्ध, स्पर्श आदि से सम्बन्धित अनेक विषयों को लेकर व्यवहार और निश्चयनय से उत्तर दिया है ।' इन दो दृष्टियों से उत्तर देने का कारण यह है कि वे व्यवहार को भी सत्य मानते थे । परमार्थ के आगे व्यवहार की उपेक्षा नहीं करना चाहते थे । व्यवहार और परमार्थ दोनों दृष्टियों को समान रूप से महत्त्व देते थे ।'
अर्थनय और शब्दनय :
आगमों में सात नयों का उल्लेख है । अनुयोगद्वार सूत्र में शब्द, समभिरूढ़ और एवंभूत को शब्दनय कहा गया है । 3 बाद के दार्शनिकों ने सात नयों के स्पष्ट रूप से दो विभाग कर दिए - अर्थनय और शब्दनय । आगम में जब तीन नयों को शब्दtय कहा गया तो शेष चार नयों को अर्थनय कहना युक्तिसंगत ही है। जो नय अर्थ को अपना विषय बनाते हैं वे अर्थनय हैं । प्रारम्भ के चार नय - नैगम, संग्रह, व्यवहार और ऋजुसूत्र अर्थ को विषय करते हैं, अतः वे अर्थनय हैं । अन्तिम तीन नय - शब्द, समभिरूढ़ और एवंभूत शब्द को विषय करते हैं, अतः वे शब्दनय हैं । इन सातों नयों के स्वरूप का विश्लेषण करते समय मालूम हो जाएगा कि नैगमादि चार का विषय
१. भगवतीसूत्र, १८.६.
२. अनुयोगद्वार, १५६; स्थानांग, ७.५५२.
३. 'तिहूं सद्दनयाणं' - अनुयोगद्वार, १४८.
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