Book Title: Jain Dharma Darshan Ek Samikshatmak Parichay
Author(s): Mohanlal Mehta
Publisher: Mutha Chhaganlal Memorial Foundation Bangalore
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जैन कला एवं स्थापत्य
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में पूजा के उद्देश्य से लगाया गया था। आयागपट का शिलालेख इंगित करता है कि वह लोणशोभिका की पुत्री वसु नामक गणिका की भेंट है। उसमें प्रधानतः उस जैन स्तूप का निरूपण है जो वेदिका से घिरी हुई एक ऊंची जगती पर स्थित है, जहाँ पर अलंकृत दरवाजे की ओर ले जाने वाली ९ सीढ़ियों के द्वारा पहुँचा जाता है। एक दूसरे आयागपट के मध्य में बैठे हुए जिन का चित्रण हुआ है जिसके चारों ओर विविध प्रतीक हैं। राजगिर का मन्दिर :
राजगृह (राजगिर) के वैभारगिरि पर्वत पर एक भग्न मन्दिर है। इस मन्दिर में एक गर्भगृह है जो चारों तरफ से छोटे-छोटे कक्षों से घिरा हुआ है। प्रधान भवन से नीचे एक और मन्दिर है जिसमें २२ वें तीर्थंकर भगवान् नेमिनाथ की बैठी हुई प्रतिमा है। साथ का शिलालेख गुप्तकालीन लिपि में है। पीठ के मध्य में स्थित धर्मचक्र के दोनों ओर लांछनस्वरूप शंख है। अकोटा की कांसे की मूर्तियाँ :
बड़ौदा के निकटस्थ अकोटा से गुप्तकाल (५वीं शती) की कांसे की एक जैन मूर्ति प्राप्त हुई है। यह आदि तीर्थंकर ऋषभदेव की कायोत्सर्गस्थित (खड़ी) प्रतिमा है। इसके नीचे का भाग अप्राप्य है तथा पीठ, हाथ और पैर टूटे हुए हैं। धोती धारण किये हुए यह सबसे प्राचीन जैन प्रतिमा है। अकोटा के संग्रह में छठी से ग्यारहवीं शती की बहुत सी कांसे की जैन मूर्तियाँ प्राप्त हुई
एलोरा का जैन गुफामन्दिर :
एलोरा का 'इन्द्रसभा' नामक मन्दिर मध्ययुग के जैन गुफामन्दिरों में सबसे अच्छा है। यह ठोस चट्टान को काटकर बनाया गया है। इसका आंगन दक्षिण की ओर पत्थर के बने हुए पर्दे से आरक्षित है। पूर्व में एक चैत्यालय है जिसके सामने दो स्तम्भ और पीछे भी दो स्तम्भ बने हैं। आंगन में प्रवेश करते समय दाहिनी ओर चबूतरे पर एक हाथी और बायीं ओर पत्थर का एकाश्मक स्तम्भ है जो अब गिर चुका है। इस स्तंभ के शीर्ष पर एक तीर्थंकर की चतुर्मुखी प्रतिमा स्थापित है। मध्यभाग में एक विस्तृत वर्गाकार मण्डप बना हुआ है। एक
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