Book Title: Jain Dharma Darshan Ek Samikshatmak Parichay
Author(s): Mohanlal Mehta
Publisher: Mutha Chhaganlal Memorial Foundation Bangalore

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Page 631
________________ ६१६ जैन धर्म-दर्शन लघु चित्रकारी : जैन कला के विकास में शास्त्रों की लघु चित्रकारीयुक्त सजावट भी महत्त्वपूर्ण है। इस तरह की चित्रकारी प्रस्तुत करनेवाली शैली की स्थापना १२ वीं शती के प्रारम्भ में गुजरात तथा राजस्थान में हुई, जो बाद में भी विकसित होती रही । अलंकरण के लिए चुने गये ग्रन्थों में कल्पसूत्र, कालकाचार्यकथा तथा उत्तराध्ययनसूत्र प्रमुख हैं । जैन लघु चित्रकारी का सबसे पुराना नमूना ताड़पत्र पर अंकित निशीथचूर्णि से प्राप्त होता है जो सन् ११०० का है । ज्ञाताधर्मकथा एवं अन्य अंगों की ताड़पत्रीय हस्तप्रति में प्राप्त सन् ११२७ के दो चित्र अधिक महत्त्वपूर्ण हैं । जैन लघुचित्रों में चौदहवीं एवं पन्द्रहवीं शती के ताड़पत्र अथवा कागज पर बने चित्र सबसे अच्छे है। इनमें से बहुत से चित्र कल्पसूत्र तथा ज्ञाताधर्मकथा से सम्बन्धित हैं । जैन चित्रकला का क्रमिक इतिहास आधुनिक काल तक चला आता है जो ग्राम अथवा नगर के जैन समाज द्वारा वर्षावास के लिए जैन आचार्यों के पास भेजे जानेवाले बेलों से अलंकृत आमंत्रण पत्रों के रूप में है । इसका सबसे पुराना नमूना ईसा की १७ वीं शती का है । वस्त्र पर अंकित चित्रकारी पटों के रूप में मिलती है । सबसे प्राचीन पट सन् १३५४ का है । श्रमण, जनवरी १९७९ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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