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जैन धर्म-दर्शन
रचना मनोहारी और विस्मित कर देने वाली है । मन्दिरवाले शहर या देवकुलपाटक :
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गुजरात में पालीताना के निकट शत्रुंजय मन्दिरों से सुशोभित एक बहुत ही प्रसिद्ध स्थान है । वहाँ अलग-अलग टूंकों में ५०० से भी अधिक मन्दिर हैं तथा तीर्थंकरों की मूर्तियों की संख्या तो ५००० से भी अधिक है । उनमें से कुछ मन्दिर १० वीं शताब्दी के हैं । विमलवसही ट्रंक में आदिनाथ का मन्दिर सन् १५३० में दसवीं शती के एक पुराने मन्दिर के स्थान पर बनाया गया था । मन्दिर के एक छोटे से कक्ष में स्थित पुंडरीक की मूर्ति १० वीं शताब्दी की मूर्तिकला का एक अच्छा नमूना है । अहमदाबाद के नगरसेठ द्वारा सन् १८४० में बनाया हुआ एक छोटा सा मन्दिर अपने बाहरी बरामदे के साथ स्तम्भों पर आधारित सभामण्डपवाला एक अनोखा देवालय है । इसके फर्श पर बारह खम्भे हैं जो छोटे-छोटे ९ वर्गों में विभाजित हैं । इसकी गुम्बदाकार छत खम्भों पर आधारित मेहराब पर टिकी हुई है। इसमें चारों तरफ प्रवेश द्वार हैं जिनमें पश्चिम का प्रवेश द्वार प्रधान है। शत्रुंजय के कुछ मन्दिरों की अनेक बार मरम्मत हो चुकी है ।
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गुजरात में ही जूनागढ़ के निकट गिरनार भी मन्दिरवाला शहर है। यहाँ के जैन मन्दिरों में नेमिनाथ का मन्दिर सबसे बड़ा और सम्भवतः सबसे पुराना है । इस पर प्राप्त एक शिलालेख से यह ज्ञात होता है कि सन् १२७८ में इसकी मरम्मत हुई थी । मन्दिर १९५ फीट लम्बे तथा १३० फीट चौड़े चौकोर आँगन में स्थित है तथा छोटी-छोटी ७० देवकुलिकाओं से घिरा हुआ है जिनमें तीर्थंकरों की मूर्तियाँ हैं । मन्दिर में एक प्रासाद और एक मण्डप है । प्रासाद (गर्भगृह) में नेमिनाथ की मूर्ति है । मण्डप में प्रवेश पाने के लिए पार्श्वमण्डप भी है । वस्तुपाल मन्दिर (सन् १२३० ) में विभिन्न तीन मन्दिर मिले हुए हैं । बीच के एक मण्डप से तीन ओर निकास हैं जो विभिन्न मन्दिरों में ले जाते हैं। और चौथी ओर मुख्य प्रवेशद्वार है । बीचवाला मन्दिर १९ वें तीर्थंकर मल्लिनाथ को समर्पित किया गया है । उत्तर-मन्दिर मेरुपर्वत तथा दक्षिण-मन्दिर सम्मेतशिखर से सम्बन्धित है ।
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