Book Title: Jain Dharma Darshan Ek Samikshatmak Parichay
Author(s): Mohanlal Mehta
Publisher: Mutha Chhaganlal Memorial Foundation Bangalore
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जैन धर्म-दर्शन
प्रकार के दोहरे बरामदे से मन्दिर के नीचे वाले सभा मण्डप में जाने को मार्ग मिलता है। बरामदे के एक छोर पर १६वें तीर्थंकर भगवान् शान्तिनाथ की दो बड़ी-बड़ी मूर्तियाँ हैं । दूसरे छोर पर पत्थर की सीढ़ियाँ हैं जो ऊपरवाले सभामण्डप में जाती हैं। दोनों ही सभा मण्डप स्तम्भों से सुसज्जित हैं। ऊपर के सभामंडप की दीवारें जिन मूर्तियों से अलंकृत हैं। अंकित मूर्तियों में भगवान् पार्श्व, भगवान् महावीर तथा गोम्मट ( बाहुबलि) प्रमुख हैं। गोम्मटेश्वर की विशाल मूर्ति :
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दक्षिण भारत के जैन स्थापत्य में दो प्रकार के मन्दिर समाविष्ट हैं 'बस्ति' और 'बेत्त' । तीर्थंकरों की मूर्तियों से सुशोभित मन्दिर बस्ति कहे जाते हैं। बेत्त पहाड़ी चोटियों पर खुले आंगन की तरह बने हैं और उनमें गोम्मटेश्वर की प्रतिमाएँ हैं। प्रथम तीर्थंकर ऋषभदेव के पुत्र बाहुबलि का ही अपरनाम गोम्मट या गोम्मटेश्वर है।
मैसूर से ६२ मील की दूरी पर स्थित श्रवणबेलगोला में विन्ध्यगिरि की चोटी पर, जो जमीन से ४७० फीट की ऊँचाई पर है, गोम्मटेश्वर की विशाल मूर्ति खड़ी है। प्राचीन होते हुए भी यह बृहदाकार मूर्ति पूर्ण सुरक्षित है। इसकी ऊँचाई ५७ फीट है। कंधे की चौड़ाई २६ फीट, पैर का अंगूठा २ फीट, मध्यम अंगुलि ५ फीट, एड़ी की ऊँचाई २ फीट, कान की लम्बाई
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५ फीट तथा कमर का घेरा १० फीट है। मूर्ति नंगी है और उत्तर दिशा की ओर मुँह करके सीधी खड़ी है। यह ठोस चट्टान को काटकर बनाई गई है। यह बृहदाकार मूर्ति श्रवणबेलगोला से १५ मील दूरतक चारों तरफ से दिखाई पड़ती है । ऊपर चढ़ने के लिए चट्टान में काटी हुई ५०० सीढ़ियों का मार्ग तय करना पड़ता है।
मूर्ति पर प्राप्त शिलालेख से ज्ञात होता है कि यह मूर्ति चामुण्डराय ने बनवाई थी। वह राजमल्ल अथवा राचमल्ल का प्रसिद्ध मंत्री था, जिसने ई. सन् ९७४ से ९८४ तक राज्य किया था। मूर्ति का निर्माण ई. सन् ९८३ में हुआ
था।
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