Book Title: Jain Dharma Darshan Ek Samikshatmak Parichay
Author(s): Mohanlal Mehta
Publisher: Mutha Chhaganlal Memorial Foundation Bangalore
View full book text
________________
६१०
जैन धर्म-दर्शन
प्राचीनतम जैन मूर्तियाँ
:
लोहानीपुर से प्राप्त जिनमूर्तियों के दो धड़, जो मौर्यकाल के हैं, अब तक की प्राप्त जैन मूर्तियों में सबसे प्राचीन हैं। उनमें से एक तो काफी चमकीला है परन्तु दूसरे पर कोई चमक नहीं है। इन धड़ों के साथ एक वर्गाकार मन्दिर की नींवों से बहुत-सी ईंटें तथा चाँदी का एक आहत सिक्का मिला है। धड़ तीर्थंकरों के मालूम पड़ते हैं तथा नींवें खुदाई से प्राप्त सबसे प्राचीन जैन मन्दिर की। मौर्य राजा सम्प्रति जैन मन्दिरों के निर्माणकर्ता के रूप में प्रसिद्ध है। इस विषय में पुरातत्त्वसम्बन्धी कोई प्रमाण प्राप्त नहीं हुआ है। दो जैन गुफाएँ :
उड़ीसा की उदयगिरि और खंडगिरि पहाड़ियों में खोदी गई दो गुफाएँ शुंग काल के जैन स्मारक के रूप में उल्लेखनीय हैं। हाथीगुंफा का कलिंग देश के राजा खारवेल ने उद्धार एवं सुधार किया था। उड़ीसा की सभी गुफाओं में रानीगुंफा बृहदाकार है तथा विस्तृत अलंकरण से युक्त है। इसके सुन्दर मूर्तिअलंकरण में युद्ध, पंखवाले मृग के शिकार और नारी को भगा ले जाने आदि के दृश्य बने हुए हैं। गुफा की दो मंजिलें हैं जिनमें बरामदे भी बने हुए हैं। जैन स्तूप :
मथुरा के कंकाली टीले की खुदाई से ईंट का बना हुआ एक विशाल जैन स्तूप और दो मन्दिरों के भग्नावशेष प्राप्त हुए हैं। उसमें द्वितीय शताब्दी का एक शिलालेख भी मिला है। उस लेख से ज्ञात होता है कि स्तूप देवताओं के द्वारा निर्मित हुआ था। ऐसी धारणा बन जाने का कारण यह है कि उस समय स्तूप को स्मरणातीत प्राचीन माना जाता था। विविध तीर्थकल्प (१४ वीं शताब्दी) से जानकारी होती है कि स्तूप की मरम्मत पार्श्वनाथ (ई. पूर्व ८७७७७७) के समय में हुई और एक हजार वर्ष के बाद बप्पभट्टिसूरि द्वारा उसका नवीनीकरण किया गया। स्तूप का निर्माण सातवें तीर्थंकर भगवान् सुपार्श्व के सम्मान में हुआ
था।
जैनधर्म के इतिहास के दृष्टिकोण से मथुरा से प्राप्त होने वाली मूर्तियाँ तथा शिलालेख बहुत महत्त्वपूर्ण हैं। इनमें एक आयागपट है जिसे एक मन्दिर
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org