Book Title: Jain Dharma Darshan Ek Samikshatmak Parichay
Author(s): Mohanlal Mehta
Publisher: Mutha Chhaganlal Memorial Foundation Bangalore

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Page 606
________________ शब्द पिण्डनियुक्ति पिण्डप्रकृति पिण्डेषणा पिशाच पुण्य पुण्य-पाप पुद्गल पुद्गलप्रक्षेप पुनरावर्तन पुनर्जन्म पुप्फचूलिया पुष्किया पुरुषवाद पुरुषवेद पुरुषार्थवाद पुष्पचूलिका पुष्पदंत पुष्पिका पूज्यपाद पूर्व पूर्वमीमांसा पूर्ववत् पेज्जदोंस पाहुड पोषधप्रतिमा पौषधोपवास अनुक्रमणिका Jain Education International पृष्ठ ४३, २३७ ४३६, ४५५, ४७६ ४४३ १३६, १७८, १६७, २०२ ५५४ ५२६ ४६१ ४१ ४१ ४२२ ४६६ ४५ ४६७ = ४२४ ४१ ६१ ४१ ७१ २२ ६ ३०० ६२ ५६१ ५५४ ५६, ६०, शब्द पौषधोपवास- सम्यगननुपालनता प्रकीर्णक प्रकृति प्रकृतिबंध प्रचला प्रचलाप्रचला प्रजापति प्रज्ञा प्रज्ञापना प्रतर प्रतिक्रमण प्रतिज्ञा प्रतिपत्ति प्रतिपृच्छना प्रतिमा प्रतिमावाद प्रतिष्ठा प्रत्यक्ष प्रत्यभिज्ञान प्रत्याख्यान प्रत्येक प्रत्येक प्रकृति ५६१ पृष्ठ प्रत्याख्यानावरण प्रत्यावर्तनता ४४३ ४३७, ४६०, ५०१ ४६२ ४६३ ४२६, ४३३ २५३ ४१, ४३४ २०० ५१५ ३२८ २६४ ५२५ २७, ५६० ૪ ५५५ ४१, ५४, २३८ २६४ २६८, २६६, ३१६, For Private & Personal Use Only ३१७ ३२१ ५१४ ४६५ २६३ ४६८ ४६७ www.jainelibrary.org

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