Book Title: Jain Dharma Darshan Ek Samikshatmak Parichay
Author(s): Mohanlal Mehta
Publisher: Mutha Chhaganlal Memorial Foundation Bangalore
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जैन धर्म-दर्शन
वार्य है जिसके करने से राजदण्ड भोगना पड़े, समाज में अविश्वास उत्पन्न हो, प्रामाणिकता नष्ट हो, प्रतिष्ठा को धक्का लगे । इस प्रकार की चोरी का त्याग ही जैन आचार-शास्त्र में स्थूल अदत्तादान- विरमण व्रत के नाम से प्रसिद्ध है । स्थूल चोरी के कुछ उदाहरण ये हैं : किसी के घर आदि में सेंध लगाना, किसी की गाँठ काटना, किसी का ताला तोड़ना, किसी को लूटना, किसी की चीज बिना पूछे उठाकर रख लेना, किसी का गड़ा हुआ धन निकाल लेना, डाका डालना, ठगना, मिली हुई वस्तु का पता लगाने की कोशिश न करना अथवा पता लगने पर भी उसे न लौटाना, चौर्यबुद्धि से किसी को वस्तु उठा लेना अथवा अपने पास रख लेना आदि । श्रावक चोरी का त्याग भी साधारणतया दो करण व तीन योगपूर्वक ही करता है ।
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अदत्तादान - विरमण व्रत के मुख्य पाँच अतिचार हैं : १. स्तेनाहृत, २ . तस्करप्रयोग, ३. राज्यादिविरुद्ध कर्म, ४. कूटतोल कूटमान, ५. तत्प्रतिरूपक व्यवहार | अज्ञानवश यह समझ कर कि चोरी करने व कराने में पाप है किन्तु चुराई हुई वस्तु लेने में क्या हर्ज है, चोरी का माल लेना स्तेनाहृत अतिचार है । चोरी करने की प्रेरणा देना, चोर को सहायता देना, तस्कर को शरण देना, शस्त्रास्त्र आदि द्वारा डाकुओं की मदद करना, लुटेरों का पक्ष लेना आदि क्रियाएं तस्करप्रयोग के अन्तर्गत हैं । प्रजा के हित के लिए बने हुए राज्य आदि के नियमों को भंग करना राज्यादिविरुद्ध कर्म है । इस अतिचार के अन्तर्गत निम्नोक्त कार्यों का समावेश होता है : अवैधानिक व्यापार करना, कर चुराना, बिना अनुमति के परराज्य की सीमा में प्रवेश करना, निषिद्ध वस्तुएं एक स्थान से दूसरे स्थान पर अथवा
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